1) अपने आपसे जुड़ना ही योग है।
– महर्षि अरविन्द
2) मन को शांत करना योग है। सिर्फ सिर के बल पर खड़ा होना नहीं।
– स्वामी सच्चिदानंद
3) योग स्वयं की, स्वयं के माध्यम से स्वयं की ओर यात्रा है।
– भगवदगीता
4) अभ्यास चीजों को आसान बना देता है, योग के माध्यम से ज्ञान, ज्ञान के माध्यम से प्रेम आता है और प्रेम से परमानंद।
– स्वामी विवेकानंद
5) जैसे अग्नि में तपाने से स्वर्णादि धातुओं का मैल नष्ट होकर शुद्ध हो जाता है, वैसे ही प्राणायाम करने से मन आदि इन्द्रियों के दोष क्षीण होकर निर्मल हो जाते हैं।
– मनुस्मृति
6) आत्मोन्नति करने के लिए गृहस्थ धर्म एक प्राकृतिक, स्वाभाविक, आवश्यक और सर्वसुलभ योग है।
– आ. श्रीराम
शर्मा
7) योग और मनोचिकित्सा में प्राचीन और नवीन का मिलन होता है, इन दोनों के मिलन से एक ऐसी विस्तृत एवं गहरी चेतना का निर्माण होगा, जो फिर मानव जाति के लिए एक नवीन एवं आशायुक्त युग का सूत्रपात करेगी।
– कोस्टर
8) योगः कर्मसु कौशलम्। (कर्म में कुशलता प्राप्त करना ही योग है।)
– गीता
9)योगश्चित्तवृतिनिरोध:। (चित्त वृत्तियों का निरोध मतलब योग)
– पतंजलि योग
🙏👌👍👍🙂
जवाब देंहटाएं