रविवार, 29 अक्तूबर 2023

अक्टूबर 2023,अंक 40

 


शब्द सृष्टि

अक्टूबर 2023,अंक 40


विचार स्तवक

शब्द-विवेक – हिन्दी शब्द सामर्थ्य (शिवनारायण चतुर्वेदी, तुमन सिंह) से साभार

व्याकरण विमर्श – कर्तृवाच्य-भाववाच्य – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

प्रसंगवश 

1) गाँधी, सरदार और शास्त्री : कद छुए आसमान – प्रो. हसमुख परमार

2) और एक प्रार्थना आज आद्याशक्ति से – डॉ. पूर्वा शर्मा

मत-अभिमत – महात्मा गाँधी-सुमित्रानंदन पंत/ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला-रामविलास शर्मा

सम्मानित शख्सियत 

1) जॉन फॉसे : अनकही को कह दिया जिसने! – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

2) नरगिस को शांति का नोबेल : स्त्री संघर्ष की स्वीकृति का जश्न – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सर्जक – उत्तर-दक्षिण के सेतु : बालशौरि रेड्डी – प्रो. अमरनाथ

कविता – सुनो मैं गाँधी हूँ – डॉ. अनु मेहता

कविता – एक सफ़र.... मेरे गाँव की ओर – श्रुति झा

कविता – मन्नत के धागे – कंचन अपराजिता

सामयिक दोहे – रक्तपात से कब मिटी, रक्तपान की प्यास – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

कविता – आह्वान – मालिनी त्रिवेदी पाठक

चौपई छंद – राम उठाओ फिर कोदण्ड ! – ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

कविता – दशानन – रश्मि रंजन

शरद ऋतु विशेष

भजन – नैनन नीर बरसत है – सुरेश चौधरी

आलेख – शरद पूर्णिमा, महारास एवं गोपी-गीत का महात्म्य – सुरेश चौधरी


प्रसंगवश

 

और एक प्रार्थना आज आद्याशक्ति से

डॉ. पूर्वा शर्मा

अभी-अभी नवरात्रि महापर्व में हमने देखा कि एक ओर माँ आद्याशक्ति की आराधना करते भक्ति में डूबे अनेक शीश नज़र आए तो दूसरी ओर गरबे की धुन पर थिरकते कदम । लेकिन तीसरी ओर इन प्यारे-प्यारे और धार्मिक भाव भरपूर नज़ारों से अलग-थलग गोली-बारूद के ताल पर तांडव करती मृत्यु के हृदय विदारक दृश्य। जी हाँ! एक बार फिर इज़राइल-हमास (7 अक्टूबर, 23) में युद्ध छिड़ जाने से गाजा में व्यापक तबाही देखी जा सकती है। इस बात से तो सभी भली-भाँति परिचित है कि इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष एवं विवाद वर्षों पुराना है। और इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि युद्ध में जीतने वाले और पराजित होने वाले दोनों पक्षों को भारी नुकसान का वहन करना पड़ता है, बहुत कुछ खोना पड़ता है। सैनिकों का युद्ध में मारा जाना-शहीद होना स्वाभाविक बात है लेकिन जब आम नागरिकों की जान पर बन आए तब समझिए कि मामला गंभीर है। इस युद्ध में हो रहे नरसंहार में सबसे बड़ी कीमत महिलाओं और बच्चों को चुकानी पड़ रही है। ऐसा नहीं है कि यह कोई नयी घटना है, इसके पहले भी रवांडा नरसंहार, सिएरा लियोन गृह युद्ध, बलूचिस्तान,  रूस-यूक्रेन युद्ध आदि में भी महिलाओं एवं बच्चों के साथ हुए अत्याचारों के मामले सामने आए है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह की परिस्थितियों में महिलाओं एवं बच्चों की बलि चढ़ने में देर नहीं लगती ।

इज़राइल की सेना में, पैरामेडिक्स में, पत्रकारिता में, वॉलेंटियर एवं नर्स आदि रूप में बड़ी संख्या में महिलाओं के योगदान को बखूबी देखा जा सकता है। बावजूद इसके यहाँ पर महिलाओं एवं बच्चों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है। हमास के आतंकवादियों ने इनके साथ अत्याचार की सभी हदें पार कर दी है। हर बार वे क्रूर से अतिक्रूर के स्तर की ओर जाते जा रहे हैं । इससे संबंधित ख़बरों को सुनकर, देखकर पढ़कर किसी का भी दिल दहल जाएगा। महिलाओं को मारना-पीटना, उनके साथ दुर्व्यवहार, उनके कपड़े फाड़ देना, बलात्कार करना एवं उन्हें बंदी बना लेने के कई मामले सामने आए है। यहाँ तक कि महिलाओं के शव के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया। शायद यही कारण है कि भारत में जौहर की परंपरा प्रचलित रही जिसके चलते जीवित महिला अथवा महिला का शव दुश्मन के हत्थे न लगे। एक खबर के अनुसार एक महिला को तीन दिनों तक भूखा रखे जाने के बाद उसे चावल और मीट दिया गया, बहुत भूखी होने के कारण उसने खाना खा लिया। बाद में उसे बताया गया कि वह मीट उसके ही सालभर के बच्चे का था। एक अन्य घटना में छह बहनों एवं उसके पिता को बंधक बनाने के बाद उन्हीं के सामने उनकी सबसे छोटी दस वर्षीय बहन का तब तक सामूहिक बलात्कार किया गया जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ दिया। जब इसे सुनकर-देखकर हमारी रूह काँपने लगी है तो इस दर्द से गुजरने वालों की मनः स्थति क्या होगी ? उन पर क्या गुजर रही होगी ? इसका तो सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। इनका यह अनुभव किसी नर्क से भी बदतर ही रहा होगा। इस अनदीठे दर्द की दास्तान लंबी है। यह तो कुछेक ख़बरें हैं जो हमारे सामने आई है , अभी तो न जाने ऐसी कितनी ही घटनाएँ होगी जिनसे हम अनभिज्ञ है।

इन परिस्थितियों को देखकर लगता है कि यह सिर्फ़ महिलाओं-बच्चों के साथ अत्याचार का मामला ही नहीं है बल्कि यह मानवता पर प्रश्न है। इस पूरे मामले को देखने पर लगता है कि मानवीयता तो सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही रह गई है और युद्ध में कोई भी नियम-कायदे आदि लागू नहीं होते। यहाँ हज़ारों मासूम अपनी जान से हाथ धो रहे हैं । वैसे एक तरफ तो इज़राइली महिलाएँ आर्मी में तथा अन्य स्थानों पर अपना पूरा योगदान दे रही है फिर भी इस परिस्थिति से निपटने के लिए क्या करना होगा, क्या कदम उठाना होगा यह कहना मुश्किल है।

दरअसल इन आसुरी प्रवत्तियों के आतंकवादियों के बारे में क्या कहा जाए? यह तो जानवरों से भी गए-गुजरे प्रतीत होते हैं। जिस तरह माँ दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर और रक्तबीज जैसे दानवों का संहार किया, वैसी ही आसुरी शक्तियाँ आज हमारे सामने है। ऐसा लगता है कि ये आतंकवादी मनुष्य के भेष में उत्पात मचाने वाले रक्तबीज ही है। जिन्होंने आज इस पृथ्वी पर कोहराम मचा रखा है। अब लगता है कि इन असुरों का संहार करने के लिए आद्याशक्ति का आह्वान करना ही पड़ेगा। अस्तु....

 



डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

 

कविता

 



दशानन

रश्मि रंजन

एक ऋषि विश्वश्रवा

पत्नी उनकी कैकसी

रावण को दिया जन्म

नियति का था बंधन

 

धुन्नी अमृत धारता

बहु-विद्याओं का ज्ञाता

दस आनन उसके

कहलाया दशानन

 

शिव तांडव स्तोत्र का

तंत्र ग्रंथ रचयिता

संयम अद्भुत धरे

प्रकांड विद्या का धन

 

शिव भक्त होकर भी

सद्गुण नहीं आया

पाया क्या शिव से कर

दस शीश समर्पण। 

 



रश्मि रंजन

वड़ोदरा 

विचार स्तवक



अनुशासन और एकता ही किसी देश की ताकत होती है।

लाल बहादुर शास्त्री

***

अंततः, वास्तविक अर्थों में शिक्षा सत्य की खोज है। यह ज्ञान और आत्मज्ञान से होकर गुजरने वाली एक अंतहीन यात्रा है।

एपीजे अब्दुल कलाम

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मैं अपने नाम के आगे विद्यार्थी इसलिए जोड़ता हूँ; क्योंकि मेरा मानना है कि मनुष्य जिंदगी भर सीखता रहता है, हम विद्यार्थी बने रहते हैं।

गणेश शंकर विद्यार्थी

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जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते, उन्हीं को क्रोध अधिक आता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

 

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महात्मा गाँधी

·      बिना आदर्शों के मनुष्य पाल-रहित जहाज के जैसा है ।

·    सभी मजहब अच्छे हैं। विश्वास रखें कि जितने भी धर्म हैं, सब-के-सब ऊंचे हैं। धर्म में कसर नहीं है। कसर है तो उनके आदमियों में है ।

·     जो मनुष्य हम में सोई हुई उत्तम भावनाओं को जाग्रत करने की शक्ति रखता है, वह कवि है ।

·      जहाँ सत्य का साम्राज्य है, वहाँ सफलता हाथ बांधे खड़ी रहती है।

·      अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है ।

·      नैतिक बल के सामने पशु-बल की कोई कीमत ही नहीं है ।

·      अहिंसा उच्चतम कोटि का सक्रिय बल है।

***

सरदार पटेल

·    गुलामी और अराजकता - दोनों में से अराजकता को चुनना अच्छा है । अराजकता के बाद भी स्वतंत्र हिन्दुस्तान खड़ा हो जाएगा। मगर हमेशा के लिए गुलामी को स्वीकार करनेवाला हिन्दुस्तान कभी खड़ा नहीं होगा ।

·    भारतवासी आपका भविष्य आपके भूत की तरह शानदार है। आप दुनिया में सबसे बड़ी पदवी हासिल कर सकते हैं । हमारे मुल्क में गाँधीजी जैसी हस्ती पैदा हुई । दुनिया भर के लोग उनके रास्ते पर चल रहे हैं । और वही रास्ता सही है ।

·      सहिष्णुता अहिंसा का प्राण है ।

·     आप यह क्यों समझती है कि आप अबला हैं ? आप तो शक्ति रूप हैं। अपनी माता के बिना कौन पुरुष पृथ्वी पर पैदा हुआ है ? आप अपनी दीनता मिटाइए ।

 


शब्द-विवेक



अध्यक्ष : मुखिया (विभाग के अध्यक्ष) ।

सभापति : अधिवेशन या बैठक के।

***

अनुमति : जब हम कुछ करना चाहते हैं और वैसा करने के लिए किसी अधिकारी से पूछना आवश्यक होता है, तब हम उसकी अनुमति माँगते हैं।

आदेश : जब कोई माननीय व्यक्ति या बड़ा आधिकारी अपनी ओर से वह चाहता है कि उसके मातहत या अधिकार क्षेत्र में आने वाले लोग ऐसा करें या न करें तब वह ‘आदेश’ का रूप लेता है।

आज्ञा : इस शब्द का प्रयोग अक्सर दोनों ही अर्थों में होता है। जब आज्ञा ली जाती है तब वह अनुमति की समानार्थक होती है। जब अधिकारपूर्वक आज्ञा दी जाती है तब वह आदेश के निकट आ जाती है। 

***

अनिवार्य : जिसका निवारण न हो सके या जो टाला या छोड़ा न जा।

आवश्यक : जरूरी। आवश्यक में अनिवार्य जैसी बाध्यता नहीं होती।

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अपराध : नियम या कानून तोड़ना अपराध है, जिसका दंड मिलता है।

पाप : नैतिक, सामाजिक या धार्मिक नियमों का उल्लंघन पाप है।  

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आग्रह : थोड़ा-थोड़ा हठ ।

अनुरोध : प्रार्थना के साथ आग्रह।

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आलोचना : किसी चीज के दोष निकालना आलोचना है।

           समालोचना : गुण-दोषों का सम्यक् विवेचन और मूल्यांकन करना समालोचना है।

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उद्देश्य : जिस सिद्धि की ओर मन प्रवृत्त हो।

ध्येय : निशाना, जिसपर दृष्टि रखकर कार्य किया जाए।

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उन्नति : ऊपर उठकर विकास करना ।

प्रगति : आगे बढ़ना।

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उपस्थिति : आदमियों की ।

            विद्यमानता : वस्तुओं की।

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उपहास : किसी की कमी या अटपटेपन की ओर संकेत करके, प्रत्यक्ष रूप से किसी की हँसी उड़ाना उपहास है। इसमें दूसरों की प्रतिष्ठा गिराई जाती है।

व्यंग्य : किसी की कमी की ओर प्रत्यक्ष रूप से संकेत न करके, घुमा-फिराकर ध्यान आकृष्ट करना, व्यंग्य है। व्यंग्य करने और उन्हें समझने के लिए सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है।  

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उपहार : प्रायः बराबर वालों को जो सामग्री प्रेमपूर्वक पेश की जाती है, वह उपहार है।

भेंट : प्रायः बड़ों को श्रद्धा और नम्रतापूर्वक जो सामग्री प्रस्तुत की जाती है, वह भेंट है।


[हिन्दी शब्द सामर्थ्य (लेखक- शिवनारायण चतुर्वेदी, तुमन सिंह) से साभार]


विशेष

 



शरद पूर्णिमा, महारास एवं गोपी-गीत का महात्म्य

सुरेश चौधरी

महारास शरद पूर्णिमा के दिन रचा गया था। कहते हैं कि यह रात्रि इतनी बड़ी हो गयी थी, जितनी कि छ: महीने का समय होता है, कब रात्रि का समापन हुआ पता ही न चला, भगवान् कृष्ण ने शुद्ध सास्वत भक्ति योग की शिक्षा इस प्रेम योग से दी, ईश्वर ज्ञान से बढ़ कर भक्ति से एवं भक्ति से भी बढ़ कर प्रेम के वशीभूत हो कर भक्त जनों के पास पहुँच जाते हैं।  महारास हेतु शरद पूर्णिमा का समय ही क्यों चुना गया? कारण वैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक है। वर्ष भर में मात्र शरद पूर्णिमा की रात्रि को ही चन्द्रमा अपनी समस्त १६ कलाओं के साथ उदित होता है एवं चन्द्र किरणें इस प्रकार प्रकाशित होती हैं। जो हमें एक विशेष प्रकार की ऊर्जा प्रदान करती हैं जो अमृत तुल्य है।  इसीलिए आज के दिन खीर चंद्प्रभा में रख कर पीते हैं ताकि खीर में बसी अमृत बुँदें शरीर को मिले, वैज्ञानिक दृष्टि से इन १६ कलाओं के चन्द्रमा की रोशनी जो शारीरिक गठन विशेषतः अस्थि के लिए प्रभावकारी होती है, इन किरणों में विटामिन डी भी होता है जिससे आँखों को विशेष लाभ मिलता है।  ये किरणें  आँखों की रेटिना पर सीधा प्रभाव छोडती हैं ।

आध्यात्मिक दृष्टि से चन्द्र कला १६ हैं एवं कृष्ण भी १६ कलाओं को लेकर अवतरित हुए हैं। प्रत्येक कला एक संस्कार की द्योतक हैं सम्पूर्ण कलाओं को एक रात्रि में पा जाना अर्थात जीवन का मोक्ष के करीब हो जाना, अतः इस रात्रि में महारास कर भगवन १६ कलाओं द्वारा गोपियों को जो कि इन्द्रियों को जीत चुकी हैं उन्हें मोक्ष का द्वार दिखाते हैं ।

आइये १६ कलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी लेते हैं :

आपने सुना होगा कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्च्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत आदि ऐसे शब्दों को जिनका संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रहकर बोध करने लगता है वही 16 कलाओं में गति कर सकता है। 

चन्द्रमा की सोलह कला : अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है।

 

उपर्युक्त चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएँ हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है। जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्र की इन सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ। व्यक्ति का देह को छोड़कर पूर्ण प्रकाश हो जाना ही प्रथम मोक्ष है।

मनुष्य (मन) की तीन अवस्थाएँ : प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तीन अवस्थाओं का ही बोध होता है:- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। क्या आप इन तीन अवस्थाओं के अलावा कोई चौथी अवस्था जानते हैं? जगत तीन स्तरों वाला है- 1. स्थूल जगत, जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। 2. सूक्ष्म जगत, जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं और 3. कारण जगत, जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

तीन अवस्थाओं से आगे: सोलह कलाओं का अर्थ संपूर्ण बोधपूर्ण ज्ञान से है। मनुष्‍य ने स्वयं को तीन अवस्थाओं से आगे कुछ नहीं जाना और न समझा। प्रत्येक मनुष्य में ये 16 कलाएँ सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ ज्ञान की सोलह अवस्थाओं से है। इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलते हैं। यथा... अगले पन्ने पर जानिए 16 कलाओं के नाम... इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।

1.अन्नमया, 2.प्राणमया, 3.मनोमया, 4.विज्ञानमया, 5.आनंदमया, 6.अतिशयिनी, 7.विपरिनाभिमी, 8.संक्रमिनी, 9.प्रभवि, 10.कुंथिनी, 11.विकासिनी, 12.मर्यदिनी, 13.सन्हालादिनी, 14.आह्लादिनी, 15.परिपूर्ण और 16.स्वरुपवस्थित।

अन्यत्र  1.श्री, 3.भू, 4.कीर्ति, 5.इला, 5.लीला, 7.कांति, 8.विद्या, 9.विमला, 10.उत्कर्शिनी, 11.ज्ञान, 12.क्रिया, 13.योग, 14.प्रहवि, 15.सत्य, 16.इसना और 17.अनुग्रह।

कहीं पर 1.प्राण, 2.श्रधा, 3.आकाश, 4.वायु, 5.तेज, 6.जल, 7.पृथ्वी, 8.इन्द्रिय, 9.मन, 10.अन्न, 11.वीर्य, 12.तप, 13.मन्त्र, 14.कर्म, 15.लोक और 16.नाम।

16 कलाएँ दरअसल बोध प्राप्त योगी की भिन्न-भिन्न स्थितियाँ हैं। बोध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा के प्रकाश की 15 अवस्थाएँ ली गई हैं। अमावास्या अज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का।

19 अवस्थाएँ : भगवदगीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्म तत्व प्राप्त योगी के बोध की उन्नीस स्थितियों को प्रकाश की भिन्न-भिन्न मात्रा से बताया है। इसमें अग्निर्ज्योतिरहः बोध की 3 प्रारंभिक स्थिति हैं और शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ की 15 कला शुक्ल पक्ष की 01..हैं। इनमें से आत्मा की 16 कलाएँ हैं।

आत्मा की सबसे पहली कला ही विलक्षण है। इस पहली अवस्था या उससे पहली की तीन स्थिति होने पर भी योगी अपना जन्म और मृत्यु का दृष्टा हो जाता है और मृत्यु भय से मुक्त हो जाता है।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ ।

तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥

अर्थात जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।- (8-24)

भावार्थ : श्रीकृष्ण कहते हैं जो योगी अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के छह माह में देह त्यागते हैं अर्थात जिन पुरुषों और योगियों में आत्म ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, वह ज्ञान के प्रकाश से अग्निमय, ज्योर्तिमय, दिन के समान, शुक्लपक्ष की चांदनी के समान प्रकाशमय और उत्तरायण के छह माहों के समान परम प्रकाशमय हो जाते हैं। अर्थात जिन्हें आत्मज्ञान हो जाता है। आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना या देह से अलग स्वयं की स्थिति को पहचानना।

गोपी गीत स्तोत्र (प्रशंसा) के रूप में जाना जाता है, और इस स्तोत्र मात्र शब्दों की माला नहीं बल्कि  गोपियों की प्रेम-भावना की प्रस्तुति है। गोपी-गीत, कृष्ण के यश (प्रसिद्धि) को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता हैयूँ तो ऐश्वर्य  बिना (धन) यश संभव नहीं हो सकता। यश इसके बिना प्रसारित नहीं किया जा सकता। ऐश्वर्य  गोपी-गीत में बहुत अच्छी तरह से माधुर्य लिए प्रवाहित होता है, अतः यह गीत एक मादकता लिए हुए है ।  इस मादकता को इंदिरा छंद ही पूर्ण रूप से न्याय दे सकता था अतः इसे इसी छंद में कहा गया ।  श्रीमदभागवतम पांचवा वेद माना जाता है, इसके हर शब्द गूढ़ अर्थ के साथ शोभित हैं, सम्पूर्ण सृष्टि की रचना से लेकर २२ अवतार तक  का वर्णन इसमें किया गया है, पहले नौ स्कंध श्रवणीय हैं, जिनमे कथानक के रूप में विभिन्न कथाएं बताई गयी हैं, दसवा स्कंध प्रभु की लीला दर्शाता है, एवं सम्पूर्ण भागवत का एक तिहाई भाग दशम स्कंध में है, ३३५ अध्याय में से ९० अध्याय कहे गए हैं प्रभु की लीला के बारे में, अतः दशम स्कंध को भागवत का प्राण माना गया है, दशम स्कंध में २९वे अध्याय से ३३वे अध्याय में गोपियों के साथ रास का वर्णन है, रास जिसे आधुनिक युग में अर्थ बदल कर घृणित बना दिया गया है, वह एक सच्चा अध्यात्म का एवं आस्था का द्योतक है, गोपी  शब्द दो अक्षरों से बना है गो धातु इन्द्रियों को दर्शाती हैं एवं पी तत्सम पीने को अथार्थ इन्द्रियों को पीकर वश में करना, जो इन्द्रियों को वश में कर ले वह गोपी और रास दर्शाता है की किसी भी स्थिति में काम, निश्छल भक्ति प्रेम से ऊपर नही है, जब प्रभु ने रास लीला की थी उस समय उनकी आयु मात्र ७ वर्ष थी, क्या ७ वर्ष की आयु के बालक के साथ काम से युक्त नृत्य हो सकता है, जो वर्णन है उसमे प्रभु की वेणु धुन से खींची सारी गोपियाँ चली आ रही थी उनमे आयु का कोई भेद नही था, बृद्ध भी थी, बालिका भी थी, वेणु की धुन एकाग्रचित होकर ध्यान मग्न होने की दशा है, जब हम एकाग्र होकर किसी भी तरफ ध्यान मग्न हो जाते हैं तो किसी भी अन्य वस्तु का असर नही होता, उसी अवस्था में गोपियाँ परम साधना की अवस्था में थी, उन्हें सब तरफ प्रभु ही प्रभु नज़र आ रहे थे हर गोपी के साथ एक प्रभु, क्या यह लीला किसी भी मायने में विकृत हो सकती है, कहते हैं श्री राम का चरित्र अनुकरणीय है उन्होंने सब कुछ कर के दिखाया, श्री कृष्ण का चरित्र श्रवणीय है उन्होंने सब कुछ कह कर बताया।

गोपी गीत ३१वें अध्याय में वर्णित है यह विशुद्ध  अध्यात्म-प्रेम-भक्ति-अनुराग का द्योतक है, इसमें प्रभु से मिलन की सीधी स्थिति बताई गयी है, अतः इसे प्राणों का प्राण कहते है, कोई भी भागवत कथा सम्पूर्ण गोपी गीत के बिना अधूरी कही जाती है ।  

इंदिरा का मतलब होता है ऐश्वर्य, एवं जो ऐश्वर्य दान से हो अतः आध्यात्मिक धन दान करने वाला यह गीत प्रभु को आकर्षित करता है ।  गोपियाँ जब इस ऐश्वर्य के दान  को ग्रहण करती हैं तो यह मात्र भक्ति का वरदान है, जो कि भगवान् कृष्ण के रूप में उन्हें चाहिए, अन्य कुछ नहीं, कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं ।  

छंद शास्त्र में इंदिरा छंद अन्य दो नामों से और जाना जाता है १) ललित छंद २) कनक मंजरी छंद ज्यों कनक मंजरी पुष्प में एक मादकता होती है वैसे ही इस गीत में एक शिष्ट मादकता हैगोपी-गीत रुषी-रूपा और श्रुति-रूपा गोपियों द्वारा गाया गया बताया जाता है और वे इंदिरा छंद की ज्ञाता थीं ।  

इस छंद के प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं जो शरणागति एकादशी को बिम्बित करते हैं, और यह एकादस ही कृष्ण को गीत के पश्चात् प्रकट होने के लिए विवश करता है ।  लघु गुरु के क्रम से सज़ा यह छंद विरह एवं रुदन की लय के लिए जाना जाता है, यह लघु गुरु का क्रम ही इस गीत को लय प्रदान करता है एवं यह भी इंगित करता है कि कब छंद पश्चात् रुदन की सिसकारी आती है, यह लय ही ध्वनि योजना कहलाती है जो एक प्रेरक सन्देश देती है। इसी सन्देश को पाकर श्री कृष्ण तत्काल प्रकट हो जाते हैं।

 

शरद श्वेत  सित संहृता, शीतल समीर सैन

नीरव  नीरज नीर  सम, नाचत  नटखट नैन

 

श्वेत  हंस  का  अबद्ध कलरव, सस्मित  नारी सा परिभाषित

ध्वनि मंजीर    गौर  वर्ण  देह, चन्द्र  नायिका  सा  आभाषित

रजनी  का  शीतल  विधु करता, उद्वेलित गहन शांत मन को

श्वेत  मालती  विकसित बनती, सप्त  वर्णी शुक्ल उपवन को

 

जलरहित  श्वेत मेघ  नभ विचर, देख रहे अब अवनी तट को

रजतशंखमृणाल  से  हैं  येचामर डुलाते वंशीभट को

पावस  पश्चात्  नील अम्बरकरते अ-प्रतिम  शोभा  मंडित

लाल  लाल  पुष्पनीलाकाश, कांतिमय  करें मन उत्कंठित

 

मनमोहक  प्रभा   है  प्रसारित, दे  दृगानंद   तृप्त  विधु   करे

मानो   विप्रयोगित   विषदिग्धशर  आहत प्रेयषी  दुख भरे

शीतल अनिल रवि प्रभात की, तुहिन  कणों को सुखा रही है

फलाच्छादित  वृक्ष शाखा को, प्रकृति  भूमि पर झुका रही है

 

मेघविहीन  व्योम  विभा  कांतिलेकर यह सुशोभित हो रहा

मरकत मणि विधुजल से विकसित,रक्तोपल प्रभाषित हो रहा

महारास  करने  सजी   धरा, जमुना  तट   की  पावन  देखो

पुर्ण   शरद   आई   मनमोहकमनमोहन  का  नर्तन  देखो

 

दुष्ट दलन को जगत तरन को, सृष्टि गीत सुनने लगती है

तब चिर निंद्रा चीर मनुज की, ऋतु शंख बजाने लगती है

माँ सिंह वाहिनी है आती, आसीन हो केहरि पर देखो

महिष वध को दुर्गेश नंदिनी, लेकर शस्त्र खड़ग कर देखो ।

 

कालिंदी  तट  को  जब  शीतल, समीर सुरभित कर जाती है

मध्य  रात्रि में  चंचल जल पर, जब  चन्द्र प्रभा  बिखराती है

हृदय  पियूष  कुंड  स्पंदित  हो, धम धम कर शोर मचाता है

हे   श्याम  देख    तेरी  लीलाअंतस  हर्षित  हो  जाता  है

 

नम  निशा  का  पूर्ण  शरद  चन्द्र, चाँदनी से नभ भिंगोता है

खिली  चांदनी  में  निश्चिंत  हो, प्रियतम सारा  ब्रज  सोता है

तब  याद  आता  है  वो  रास, और  हृदय  विह्वल  होता है

वृष्णिधुर्य   तेरे  वियोग    में, ये   चित्त   द्रवीभाव   रोता  है

 


सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

 

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...