कर्मयोगी
माधव
नागदा
गणमान्य,
नौकरीपेशा, रिटायर्ड, पंच,
सरपंच सब आ गए। केवल योग शिक्षक का आना शेष था।
पेमा काका
कन्धे पर हल लादे जा रहा था। उसके दूसरे हाथ में बैलों की रास थी। इतने सारे लोगों
को स्कूल के यहाँ इकट्ठा देख उसके पैर ठिठके, न
चाहते हुए भी पूछ बैठा, “आज सुबै-सुबै कोई खेल है कै?”
“अरे भोगा, आज योगा है योगा। इत्तोई नी जाणे। सारी
दुनिया करे है। तू भी आ जा।” एक वार्ड पंच ने लगभग डाँटते हुए कहा।
“आऊँ
होकम।”
“होकम-वोकम
नहीं। सरपंच साब भी आए हैं। बुलावे है।”
“बस,
यो गयो और यो आयो। आप चालू करो।” काका को कुछ समझ में नहीं आया। वह
खेतों की तरफ जाने को आतुर बैलों को लेकर चल पड़ा।
योग
आधे घंटे का था किन्तु दो घंटे लग गए। प्रशिक्षक ने एक-एक आसन की व्याख्या की।
भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम,
भ्रामरी की बारीकियाँ समझाईं। फायदे गिनाये। खुद करके दिखाया।
तत्पश्चात योगार्थियों से करवाया। योगोपरांत सरपंच साहब की तरफ से चाय-नाश्ता,
विकास की चर्चा, अच्छे दिनों की बातें। फिर
विसर्जन।
पेमा
काका का खेत रास्ते में था। लोगों ने देखा कि काका दीन-दुनिया से बेखबर,
हल हाँकने में मगन है। पीछे-पीछे उसकी पत्नी मक्का का एक-एक दाना
यों छोड़ती जा रही है जैसे बेशकीमती मोती हो। लगभग आधे खेत की बुवाई हो चुकी है।
योगगुरु
रूका। सभी रुक गए। योगी ने हाथ जोड़े। लोग समझे नहीं। इधर तो पश्चिम है। सूर्य उधर
हैं,
पूरब की तरफ। कहीं गुरु को दिशाभ्रम तो नहीं हो गया? शहर का आदमी है, पहली बार गाँव आया लगता है या फिर
काका जैसे अनाड़ी को योग कराने की मंशा है ?
योगगुरु
लोगों का असमंजस ताड़ गया। हल चलाते काका की ओर देखते हुए दोनों जुड़े हाथ माथे के
लगाए,
फिर सिर जरा झुकाया और उच्च स्वर में बोला, “एक
योगी का कर्मयोगी को प्रणाम।”
लालमादड़ी
नाथद्वारा
(राजस्थान)
बहुत सार्थक सन्देश देती सुंदर लघुकथा।कर्मयोग समस्त योग-साधनाओं से बढ़कर है।बधाई माधव नागदा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश देती लघुकथा। हार्दिक बधाई
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