गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

फरवरी 2024, अंक 44

 


शब्द-सृष्टि

फरवरी 2024, अंक 44


शब्द संज्ञान – आजन्म – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

शब्द-ज्ञान – डॉ. अशोक गिरि

व्याकरण विमर्श – आसन्न भूतकाल – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

विशेष – ज्ञानपीठ पुरस्कार : भाषा-सेतु की रचना – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

कविता – सूरज संग स्त्री का नाता – सत्या शर्मा 'कीर्ति'

संस्मरण – केदारनाथ सिंह – इंद्रकुमार दीक्षित

कविता – एक मुट्ठी धरती और आकाश – डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

कथा – शचीपुत्र जयंत की कथा – सुरेश चौधरी

कविता – संत सिरोमणि रविदास – गोपाल जी त्रिपाठी

काव्य विमर्श – ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

लघुकथा –1. सच्चा प्यार 2. ज़िन्दगी – अशोक भाटिया

कविता – स्मृतियाँ – कुलदीप आशकिरण

संस्मरण – एक अति सहज व्यक्ति : डॉ. शंभुनाथ जी – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

सामयिक टिप्पणी – लखपति दीदी : नारी शक्ति की सुध – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

समाचार – ‘रामायण में सामरिक संस्कृति’ को पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार

चित्र कविता – डॉ. पूर्वा शर्मा

चित्र कविता

 








समाचार

 

रामायण में सामरिक संस्कृति को पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार

रामायण में सामरिक संस्कृति' पुस्तक के लेखक सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी (ललितपुर, उत्तर प्रदेश) डॉ. अनूप कुमार गुप्ता को उत्तर प्रदेश शासन की योजना के तहत राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उप्र द्वारा आयोजित वार्षिक पुरस्कार सम्मान समारोह 2023-24 में 'दीर्घकालीन साहित्य सेवा' के लिए पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपए के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह पुरस्कार समारोह 3 मार्च को लखनऊ स्थित मालवीय सभागार में आयोजित किया जाएगा। यह जानकारी राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश कुमार मिश्रा व महामंत्री डॉ. सीमा गुप्ता ने संयुक्त रूप से दी।

के एम मुंशी भारत विद्या केंद्र भारतीय विद्या भवन (दिल्ली) की डीन डॉ. शशिबाला ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है कि रामायण में युद्ध-नीति पर दो विरोधाभासी पक्ष स्पष्ट परिलक्षित होते हैं - एक आक्रामक एवं निरंकुश तथा दूसरा धर्माधारित एवं मर्यादित। इस पुस्तक से यही निष्कर्ष निकलता है कि जब कभी भी धर्म की रक्षा का प्रश्न आया तो राम ने युद्ध के मार्ग का अवलंबन किया, परंतु कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया।

पुरस्कृत लेखक डॉ. अनूप कुमार गुप्ता मूल रूप से उरई स्थित विजय नगर निवासी हैं और ललितपुर के जिला लेखा परीक्षा अधिकारी कार्यालय में सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर तैनात हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उरई के सनातन धर्म इंटर कॉलिज से प्राप्त की। इसके बाद उरई के डीवीसी कॉलिज से बीए किया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से राजनीति विज्ञान में एमए करने के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की उपाधि अर्जित की है। वे विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक मामलों के जानकार और एक स्वतंत्र अध्येता हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के वित्तीय समर्थन से वर्ष 2001 में अरब-इजराइल संघर्ष पर शोधकार्य पूरा करने के लिए इजराइल की यात्रा की थी। वर्ष 2002-03 में इजराइल सरकार स्कॉलरशिप कार्यक्रम के तहत वे हिंदू विश्वविद्यालय, जेरुसलम, इजराइल में विजिटिंग शोधार्थी के रूप में भी शोधरत रह चुके है। इजराइल के सामरिक चिंतनकुंड वेसा सेंटर द्वारा उनके कई शोधपत्र व आलेख प्रकाशित किए गए हैं।

कविता

 

स्मृतियाँ

कुलदीप आशकिरण

सुबह शहर की

भीड़भाड़ में धकियाता

मोटरों की चिल्ल-पों के बीच

पहुँचता काम पर

और शाम को

शहर की गर्द और धुएँ की

परत थबोके

लौट आता बेजान

मुँह बाए

और रात को बिस्तर पर

नींद की आगोश में आने से पहले

घेर लेती मुझे स्मृतियाँ

मेरी आँखों के सामने

लोप्पा उछालते

फुदकती गोरकी

पेपसी की बोतल लिए

छटाँक भर तेल की खातिर

बया की दुकान की तरफ

उघार-पीठ

भागा जाता पोक्की

और उधर से

टोपरा भर तरोई लादे

दस म..ञ्.. ञ्.. दुइ किलो की गोहारी लगाता

आ रहा चोडाइया

और तब तक आने लगती

खरिहान से गालियों की आवाज

आज फिर रमरतिया झगड़ पड़ी घूर की खातिर।

ये स्मृतियाँ

मुझे सोने नही देतीं

मेरे ज़हन में आतीं

सोखना की वो दुपहरी वाली लहरें

कुम्हरगड्ढा की पोतनी

चूल्हा बनाने के लिए

तसला भर माटी की खातिर

डोलवा जाती अम्मा

और...

टूटी हुई चप्पल की बद्धी

सुतली से सहेजते

महन्ना की ओर

लकड़ी बीनने

दौड़ी जाती अनुआ।

यहाँ रात का आधा पहर बीत चुका है

पर ये स्मृतियाँ भोर की हैं

जो स्मृतियाँ नहीं

गँवई गंध हैं

जो सुबह सूर्य की लालिमा के साथ

मेरे मन को

करती हैं सुगंधित।

***

 

गाँव की शब्दावली.....

थबोके - लपेटे।

लोप्पा - बच्चों द्वारा छोटे छोटे कंकड़ो को उछाल कर खेला जाने वाला खेल।

टोपरा - लकड़ी की टोकरी पर टोकरी से आकार में बड़ा।

खरिहान - गाँव के बाहर एक बड़ा सा मैदान जिस पर गाँव भर के लोग अपना हक जमाते हैं जबकि वह सरकारी जमीन होती है।

घूर - गांव का कूड़ादान (गाँव में हर व्यक्ति का अपना निजी घूर होता है)

पोतनी - कच्चे मकान की पुताई के लिए तालाब से खोद कर लाई जाने वाली पीली मिट्टी।

महन्ना - हमारे गाँव से दूर जंगल के एक देवता।

(नोट -  सोखना, डोलवा और कुम्हरगढ्ढा गाँव के तालाबों के नाम हैं)

कुलदीप आशकिरण

शोधछात्र हिंदी विभाग,

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभविद्यानगर


सामयिक टिप्पणी

लखपति दीदी : नारी शक्ति की सुध 

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को लोकसभा में अंतरिम बजट 2024-25 पेश करते हुए पूरे ज़ोर और जोश के साथ कहा कि उद्यमशीलता, जीवन में सुगमता और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देकर वर्तमान सरकार ने पिछले दस वर्षों में महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। चुनाव वर्ष में बजट पेश करने का मौका सत्ताधारी दल/गठबंधन की उपलब्धियों को गिनवाने का भी मौका होता है। इसलिए उन्होंने यह याद दिलाना भी ज़रूरी समझा कि महिला उद्यमियों को मुद्रा योजना के अंतर्गत अब तक 30 करोड़ ऋण प्रदान किए गए हैं। पिछले 10 वर्षों में उच्च शिक्षा के लिए महिलाओं का नामांकन 28 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। एसटीईएम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथेमैटिक्स) पाठ्यक्रमों में 43 प्रतिशत नामांकन बालिकाओं और महिलाओं का हुआ है, यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है। यह सचमुच बड़ी उपलब्धि है। इस तरह के सभी उपाय कार्यक्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के रूप में प्रतिबिंबित हो रहे हैं। इसका अर्थ है कि मोदी सरकार गरीब, किसान, महिला और युवा के रूप में जिन चार जातियों के उत्थान के प्रति संकल्पित होने की बात करती है, उनमें से महिला जाति पर उसका खासा ज़ोर पहले से रहा है।

सरकार के इस दावे की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ‘तीन तलाक’ को गैर-कानूनी बनाने और लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने तथा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के नाम पर या उन्हें संयुक्त मालिकों के रूप में 70 प्रतिशत से अधिक मकान उपलब्ध कराने के फलस्वरूप उनका आत्मसम्मान बढ़ा है।

वित्त मंत्री  ने उचित ही ध्यान दिलाया कि इन 4 जातियों  की ज़रूरतें, उनकी आकांक्षाएँ और उनका कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। जब ये जातियाँ उन्नति करती हैं तो देश की प्रगति होती है। इन चारों जातियों को अपना जीवनस्तर बेहतर बनाने के प्रयास में सरकारी मदद की दरकार है और इन्हें सरकार से सहायता मिल भी रही है। इन लोगों के सशक्तीकरण से और कल्याण से देश भी आगे बढ़ेगा। इसी प्रसंग में वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में महिलाओं के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई ‘लखपति दीदी योजना’ के बारे में बताया। उन्होंने ने कहा कि इस योजना के तहत महिलाओं को सशक्त किया जा रहा है।  दरअसल, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार कई योजनाएँ चला रही है। लखपति दीदी योजना भी उन्हीं में से एक है। वित्त मंत्री की मानें तो इस योजना ने 9 करोड़ महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया है, यानी इससे देश में महिलाओं की आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई है। याद रहे कि केंद्र सरकार की यह योजना महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए, उन्हें स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग प्रोग्राम देने के लिए और उन्हें  पैसा कमाने के योग्य बनाने के लिए समर्पित है। महिलाओं को अपना बिजनेस शुरू करने के लिए इस योजना के माध्यम से दिशा दिखाई जाती है। बताया गया है कि स्वयं सहायता समूह से जुड़कर इस योजना का लाभ उठाया जा सकता है। अपने नजदीकी आंगनवाड़ी केंद्र के जरिये भी इस योजना के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस योजना के तहत, महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है। जैसे उन्हें प्लंबिंग, ड्रोन के संचालन, एलईडी बल्ब बनाना जैसे काम भी सिखाये जा रहे हैं ताकि वे अपना खुद का काम शुरू करके आत्मनिर्भर बन सकें।

अब तक एक करोड़ महिलाएँ लखपति दीदी बन चुकी हैं जो देश के लिए बड़ी उपलब्धि है। अब 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। सयानों का मानना है कि यह संख्या यहीं नहीं रुकेगी, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के इस  अभियान का विस्तार आने वाले वर्षों में संक्रामक रूप में होना चाहिए।

अंततः यह कहना भी ज़रूरी है कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का हर अभियान तब तक अधूरा रहेगा,  जब तक समाज में लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव बना हुआ है। देशभर में आए दिन घर और बाहर यत्र-तत्र-सर्वत्र महिलाओं को जिस तरह की असुरक्षा, अश्लीलता और हिंसा का सामना करना पड़ता है, सरकार को वह सब भी तो दीखता-सुनता होगा न? …


प्रो. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद

संस्मरण

एक अति सहज व्यक्ति : डॉ. शंभुनाथ जी

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

शंभुनाथ जी यानी ‘भारतीय भाषा परिषद्’के निदेशक तथा ‘वागर्थ’ पत्रिका के संपादक शंभुनाथ जी।

वैसे शंभुनाथ जी से मेरा परिचय लगभग पंद्रह वर्ष पुराना है। परंतु उनसे मिलने का सुयोग अभी तक नहीं बन पाया है।

उस समय वे ‘भारतीय नवजागरण’पर अपनी पुस्तक का संपादन कर रहे थे। तब तक उनसे मेरा परिचय नहीं हुआ था। गुजरात के नवजागण पर सामग्री के लिए उन्होंने डॉ. शिवकुमार मिश्र को पत्र लिखा था। मिश्र जी ने मुझसे गुजरात के नवजागरण पर गुजराती में लिखे गए कुछ आलेखों का अनुवाद करने के लिए कहा। मैंने करीब चार या पाँच आलेखों का अनुवाद शंभुनाथ जी को भेजा था। उस काम के सिलसिले में उनके साथ मेरा पत्र-व्यवहार होता था। उस समय मेरे पास फोन नहीं था। पोस्टकार्ड से ही संवाद होता था।

उसके बाद लंबे समय तक हमारे बीच कोई संवाद नहीं हुआ।

वर्षों बाद जब वे ‘हिन्दी साहित्य कोश’का संपादन कर रहे थे, तब पुन: संवाद का सुयोग बना।

इस कोश से संबंधित विज्ञप्ति ‘वागर्थ’ के प्रत्येक अंक में छपती थी।

विज्ञप्ति पढ़कर मैंने उन्हें दिनांक 28/08/14 को एक पत्र लिखा –

श्रीवर डॉ. शंभुनाथजी!

वागर्थ’ पत्रिका में प्रकाशित विज्ञप्ति से ज्ञात हुआ है कि भारतीय भाषा परिषद् की परियोजना के अंतर्गत चार खंडों में प्रकाशित होने वाले ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य कोश’ पर काम चल रहा है।

आपने कोश-निर्माण के संबंध में सुझाव भी आमंत्रित किया है।

निश्चय ही इस प्रकार के ग्रंथ के संपादक के लिए यह चुनौती भरा काम होता है। इसके लिए विविध विषयों के विशेषज्ञों की टीम तैयार करनी पड़ती है। यह भी तय है कि सारे विशेषज्ञों की जानकारी संपादक को होती नहीं है। ऐसी स्थिति में बहुत-से ऐसे लोग ऐसी टीम में शामिल हो जाते हैं, जिनके पास अपेक्षित सामर्थ्य नहीं होता; साथ ही ऐसे लोगों से संपर्क नहीं हो पाता, जो वास्तव में ऐसे काम के लिए योग्य होते हैं। लेकिन यह संपादक की सीमा होती है।

ऐसी स्थिति में मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ। परिषद् के पास अपनी वेबसाइट है। प्रत्येक खंड का जितना काम होता चले, उसको वेबसाइट पर रख दिया जाए और यह अपील जारी कर दी जाए कि लोग इस कार्य को पढ़ें और अपने सुझाव दें। सुझाव यदि काम के हुए तो उनको शामिल किया जाए। सारे सुझावों के परिप्रेक्ष्य में कोश को अंतिम रूप दिया जाए।

मेरे सुझाव के अनुसार काम करना समय साध्य और खर्चीला हो सकता है; परंतु ऐसा करने से अधिक बेहतर काम होने की संभावना बढ़ सकती है।

एक बात और -

भाषा विषयक प्रविष्टियों के लिए अगर मेरी सेवा की गुंजाइश हो तो उसके लिए मैं तैयार हूँ।

पत्र मिलने के बाद उनके कार्यालय से एक दिन फोन आया। तब तक मेरे पास मोबाइल आ गया था। पत्र में मैंने अपना मोबाइल नंबर दे रखा था।

उस दिन पहली बात शंभुनाथ जी से मेरी बातचीत हुई थी। उन्होंने मेरे सुझाव को उपयोगी तो बताया। परंतु उस पर अमल करने में व्यावहारिक कठिनाई बताई। एक तो यह कि काम को नियत समय में पूरा करना है और दूसरे यह कि ऐसा करने से प्रविष्टि लेखक तथा सुझाव देने वाले के बीच विवाद भी हो सकता है।

हालाँकि आगे चलकर प्रविष्टियाँ वेबसाइट पर रखी जाने लगी थीं।

बाद में उन्होंने भाषा-व्याकरण संबंधी कुछ विषयों पर मुझे लिखने के लिए दिया। संभवत: मेरी आठ प्रविष्टियाँ उस कोशग्रंथ में शामिल हैं।

उसी दौरान मैंने अपनी तरफ से अनुवाद पर एक आलेख भेजा। बाद में उनके कार्यालय से फोन आया कि अनुवाद पर लिखने के लिए किसी दूसरे को कहा जा चुका है।

फिर वह आलेख मैंने ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित करने के लिए श्री सूर्यनाथ सिंह को भेजा। आलेख पढ़ने के बाद सूर्यनाथ जी ने बताया कि यह आलेख अधिक अकादमिक है। ‘जनसत्ता’ के पाठकों के अनुकूल नहीं है। इस कारण आलेख को प्रकाशित करने में उन्होंने अपनी असमर्थता बताई।

सूर्यनाथ जी से जिस दिन मेरी बात हुई थी, उस दिन शनिवार था।

दूसरे दिन रविवार को करीब साढ़े नौ बजे शंभुनाथ जी का फोन आया। उन्होंने जनसत्ता में छपे में मेरे आलेख को पढ़कर फोन किया था। मुझे लगा, जनसत्ता में ही दो-तीन महीना पहले छपे मेरे ‘मानकीकरण’ वाले आलेख की बात कर रहे हैं। मैं उसी के बारे में उनसे बात करने लगा। फिर उन्होंने बताया कि वे आज के जनसत्ता के साप्ताहिक अंक में छपे आलेख की बात कर रहे हैं। वह अनुवाद वाला आलेख था, जिसे प्रकाशित करने में श्री सूर्यनाथ जी ने एक दिन पहले असमर्थता व्यक्त की थी। बाद में कुछ सोचकर प्रकाशित कर दिया होगा।

अनुवाद पर लिखे गए उस आलेख से शंभुनाथ जी बहुत प्रभावित हुए थे। उस दिन करीब 27 मिनट तक हमारी बातचीत हुई थी। उस आलेख के अलावा दूसरे कई विषयों पर हमारी बातें हुई थीं। मैंने उन्हें बताया कि वह आलेख तो मैंने आपके कोश में प्रकाशन के लिए भेजा था।

उन्होंने कहा, मुझे तो मिला नहीं। उनके कहने से दुबारा उसे भेजा। परंतु किसी कारण से वह आलेख कोश में स्थान नहीं पा सका।

मैं चकित और मुग्ध था कि मुझ जैसे अदने-से व्यक्ति का एक छोटा-सा आलेख पढ़कर इतने बड़े लेखक शंभुनाथ जी ने मुझे फोन किया। उस दिन मैं उनकी सहजता से परिचित और प्रभावित हुआ।

उसके बाद भी कई बार उनके साथ मेरी बातें हुईं।

करीब पाँच साल पहले की बात है। मुझे नवीकरण कार्यक्रम के लिए दीमापुर (नागालैंड) जाना था। गुजरात से हुगली पहुँचने के बाद दीमापुर की गाड़ी करीब चार घंटे के बाद मिलने वाली थी। मैंने सोचा, इतने समय में क्यों न शंभुनाथ जी से मिल लिया जाए। मुझे पता था कि उनका घर स्टेशन के पास ही है। मैंने उन्हें अपना कार्यक्रम बता दिया। उस समय उन्होंने जो बात कही, उसकी कल्पना भी मुझे न थी।

उन्होंने कहा – मेरा नया मकान स्टेशन से बहुत दूर है। इतने कम समय में आप वहाँ से आकर गाड़ी नहीं पकड़ पाएँगे। ऐसा करूँगा कि मैं ही अपने पुराने मकान पर आ जाऊँगा। वहीं आप नहाइए-धोइएगा और मेरे साथ भोजन कीजिएगा। उसके बाद शाम को गाड़ी पकड़ लीजिएगा।

उनका यह कहना मेरे लिए अकल्पनीय था। मेरे साथ उनका एक सामान्य परिचय। फिर भी, मुझसे मिलने के लिए वे अपने पुराने मकान पर आने के लिए तैयार थे। इतना ही नहीं, वहीं नहाने-धोने तथा साथ भोजन करने का न्यौता भी उन्होंने दे दिया।

अब आप कल्पना कर सकते हैं कि शंभुनाथ जी कैसे व्यक्ति हैं। कितने प्यारे! कितने सहज!

किंतु उस दिन उनसे मिलना नहीं बदा था। गाड़ी बहुत देर से हुगली पहुँची थी। ऐसी आशंका उन्होंने खुद व्यक्त की थी और कहा था कि राउरकेला तक गाड़ी समय से चल रही हो तो मुझे फोन कर दीजिएगा।

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315,

आणंद (गुजरात)

 

लघुकथा

सच्चा प्यार

अशोक भाटिया

जब दोस्तों ने उसे संगीता के साथ मिलते-घुलते देखा तो उससे इसका कारण पूछा। उसने बताया कि उसे संगीता से प्यार हो गया है।

कुछ हफ्तों बाद दोस्तों ने देखा कि वह संगीता को छोड़कर अब गीता के साथ घूमने लगा है। वजह पूछने पर उसने बताया कि संगीता में सिर्फ भावना थी, इसलिए वो प्रेम फ्लॉप हो गया है। दोस्तों ने सोचा, चलो अब तो सब ठीक हो गया।

            कुछ हफ्तों बाद वह एक तीसरी लड़की के साथ घूमने-फिरने लगा। दोस्तों ने सोचा कि इससे गीता के बारे पूछेंगे तो कहेगा कि गीता में सिर्फ देह थी, इसलिए मामला फ्लॉप हो गया।

            दोस्तों ने समझाया - यार, ऐसे मत बदलो। तुम किसीसे सच्चा प्यार करो और उसे आखिर तक निभाओ।

            वह तपाक से बोला - सच्चा प्यार ! वो भी एक लड़की से चल रहा है।

 

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ज़िन्दगी

मेरा दोस्त उदय इसी गली में रहता था। कॉलेज के दिनों में मैं अक्सर उसके घर आया करता। एक बार वह किसी भावना की दुनिया में खो गया था। उसने बताया कि सुधा की आँखों के नूर ने उसके मन की झील में हलचल मचा दी है। अब वह सपनों में डूबा रहता। तब मुझे लगा कि ज़िन्दगी प्यार की तरह सुन्दर और मुलायम, सपनों की तरह मोहक तथा भावुक होती है, जिसे गाया जाता है...

बाद में नौकरी मिलने पर उदय कहीं दूर चला गया था। कुछ समय बाद उस गली के बाहर सड़क किनारे एक ठेला-मजदूर ने अपनी झोपड़ी खड़ी कर ली।

मैं रोज़ उधर से गुज़रता। कई बार मैंने देखा कि शाम को वह मजदूर अपने कठोर हाथ हिलाता, धीरे-धीरे अपनी झोपड़ी की तरफ बढ़ रहा होता। उसके दोनों नंगे बच्चे एल्युमीनियम की खाली पतीली के पास बैठे हुए टुकर-टुकर अपने बाप को देखते। उनकी माँ की सूनी आँखें समझ जातीं कि चूल्हे की तरह उन्हें आज भी बुझे रहना है। तब मुझे लगा कि ज़िन्दगी किसी मजदूर के हाथों-सी कठोर और भूखे बच्चों के पेट-सी खाली होती है। ज़िन्दगी माँ की आँखों-सी सूनी,कपड़ों-सी फ़टी और मैली, दिख रहे बदन-सी नंगी और बेबस होती है, जिसे ठेले की तरह खींचा जाता है।

क्या होती है ज़िन्दगी ? मैं सोचता रहा। आखिर एक दिन उदय मिल गया। मैंने उसे मजदूर की बात बताई।

उसने कहा - ज़िन्दगी इसके अलावा भी बहुत कुछ होती है।

मैंने पूछा - क्या वह मजदूर यह बात जानता है ?

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डॉ. अशोक भाटिया

1882, सेक्टर 13,

करनाल -132001 (हरियाणा)

 

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...