रविवार, 20 जून 2021

कविता


प्रेमयोग

डॉ. पूर्वा शर्मा

बेसुध, बिना हलचल के, यूँ ही पड़ी थी ‘शवासन’ में ज़िंदगी,

तुम्हारे स्पर्श से, हौले-से उठ बैठी ‘सुखासन’ में यह ज़िंदगी।

 

सुखों का ‘पूरक’, दुखों का ‘रेचक’ और सुकून का ‘कुंभक’ हुआ,

तब जाकर कहीं प्रेम का ‘प्राणायाम’ लयबद्ध गति से आरंभ हुआ।

 

इसके निरंतर अभ्यास से, एकाग्र हुआ ये विचलित मन,

मन में बस ‘धारणा’ तुम्हारी, और बनी मैं प्रेम की पुजारन।

 

तुम्हारे सानिध्य में पाया मैंने, प्रेम साधना का अमूल्य ज्ञान,

तुम्हारे साथ बीताए प्रत्येक पल यूँ लगे, जैसे कर रहे हो ‘ध्यान’।

 

प्रेम सागर में गहरे और गहरे डूबते गए, बन गए हम प्रेम जोगी,

प्रेम सिद्धि पाने मचल उठे, जैसे ‘समाधि’ लेने निकला हो कोई योगी।

 

मैं–तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,

बड़ा ही दुर्लभ है यह प्रेमयोग, जीवन पर्यंत चलता रहे हम दोनों का मनोयोग।।

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शवासनमृत की तरह शरीर की स्थिति

सुखासन लम्बे समय तक आराम से बैठने वाली स्थिति   

पूरकसाँस भरना (Inhale)

रेचक  साँस छोड़ना (Exhale)

कुंभकसाँस रोकना (Hold breath)

प्राणायाम नियंत्रित गति में साँस लेना, रोकना और छोड़ना

धारणा एकाग्रता/ध्यान का पूर्व चरण (Concentration)

ध्यान चित्त को एकाग्र करके किसी लक्ष्य पर केन्द्रित करना (Meditation)

समाधि संसार के द्वंद (दुःख आदि) से विरक्ति/ परमानंद की अनुभूति

हठयोग  एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति

डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

9 टिप्‍पणियां:

  1. आसन,प्राणायाम,धारणा, ध्यान से मिलन की महासमाधि तक पहुँचाने वाली सर्वथा अभिनव'प्रेमयोग'की कविता हेतु बहुत बहुत बधाई डॉ.पूर्वा जी।

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  2. Very meaningful and thoughtful collection released on the occasion of the International Yoga Day !!!

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  3. वाह पूर्वा, बहुत सुंदर कविता । सारे योग और मन की भावना सिमट आई इस कविता में । लाजवाब । इस कविता को पढ़ने के बाद योग /ध्यान से कोई अछूता नही रहेगा ।

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  4. सुंदर एवं सहज प्रस्तुति...
    कविता से जुड़े कठिन शब्दों के सरल अर्थ को अंत में जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह बहुत पसंद आया Ma'am.

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  5. "मैं–तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,

    बड़ा ही दुर्लभ है यह प्रेमयोग, जीवन पर्यंत चलता रहे हम दोनों का मनोयोग।।

    - निःसंदेह प्रेम दो हृदयों/आत्माओं के 'योग' की 'साधना' है, जिसमें 'हठयोग' और 'मनोयोग' सहित निःस्वार्थ समर्पण का भाव अनिवार्य होता है। 'योग' की शब्दावली में 'प्रेमयोग' को परिभाषित करती बहुत सुन्दर व अनूठी काव्यरचना के लिए हार्दिक बधाई!

    - डाॅ. कुँवर दिनेश सिंह, शिमला

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  6. वाह।
    बहुत ही सुन्दर।
    हार्दिक बधाई आदरणीया।

    सादर

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  7. तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,
    वाह!
    अति सुन्दर व सुखकारी सृजन प्रिय पूर्वाजी।

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