शुक्रवार, 18 जून 2021

आलेख

 


योग : स्वरूप एवं महत्त्व

डिंपल जे. राणा (दिव्यता)

भगवती नारायणी

तव् चरणों में प्रणाम

योग हमारी भारतीय संस्कृति की बहुत ही मूल्यवान विरासत है, जिसकी चर्चा भारतीय धर्मों एवं दर्शनशास्त्र में पाई जाती है। दर्शनशास्त्र में योग संबंधी ज्ञान बहुत पहले से, वैदिक कल से ऋषि-मुनियों द्वारा बताया गया है। इस तरह योग वैदिक काल के ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया अनमोल ज्ञान का भंडार हैं। योग एक दर्शन विद्या है।

हमारी संस्कृति में वेदोक्त सिद्धांतों के आधार पर दर्शनशास्त्रों ने विकास किया जिसमें सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक्, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा नाम से प्रचलित षड्दर्शन का समावेश हैं। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने जीवन-मृत्यु, आत्मा जगत के रहस्यों को जान ने के लिए गहन-गंभीर चिंतन किया। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तात्विक विचार किया।

स्मृतिओं और पुराणों के जरिए भी योग के अभ्यास द्वारा प्राप्त होने वाली दिव्यता का सुंदर और मधुर रूप में अनुभव किया जा सकता है। इन चिंतकों और धर्मगुरुओं ने बहुत पहले ही योग के  महत्त्व को बताते हुए इसे जीवन का बहुत ही मूल्यवान हीरा या सच्चा मोती बताया है। बुद्ध और जैन महात्माओं ने भी अपने-अपने दृष्टिकोण से योग पर विचार  करते हुए योग का महत्त्व बताया है। तंत्र शास्त्र में भी योग का महत्त्व बताया गया है। इस तरह  योग भारतीय संस्कृति और  सभ्यता का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

योग की परिभाषा

पतंजलि योग शास्त्र में योग को मन की स्थिरता-एकाग्रता बताया गया है।

योगचित्तवृति निरोध: ।।

महर्षि याज्ञवल्क्य ने जीवात्मा और परमात्मा के संयोग की अवस्था को योग नाम दिया  है। आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है।

संयोगो योग इत्युक्तों जीवात्मपरमात्मनोः।

हेमचंद्रजी ने योगशास्त्र में योग की परिभाषा देते हुए बताया है कि योग मन की वो स्थिरता है, जो हर चिंताओं से दूर रखता है।

सर्वचिंता परित्यागो निश्वंतो योग उच्यते।

स्वामी शिवानंद जी ने योग की परिभाषा देते हुए कहा कि योग वो व्यवस्था या स्थिति है जो खुद को सुधारती है। अपने शरीर -मन-आत्मा का विकास करते हुए जो बाद में ईश्वर से जोड़ देता है।

रमण महर्षि की दृष्टि से योग सर्वोच्च चेतना शक्ति से जोड़ने वाला माध्यम है। अहंकार का नाश करने के बाद सर्वोच्च चेतना शक्ति ईश्वर से जोड़ देती है।

योग साधना से समाधि की प्राप्ति होती है फिर आत्म साक्षात्कार करके दिव्य शक्ति और आनंद का अनुभव किया जा सकता है।

कर्म में योग का महत्त्व:-

कर्मयोग के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने भगवतगीता में बहुत ही सुंदर तरीके से अर्जुन को समझाते हुए छठे अध्याय में योग का महत्त्व स्पष्ट किया है। योग वो स्थिति प्राप्त करवाता है जो हर परिस्थिति में मन को शांत, निर्भय-स्थिर बनाता है।

समत्वं योग उच्यते।

बाद में यही अवस्था कर्म में  स्थिरता लाती है।

योग: कर्मसु कौशलम।

कर्म में कुशलता प्राप्त करना ही योग है, जो व्यक्ति कर्म को भगवान का ही प्रसाद मान के स्वीकार करता है वही कुशलता पूर्वक कर्म कर सकता है ।

योग जीवन में उत्साह प्रसन्नता आनंद की प्राप्ति करवाता है। इसलिए व्यक्ति के हर कर्म में पूर्णता लाने में योग सहाय रूप है। कर्म की कुशलता से ही सफलता प्राप्त होती है।हर कर्म ईश्वर को समर्पित करते हुए करने से कर्म प्रसाद बन जाता है।निष्ठापूर्वक, प्रामाणिकता से ,सात्विक विचार से किया हुआ कर्म श्रेष्ठ होता है। जो योग से प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि योग व्यवहार को, मन व शरीर को शुद्ध-पवित्र बनाने में मदद करता है।

भक्ति में योग का महत्त्व :-

भक्ति भी ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है। ईश्वर के प्रति पूरी तरह से शरीर मन आत्मा से समर्पित रहते हुए भक्त ईश्वर में लीन हो जाता है और सच्ची भक्ति से भक्त की, साधक की सभी  बुराईयाँ दूर हो जाती है और सच्चे हीरे की तरह उसका व्यवहार-आचरण चमकने लगता है। योग के द्वारा भक्ति मार्ग सरल बन जाता है। क्योंकि भक्ति मार्ग में शरीर का स्वस्थ होना, मन का (आध्यात्मिक)एकाग्र होना, व्यवहार-आचरण का शुद्ध-पवित्र होना बहुत ही जरूरी है। योग के द्वारा शरीर की स्वस्थता, मन की शुद्धता-पवित्रता प्राप्त की जा सकती है।

जितने भी योगी पुरुषों ने, ऋषिमुनिओं ने, सन्तपुरुषों ने योग की परिभाषा दी है उसका सार यही है कि योग मन को एकाग्र करता है, समाधि की ओर ले जाता है, परमशक्ति से जोड़ देता है ।

भक्ति में ध्यान लगना और मन को एकाग्र रखना बहुत जरूरी है और लक्ष्य पर पूरी तरह से केंद्रित करने में योग सहायता करता है। अगर मन विकारों में इंद्रियों में बह जाता है तो भक्तिमार्ग में बहुत कठिनाइयाँ आती हैं और साधक अपने ध्येय से भटक जाता है।

योग के यम-नियम-आसन-प्रणायाम-प्रत्याहार जो बहिरंग है, उसमें  मन की स्थिरता प्राप्त होती है और ध्यान की भूमिका आसान हो जाती है। धारणा-ध्यान-समाधि जो अंतरंग है उसमें  साधक सरलता से पहुँच जाता है ।

मीराबाई, गुरु रामकृष्ण परमहंस जैसे महात्माओं भक्ति मार्ग में ईश्वर की प्राप्ति करके समाधि में  लीन हो गए।

कबीर दास जी ने सत्य की खोज के लिए आजीवन प्रयोग किए । कबीर जी की वाणी में  वो लता है जो  योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई।

मोही तोही लागी नहीं छूटे - मोही तोही लागी नहीं छूटे,

जैसे कमल पत्र जलवासा ऐसे, तुम साहिब हम दासा,

जैसे चकोर तकत नित चंदा ऐसे, तुम साहिब हम बंदा,

कहे कबीर हमार मन लागा, जैसे सरिता सिंध समाई….

दैनिक जीवन में  योग का महत्त्व:-

योग की जरूरत तब ज्यादा होती है जब हमें यह लगे कि हम ईश्वर से अलग है तब निश्चित रूप से योग हमारी आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।  योग ही हमारे शारीरिक मानसिक तनाव-विकारों को दूर करके हमें शांति व आनंद का अनुभव कराता है ।

भवतापेन तप्तानाम् योगो हि परमौषधम्।।

योग ही सही मायने में उन लोगों के लिए एक असरकारक औषधि का काम करता है जो संसार के तापों से, आधि-व्याधि-उपाधि से पीड़ित है। योग से अच्छी सेहत, उत्साह, दृढ़ मनोबल तथा निर्णय शक्ति मिलती है।

योग से शारीरिक-मानसिक-आध्यत्मिक प्रगति एवं शक्ति प्राप्त होती है जो जीवन को सफल बनाती है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले जाती है।

योग व्यक्ति को जागरूकता, चेतना एवं उर्जा प्रदान करता है। अपने प्रति, दूसरों के प्रति, प्रकृति के प्रति, हर जीव और वैश्विक चेतना शक्ति के प्रति हर चीज का महत्त्व समझ सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है –

नहि कल्याणकृत कश्चित दुर्गतिं तात गच्छति ।

one who does good never comes to grief

हम देखते हैं कि वर्तमान परिस्थितियाँ पहले से ज्यादा विपरीत है, कष्टदायी है जिसमें मनुष्य ज्यादा बीमारियों का, अस्वस्थता का, अशांति का अनुभव कर रहा है। जीवन के वास्तविक आनंद को वह भूल चुका है। ऐसे वक्त में  योग ही इंसान को भटकने से बचाता है।

योग बहुत बड़ा विज्ञान है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों का ज्ञान गहन है। योग साधना आसनों का अभ्यास एक विशिष्ट व्यायाम है जिसमें हरेक अंगों-उपांगों पर असर होता है । आंतरिक मालिश मिलने से अंगों-उपांगों की कार्य क्षमता बढ़ती है । शरीर सुदृढ़ बनता है और प्राणायाम से बौद्धिक विकास होता है। मन को एकाग्र करता है जो सफल जीवन के लिए बहुत जरूरी है।

योग जीवन जीने की कला है। बेशक आज के समय में मनुष्य योग को सही तरीके से अपनाकर अपने जीवन को सुखी सुन्दर एवं स्वस्थ बना सकता है। जीवन को सफल बनाने में योग की भूमिका महत्वपूर्ण कही जा सकती है। यह योग जीवन जीने की कला है।


डिंपल जे. राणा (दिव्यता)

योग शिक्षिका (योग निकेतन)

वड़ोदरा(गुजरात)


7 टिप्‍पणियां:

  1. Pranam guru, bahut hi aache se yog ka mahatv samjaya hai aapne.

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  2. योग के महत्व को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में बहुत ही सुंदर तरीक़े से प्रस्तुत किया है।

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  3. महत्वपूर्ण जानकारी को सहज, सरल ढंग से बताया गया है। बधाई

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  4. પરમ પૂજ્ય વિષ્ણુ પ્રસાદ આચાર્યજી શ્રી યોગાચાર્યા અને સૌના વહાલા ગુરુજી ની અનન્ય ભાવથી સેવા કરનાર દિવ્યતા બહેન યોગ શિક્ષિકા. આપના આ યોગ વિશેના સુંદર સંક્ષિપ્ત વિચારો ની ટીપ્પણી કરવાને બદલે તમારા આ પ્રયાસ ને હ્રદય પૂર્વક વંદન અને મારી શુભેચ્છાઓ. Kanu Gandhi

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  5. Very informative, easy to understand and motivating Yoga Teacher, a true Guru. Namaste!!!

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  6. Woulderful and well explained. Divytaben is not only good yoga practitioner but very good teacher and now it realised she is excellant writer. Keep it up...Good Wishes...

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