गुरुवार, 10 जून 2021

कविता

 

योग

डॉ. जेन्नी शबनम

जीवन जीना सरल बहुत

अगर समझ लें लोग

करें सदा मनोयोग से

हर दिन थोड़ा योग।

 

हजारों सालों की विद्या

क्यों लगती अब ढोंग

आओ करें मिलकर सभी

पुनर्जीवित ये योग।

 

साँसे कम होती नहीं

जो करते रहते योग

हमको करना था यहाँ

अपना ही सहयोग।

 

इस शतक के रोग से

क्यों जाते इतने लोग

अगर नियम से देश में

घर-घर होता योग।

 

दे गया गहरा ज्ञान भी

कोरोना का यह सोग

औषधि लेते रहते पर

संग करते हम सब योग।

 

चमत्कार ये योग बना

दूर भगा दे रोग

तन अपना मंदिर बना

पूजा अपना योग।

 

जीवन के अवलम्ब हैं

प्रकृति, ध्यान व योग

तन का मन का हो नियम

सरल साधना जोग।


डॉ. जेन्नी शबनम

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के अवलम्ब हैं
    प्रकृति, ध्यान व योग
    तन का मन का हो नियम
    सरल साधना जोग।
    बहुत सुंदर कविता।बधाई डॉ.जेन्नी शबनम जी।


    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर कविता। बधाई जेन्नी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस कविता के जरिए आपने बहुत ही अच्छी बात कही Ma'am कि...

    " जीवन जीना सरल बहुत
    अगर समझ लें लोग
    करें सदा मनोयोग से
    हरदिन थोड़ा योग । "

    सच में Happiness is Yoga...🙂

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना यहाँ प्रकाशित करने के लिए पूर्वा जी को धन्यवाद. रचना की सराह्मना के लिए आप सभी का हृदय से आभार.

    जवाब देंहटाएं

  5. बहुत सुंदर सृजन!
    हार्दिक बधाई जेन्नी जी।

    जवाब देंहटाएं

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