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शुक्रवार, 27 जून 2025

कविता


क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये

लक्ष्मी नितिन डबराल

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये।

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये।।

 

नयनों में तेरे काजल है घुला,

अधरों पर है स्मित रेखाएँ ।

केशों में उलझी रात ढली,

क्यों सजाती हो ये अलकाएँ ।।

तुम एक झलक जो देखो तो,

हो जाए उर तार-तार प्रिये ।

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये ।।

 

है सौम्य छवि नैना मृग से,

है गज गामिनी सी चाल प्रिये।

हैं होंठ रसीले नारंगी,

करते हैं बुरा मेरा हाल प्रिये ।।

याचक ये विकल तेरे द्वार पड़ा,

दे दो बाँहों का हार प्रिये ।

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये।।

 

है सादगी ही पहचान तेरी,

आत्मा का निर्मल गान है तू ।

बिना शृंगार भी अनुपम है,

ममता करुणा का मान है तू।।

सच्चा शृंगार यही, हे रति!

तुममें न कोई भी विकार प्रिये।

 

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये ।।

 

तुम हो अनुपम कृति ईश्वर की,

सौंदर्य में न इसे बाँधों तुम ।

कैसे परिभाषित करूँ तुम्हें,

शब्द सभी हो जाते हैं गुम ।।

तुम अवर्णनीय, अलौकिक हो,

तुम शब्दों के भी पार प्रिये।

क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये।।

 


लक्ष्मी नितिन डबराल

मुजफ्फरनगर

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

कविता

 


आधार छंद- मदिरा सवैया


लक्ष्मी नितिन डबराल 

श्यामल गात सिया मनभावन श्री रघुनंदन चंदन हैं ।

नेत्र विशाल धनुर्धर कुंचित केश सदैव निरंजन हैं ।।

राम सिया अरु लक्ष्मण श्री प्रभु पावन मारुति नंदन है ।

आप सभी चरणों पर शीश झुका नित चंदन वंदन है ।।

 

अंजनु लोचन पीत सुशोभित वस्त्र सदा हिय भंजन है।

कोमल अंग पराक्रम भूरि सदा सिय राघव रंजन है ।।

मोहक रूप मनोहर कांति सिया प्रिय ये छवि खंजन है ।

आप सुजान सुनो विनती यह दास सदा भय गंजन है ।।

 



लक्ष्मी नितिन डबराल

मुजफ्फरनगर

 

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कविता

 


हिन्दी हिन्दुस्तान की

लक्ष्मी नितिन डबराल

 

सदा रही है, सदा रहेगी, हिन्दी हिन्दुस्तान की ।

सदियों से है और रहेगी, शान ये हिन्दुस्तान की ।।

 

कितने आक्रांता आए यहाँ, आए और आकर चले गए ।

मिटाना चाहा निज भाषाओं को पर, हिन्दी को ना मिटा पाए ।।

जड़ें हैं गहरी इतनी इसकी, ये राष्ट्रभाषा भारत महान की ।

राष्ट्र पथ पर अग्रसर सदा, ये हिन्दी हिन्दुस्तान की ।।

 

पढ़ो समझो निज भाषा को, भाषा नहीं यह अभियान है ।

इसकी रक्षा करना तो हर भारतवासी का काम है ।।

पढ़ो पढ़ाओ निज भाषा को, यह भाषा है ज्ञान-विज्ञान की ।

नहीं मिटी है नहीं मिटेगी, ये हिन्दी हिन्दुस्तान की ।।

 

जब तक गाँवों-गाँवों में हिन्दी भाषा को सम्मान मिलेगा ।

ऐसे ही यह फले फूलेगी हिन्दी भाषी को अभिमान मिलेगा ।।

इसके जैसी दूजी नहीं कोई, यह भाषा है सम्मान की ।

सदियों से है और रहेगी शान यह हिंदुस्तान की ।।

सदा रही है, सदा रहेगी, हिन्दी हिन्दुस्तान की....

***



लक्ष्मी नितिन डबराल

10 पटेल नगर, नई मण्डी

मुजफ्फरनगर 251001

उत्तर प्रदेश


जुलाई 2025, अंक 61

  शब्द-सृष्टि जुलाई 2025 , अंक 61 परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख प...