प्रेमयोग
डॉ. पूर्वा शर्मा
बेसुध, बिना हलचल के, यूँ ही पड़ी थी ‘शवासन’ में ज़िंदगी,
तुम्हारे स्पर्श से, हौले-से उठ बैठी
‘सुखासन’ में यह ज़िंदगी।
सुखों का ‘पूरक’, दुखों का ‘रेचक’ और
सुकून का ‘कुंभक’ हुआ,
तब जाकर कहीं प्रेम का ‘प्राणायाम’ लयबद्ध गति से आरंभ हुआ।
इसके निरंतर अभ्यास से, एकाग्र हुआ ये विचलित मन,
मन में बस ‘धारणा’ तुम्हारी, और बनी मैं प्रेम की पुजारन।
तुम्हारे सानिध्य में पाया मैंने, प्रेम साधना का अमूल्य ज्ञान,
तुम्हारे साथ बीताए प्रत्येक पल यूँ लगे, जैसे कर रहे हो ‘ध्यान’।
प्रेम सागर में गहरे और गहरे डूबते गए, बन गए हम प्रेम जोगी,
प्रेम सिद्धि पाने मचल उठे, जैसे ‘समाधि’ लेने निकला हो कोई योगी।
मैं–तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’,
प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,
बड़ा ही दुर्लभ है यह प्रेमयोग, जीवन पर्यंत चलता रहे हम दोनों का मनोयोग।।
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शवासन – मृत की तरह शरीर की स्थिति
सुखासन – लम्बे समय तक आराम से बैठने वाली स्थिति
पूरक – साँस भरना (Inhale)
रेचक – साँस छोड़ना (Exhale)
कुंभक – साँस रोकना (Hold breath)
प्राणायाम – नियंत्रित गति में साँस लेना, रोकना और छोड़ना
धारणा – एकाग्रता/ध्यान का पूर्व चरण (Concentration)
ध्यान – चित्त को एकाग्र करके किसी लक्ष्य पर केन्द्रित करना (Meditation)
समाधि – संसार के द्वंद (दुःख आदि) से विरक्ति/ परमानंद की
अनुभूति
हठयोग – एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
आसन,प्राणायाम,धारणा, ध्यान से मिलन की महासमाधि तक पहुँचाने वाली सर्वथा अभिनव'प्रेमयोग'की कविता हेतु बहुत बहुत बधाई डॉ.पूर्वा जी।
जवाब देंहटाएंVery meaningful and thoughtful collection released on the occasion of the International Yoga Day !!!
जवाब देंहटाएंवाह पूर्वा, बहुत सुंदर कविता । सारे योग और मन की भावना सिमट आई इस कविता में । लाजवाब । इस कविता को पढ़ने के बाद योग /ध्यान से कोई अछूता नही रहेगा ।
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सहज प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकविता से जुड़े कठिन शब्दों के सरल अर्थ को अंत में जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह बहुत पसंद आया Ma'am.
लाजवाब
जवाब देंहटाएं"मैं–तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,
जवाब देंहटाएंबड़ा ही दुर्लभ है यह प्रेमयोग, जीवन पर्यंत चलता रहे हम दोनों का मनोयोग।।
- निःसंदेह प्रेम दो हृदयों/आत्माओं के 'योग' की 'साधना' है, जिसमें 'हठयोग' और 'मनोयोग' सहित निःस्वार्थ समर्पण का भाव अनिवार्य होता है। 'योग' की शब्दावली में 'प्रेमयोग' को परिभाषित करती बहुत सुन्दर व अनूठी काव्यरचना के लिए हार्दिक बधाई!
- डाॅ. कुँवर दिनेश सिंह, शिमला
Wah kya baat he .bhut sundar kavita prem yoga par
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर।
हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर
तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,
जवाब देंहटाएंवाह!
अति सुन्दर व सुखकारी सृजन प्रिय पूर्वाजी।
योग के शब्दों का अद्भुत उपयोग किया है आपने..
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