रविवार, 20 जून 2021

अंक – 11, योग विशेषांक


योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।

योऽपाकरोत्तं  प्रवरं मुनीनां, पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि।।

शब्द सृष्टि,  जून - 2021, अंक – 11

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित....





















14 टिप्‍पणियां:

  1. संग्रहणीय अद्भुत अंक । सभी लेखको का आभार एवं बधाई ।

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  2. अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी देता उपयोगी एवं संग्रहणीय अंक। पूर्वा जी तथा सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। आभार

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  6. ‘शब्द-सृष्टि’ नामक इस ई-पत्रिका के दो कर्णधार (कप्तान) हैं – डॉ. हसमुख परमार तथा डॉ. पूर्वा शर्मा। डॉ. परमार इस पत्रिका के परामर्शक हैं तथा डॉ. पूर्वा शर्मा सम्पादक हैं। डॉ. पूर्वा शर्मा ने डॉ. हसमुख परमार के निर्देशन में शोधकार्य किया है। डॉ. पूर्वा शर्मा से मेरी मुलाकात तीन साल पहले केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के अहमदाबाद केन्द्र द्वारा, बड़ौदा के हिन्दी शिक्षकों के लिए आयोजित नवीकरण कार्यक्रम में हुई थी। तब तक मैं पूर्वा शर्मा को नहीं जानता था।
    केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, अहमदाबाद केन्द्र के निदेशक डॉ. सुनीलकुमार अपने कार्यक्रमों में हमेशा कुछ खास लोगों को (जिन्हें वे खास समझते हैं) एक-दो कक्षाएँ देते हैं। बड़ौदा के कार्यक्रम में एक कक्षा डॉ. पूर्वा शर्मा को दिया था। इस कारण से पूर्वा शर्मा से मिलने के लिए मैं उत्सुक था; डॉ. हसमुख परमार ने अपनी छात्रा पूर्वा शर्मा को मेरे बारे में बताया था। इस नाते वह भी मुझसे मिलना चाहती थी। कक्षा के बाद पंद्रह-बीस मिनट के लिए हम मिले। पूर्वा शर्मा के गरिमामय व्यक्तित्व तथा अपने विषय की स्पष्ट समझ से मैं निश्चित रूप से प्रभावित हुआ। कारण कि आजकल ऐसे छात्र बहुत मुश्किल से मिलते हैं। ब्लॉग के रूप में ऐसी ई-पत्रिका निकालने की मूल कल्पना डॉ. पूर्वा शर्मा की ही है। परंतु यह काम अकेले का नहीं है। इसलिए पूर्वा शर्मा ने अपने गुरु डॉ. हममुख परमार के सामने अपना यह विचार रखा। डॉ. हसमुख परमार ऐसे कार्यों में बड़े उत्साही व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी छात्रा डॉ. पूर्वा शर्मा का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया और गुरु-शिष्या दोनों मिलकर यह सारस्वत कार्य पूरी निष्ठा से संपन्न कर रहे हैं।
    डेढ़ दशक से अधिक समय से मेरा संबंध डॉ. हसमुख परमार से है। डॉ. परमार सहज, शालीन तथा सौम्य स्वभाव के व्यक्ति हैं। इसी कारण आरंभ से ही मैं उनके प्रति आकर्षित रहा हूँ। वे मेरा बहुत सम्मान करते हैं। इस नाते तो उनके प्रति मेरी गहरी आत्मीयता है ही। परंतु मेरी आत्मीयता का एक दूसरा अधिक बड़ा कारण है उनका सारस्वत व्यक्तित्व। वे स्वभाव से बड़े जिज्ञासु और कर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं। वे गुणवत्ता के बड़े आग्रही हैं। उनकी यह विशेषता मुझसे मेल खाती है। (वैसे इस प्रकार के प्राणी अब लुप्त होते जा रहे हैं।) वे जिस विषय पर काम करना शुरू करते हैं, उसके अधिकाधिक आयामों को जान लेना चाहते हैं। किसी विषय पर पुस्तकों में जैसा लिखा होता है, उसे उसी रूप में ग्रहण कर लेना या स्वीकार कर लेना उनका स्वभाव नहीं है। वे यथासंभव उसकी भरपूर छानबीन करते हैं। उसकी सचाई को जानने की कोशिश करते हैं। वे छोटी-छोटी बातों के लिए मुझे फोन करते हैं। उन्हें भरोसा रहता है कि इस विषय में मैं उनको कोई रास्ता सुझा सकता हूँ या सही राय दे सकता हूँ। उनके इस विश्वास से प्रेरित होकर मैं भी काम में जुट जाता हूँ। मैं उनके लिए चीजों की छानबीन करता हूँ। परंतु उसी बहाने खुद भी नयी चीजों से अवगत हो जाता हूँ। (क्रमशः)

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  7. डॉ. परमार मुझे कभी भी किसी भी विषय में आग्रह-दुराग्रह से ग्रस्त व्यक्ति नहीं लगे। वे जिज्ञासु भाव से मेरे साथ लंबी चर्चाएँ करते हैं। उनकी जिज्ञासा मुझे भी कुछ नया सोचने के लिए प्रेरित करती है। किसी विषय में पूर्वधारणा तो हर किसी में होती है। कुछ लोग अपनी पूर्वधारणा को मजबूती से पकड़े रहता है। ऐसे लोगों के विकास की संभावना क्षीण हो जाती है। परंतु डॉ. परमार इस दोष से मुक्त हैं। वे अपनी पूर्वधारणा को सरलता से छोड़ सकने में समर्थ हैं। इसी लिए उनके साथ किसी विषय पर संवाद करने में मुझे कठिनाई नहीं होती।
    इस पत्रिका के नामकरण की बात आई, तब डॉ. हसमुख परमार ने कोई नाम सुझाने के लिए मुझसे कहा। ऐसे प्रसंगों में मैं खुद कुछ नहीं करता। अपनी सोच तथा परिकल्पना के अनुसार ही खुद पाँच-सात नाम बताने के लिए मैंने उनसे कहा। फिर क्रमशः एक-एक नाम को निरस्त करते हुए उन्हीं की पसंद का यह नाम (शब्द-सृष्टि) स्वीकार किया गया।
    इस ई-पत्रिका के वस्तुपक्ष की लगभग पूरी जिम्मेदारी डॉ. हसमुख परमार की होती है तथा उसके कलापक्ष की जिम्मेदारी डॉ. पूर्वा शर्मा की होती है।
    पहले तो खुद मुझे ही पता न था कि यह ब्लॉग क्या होता है। ई-पत्रिका क्या होती है। परंतु जब डॉ. परमार ने ‘शब्द-सृष्टि’ के पहले अंक का लिंक मेरे वॉटॆसेप पर भेजा, तो पत्रिका की सजावट तथा कलात्मकता देखकर मैं चकित हो गया। डॉ. परमार ने बताया कि यह डॉ. पूर्वा शर्मा का कमाल है।
    अभी तक ‘शब्द-सृष्टि’ के ग्यारह अंक निकल चुके हैं। मजे की बात यह कि ग्यारह में से सात अंक तो विशेषांक के रूप में निकले हैं। विशेषांक निकालना मेरी समझ से अपने आपमें एक कठिन काम है।
    मैं इस ई-पत्रिका से सीधे तो नहीं जुड़ा हूँ। परंतु प्रत्येक अंक की सामग्री के बारे में डॉ. परमार जहाँ आवश्यक समझते हैं, मुझसे राय माँगते हैं। जब कि सच तो यह है कि मैं खुद को इस योग्य नहीं मानता। परंतु डॉ. परमार के विश्वास की रक्षा के लिए मुझे थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
    कहने के लिए तो बहुत कुछ है। परंतु अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि सरस्वती के आराधक इन दोनों साधकों को परमात्मा सदा ऊर्जा से भरपूर रखें। ताकि ये दोनों साहित्य की सच्ची सेवा करते रहें। - डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र, वल्लभ विद्यानगर (आणंद, गुजरात)

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  8. सुधार लें -
    एक कक्षा डॉ. पूर्वा शर्मा को दी थी (दिया था नहीं)

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  9. श्री मिश्र जी की टिप्पणी से कई जानकारियां प्राप्त हो गई । डॉक्टर परमार जी को साधुवाद । सभी अंक बहुत अच्छे निकले है । पूर्वा के द्वारा इस पत्रिका का कलेवर आकर्षक बना देने से चार चांद लग गये है । बधाई ।

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  10. इस विस्तृत और सटीक टिप्पणी के लिए आदरणीय डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्रा ‘सर’ आपका बहुत बहुत आभार।
    ‘साधो ऐसा ही गुरु भावै’
    सर जी आपके शब्द हमारे लिए प्रेरणादायी हैं। इन शब्दों के जरिए व्यक्त आपकी सदभावना एवं कतिपय वास्तविकताओं का बोध कराते विचार निश्चित रूप से हमारे उत्साह, विश्वास, श्रम तथा साहित्यिक प्रतिबद्धता को मजबूती प्रदान करेंगे। इस बात को बताने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं कि मेरी भाषा व साहित्य संबंधी समझ को विकसित करने में आपके नैकट्य व अपनत्व की महती भूमिका रही है। ‘शब्द सृष्टि’ और इसके उभय कर्णधारों के व्यक्तित्व को रेखांकित करती आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया को पढ़ते समय हम यह कैसे भूलें कि आप स्वयं भी इस र्ब्लाग का अभिन्न अंग हैं। ‘शब्द संज्ञान’ जो इस ब्लॉग का एक स्तंभ है, जिसके लेखन हेतु आपकी कलम नियमित चलती है। आप मूलतः एक भाषाविशेषज्ञ है, अतः आपके लेखकीय सहयोग से ही हम इस स्तंभ वशेष के जरिए भाषा, व्याकरण, शब्दज्ञान आदि विषयों के साथ न्याय करने का प्रयास करते हैं।
    दरअसल यह ‘शब्द सृष्टि’- पूर्वा शर्मा की ही लगन, उत्साह, प्रतिभा, परिश्रम व साहित्यानुराग का सुपरिणाम है। बेशक, इस ब्लॉग की नियमितता और आंतरिक-बाह्य स्तरीयता का पूरा श्रेय डॉ. पूर्वा शर्मा को ही जाता है। पूर्वा की इस साहित्य सेवा में मेरी रूचि का एक कारण इस विषय का मेरे स्वभाव व व्यवसाय के अनुकूल होना तो है ही। परंतु दूसरा भी एक बडा कारण है- एक समय पूर्वा का मेरी छात्रा रहना और आज भी उनका अपने को साहित्य संबंधी सलाह-सूचन (मार्गदर्शन) देने के लिए मुझे योग्य मानना।
    शब्द सृष्टि परिवार आभारी हैं उन सभी सर्जकों व समीक्षकों का जो समय-समय पर इस ब्लॉग का हिस्सा बनते हैं। कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं हम शब्दसृष्टि के उन तमाम सुधी पाठकों के प्रति जिन्हों ने इस साहित्य मंच को बहुत चाहा..... बहुत सराहा......
    अंत में कवि ‘कबिरा’ (प्रो. पारुकांत देसाई) की पंक्तियाँ-
    कंटीले इस जग वृक्ष पर सुंदर दो ही डार।
    अनुराग साहित्य का गुणी जनों का प्यार।।


    डॉ. हसमुख परमार
    स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
    सरदार पटेल विश्वविद्यालय
    वल्लभ विद्यानगर (गुजरात)

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