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शुक्रवार, 27 जून 2025

दोहे

 

गुजरात दिवस

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

भोर उमंगों से भरे , सुखद, सुहानी रात ।

सबसे न्यारा-सा लगे, यह प्यारा गुजरात ।।

 

सोमनाथ करते कृपा , सभी झुकाते शीश।

मोह लिया मन आ बसे, स्वयं द्वारिकाधीश ।।

 

सत्य, अहिंसा, रामधुन, देते मिश्री घोल ।

भारत माता को दिये, रत्न बड़े अनमोल ।।

 

अलग-अलग रजवाड़ियाँ , अहम भरा संसार ।

सबको भारत रूप में , जोड़ गए सरदार।।

 

लौह पुरुष उनको कहूँ , भारत रत्न ललाम।

आओ सब मिलकर करें , शत-शत उन्हें प्रणाम ।।

 

अमरीका, आस्ट्रेलिया, आओ तो जग घूम ।

खूब मिले सब ओर ही, अब गरबे की धूम ।।

 

हीरा दमके, बाँधनी, चनिया शीशेदार ।

सबके मन को मोहती, पहन पटोला नार।।

 

नरसी, मीरा अनवरत, बहे अमिय रस धार ।

स्नेह रश्मिसे हो गया, काव्य–जगत उजियार ।।

 

गिर-कानन सब सज गए, मिटने लगा अँधेर ।

जन-जन का मन मोहता, यह गुजराती शेर ।।

 

प्यारी है , प्यारा जिसे, सारा हिन्दुस्तान ।

शब्दों में करना कठिन, इस धरती का गान ।।

 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कविता

 


जन-जन के मन का प्यार मिले

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

हो पूर्ण मेरी यह अभिलाषा

और स्वप्न यही साकार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले ।

 

हों छन्द सहज से ,सरस, सरल

नवगीत रचें प्यारे-प्यारे

कुंडलिया सीख सिखाएँ नित

माहिया भी भाव भरें न्यारे

है आस यही हम रसिकों को

दोहे का खूब दुलार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले।

 

अद्भुत शृंगारमयी कविता

बस रस अमृत बरसाती हो

गज़लों की गर्वभरी दुनिया

प्रगति के पथ मुस्काती हो

फिर छन्द मुक्त की धूम मचे

मुक्तक का शुभ उपहार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले ।

 

सुत तुलसी, सूर ,कबीर मिलें

तुमको हे माता बार-बार

केशव, रसखान, बिहारी भी

फिर वर्षें अतुलित रस अपार

हों मीरा और महादेवी

दिनकर जैसी हुंकार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले ।

 

प्रगति के पथ पर आगे बढ़

पग तनिक देर भी न ठहरे

हिन्दी की ध्वजा सकल जग में

ऊँची बस ऊँची ही फहरे

हिन्दी के ,देश-विदेशों में

गीतों का पारावार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले ।

 

ज्ञान और विज्ञान सभी

थामे हिन्दी के दामन को

हिन्दी कह देवे अधिकारों,

कर्तव्यों, धर्म सुपावन को

सखी बोली, भाषा साथ चलें

और भावों को विस्तार मिले

अपनी इस हिन्दी भाषा को

जन-जन के मन का प्यार मिले।


 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

H-604, प्रमुख हिल्स

छरवाड़ा रोड, वापी, 396191

जिला- वलसाड (गुजरात)

शनिवार, 31 अगस्त 2024

कुण्डलिया

 


कुण्डलिया

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 

1

दुनिया हसरत बो रही , मैंने बोए गीत,

खेती करने मैं चली, करी पीर से प्रीत ।

करी पीर से प्रीत, रोज़ सींचा अँसुवन से ,

निभे लगन से रीत, माँगती नित जीवन से ।

आए नन्हे फूल, नाचती मन की मुनिया ,

गई सभी दुख भूल, सजी गीतों की दुनिया ।

2

चलते-चलते रे पथिक , जले धूप में पाँव ,

पेड़ लगाए जो कभी , देंगें तुमको छाँव ।

देंगे तुमको छाँव , मिलेंगे मीठे फल भी ,

शीतल, शुद्ध, समीर, आज भी, निश्चित कल भी ।

पँछी गाते गीत, गोद में इनकी पलते ,

सुनो मधुर संगीत , राह में चलते-चलते ।

3

विनती करती आपसे, सुनो लगाकर ध्यान,

कृषक वीर बस आप हो , धरती के भगवान ।

धरती के भगवान , खाद मत ऐसी डालो,

शुद्ध अन्न ,फल, धान्य , उगा कर हमें बचालो ।

दवा न देना डाल, रोग जो तन में भरती,

करना हमें निहाल, आपसे विनती करती ।

4

पाती अब आती नहीं , फोन हुआ है मौन ,

रोज़ टूटती साँस को , आस बँधाए कौन ।

आस बँधाए कौन , नैन धुँधलाते जाते ,

है मनवा बेचैन, खबर कुछ उसकी पाते ।

उठे हूक दिन-रात, तुम्हारी याद सताती,

पिता देखते द्वार , मात भी चैन न पाती ।

5

छोटा-सा मन का भवन, रहने की दरकार,

ख्वाहिश कितनी आ गईं , बनीं किराएदार ।

बनीं किराएदार, न करतीं घर अब खाली,

करने की  तकरार , परस्पर, आदत डाली ।

धमा-चौकड़ी खूब, हुआ खुशियों का टोटा ,

गया गमों में डूब, भवन यह मन का छोटा ।

 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी, गुजरात

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

कृति से गुजरते हुए....


हाइगा आनन्दिका

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

जीवनानुभूतियों की सुंदर, सरस ,लयात्मक अभिव्यक्ति सर्वदा आनंद की स्रोतस्विनी रही है। इस दृष्टि से डॉ. सुधा गुप्ता का रचना-संसार बहुत समृद्ध तथा हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है। कहना न होगा कि विविध विधाओं में सुधा जी की पुस्तकों ने हिंदी साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान बनाया। जिन्हें सुधी पाठकों एवं आलोचकों ने समीचीन अभियुक्तियों से अलंकृत किया। हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, हाइबन प्राय: सभी ने साहित्य जगत को अपनी ओर आकर्षित किया तथा पर्याप्त चर्चा का विषय बने। परंतु आज इनसे इतर एक अन्य विधा हाइगापर रचित डॉक्टर सुधा जी की पुस्तक हाइगा आनन्दिका  से सुधी पाठक वर्ग का परिचय करवाना मेरा मंतव्य है।

वस्तुत: जब हाइकु को उसमें व्यंजित भाव से सम्बद्ध चित्र पर अंकित किया जाता है तब वह रचना हाइगाकहलाती है। डॉ. सुधा गुप्ता जी ने पुस्तक की भूमिका में "हाइगा से मेरा परिचय : अनुराग और अंतरंगता" शीर्षक के अंतर्गत हाइगा की रचना प्रक्रिया ,उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार जापान में काली स्याही की चित्रांकन कला को सुमिएकहते हैं। सुमिअर्थात काली तथा मतलब चित्र। डॉ. सुधा जी के शब्दों में इन चित्रों के साथ हाइकु का संयोग सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में निखरा जो हाइगाकहलाया। हाइकु में कुका अर्थ है कविता और हाइगा में गाका अर्थ है चित्र। इस प्रकार हाइकु कविता को चित्र के साथ व्यंजित करना हाइगाहुआ। पुस्तक में चित्र, सुलेख में अंकित हाइकु को हाइगा के रूप में परिभाषित करते हुए सुधा जी का पहला ही हाइगा है - संगम त्रयी .. पृ.13

इसी संदर्भ में सुधा जी ने बाशो एवम्  उनके शिष्य के उद्धरण से यह भी स्पष्ट किया कि जिस प्रकार बाशो अपने सीधे- सरल रेखांकन पर तत्सम्बद्ध हाइकु अपने ही सुलेख में अंकित कर हाइगा बना लेते थे , वैसे ही उनके हाइकु पर बाशो के शिष्य भी काली स्याही और तूलिका से चित्र बना देते थे । इस प्रकार हाइकुकार की अपनी हस्तलिपि में अन्य कलाकार के द्वारा बनाए चित्र पर हाइकु लेखन भी मिलकर हाइगाके रूप में स्वीकृत हुआ। प्रिंटेड चित्र पर अंकित हाइकु को हाइगाके रूप नें सुधा जी की स्वीकृति नहीं मिली। यद्यपि वर्तमान समय में यह प्रचुर मात्रा में दिखायी देते हैं।

डॉ. सुधा गुप्ता जी ने पुस्तक की भूमिका में ही अपनी इस इच्छा का भी उल्लेख किया कि वह हाइगाका ऐसा संग्रह प्रकाशित करें जिसमें मुख्य रूप से बालकों की रुचि के कुछ हाइकु एवं तत्संबंधी चित्र हों। यह संग्रह बालकों में वितरित किया जाए और उन्हें हाइगा के रूप से परिचित कराया जाए । यही कारण है कि हाइगा आनन्दिकाके हाइगा सुधा जी ने मुख्यतः बच्चों की रुचि के अनुरूप सृजित किए। प्रकृति के मोहक स्वरूप पर , जो कि बच्चों को आकर्षित करें,ऐसे हाइकु चुने । उन पर श्रीमती निरुपमा , डायरेक्टर ,निरुपमा प्रकाशन , मेरठ ने बहुत ही सुरुचि पूर्वक चित्र बनाए । पुन: सुधा जी ने उन चित्रों पर अपने सुलेख में हाइकु लिखकर हाइगा बनाए।

यही कारण है कि पुस्तक में पशु-पक्षी, फूल-पत्तियों से सजे रोचक , मोहक हाइगा सर्वाधिक दृष्टिगोचर होते हैं । भालू है , गिलहरी है,गौरैया, मैना , तोता , बढ़ई ,तितली, बतख, कबूतर ,किंगफिशर,मोर , बाबुना से सजा संसार बहुत प्यारा है । जिनमें बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी मन अटक-अटक रह जाता है । चटखारे लेकर बेर खाते भालू को देखिए- पृ.56

मेघों से आच्छादित आकाश तले नाचते मोर गीत गाती बाबुना सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं - पृ.57

प्रात:काल में जब भी किसी प्राथमिक विद्यालय के निकट से गुजरो तो नन्हें बच्चों की सहज उछल-कूद और शोर उन्हें देखने के लिए विवश कर देते हैं । अद्भुत व्यंजना है ! दृश्य उकेरने में सिद्ध सुधा जी की लेखनी भोर की कक्षा का कैसा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती है देखिए – पृ.30

क्यारियों में सिर उठाए खड़े पौधों पर खिले फूल उन्हें प्रकृति माँ से सुबह की चाय माँगते बच्चों जैसे प्रतीत होते हैं- पृ.85

इसी प्रकार वृद्धावस्था और बाल्यावस्था को एक साथ उपस्थित करता हाइगा भी अद्भुत है – पृ.76

कान्हा में अनुरक्त मन , मयूर पंख , तुलसी-माल, बांसुरी की धुन मन में सुनते-गुनते, आराधना करते  हाइगा भी पुस्तक में सजे हैं ।पृ.14

संतोष ही परम धर्म है और अनमोल धन भी का उद्घोष करता सुधा जी का सुप्रसिद्ध हाइकु चिड़िया रानीभी पुस्तक की आभा को द्विगुणित करता विराजमान है, अपना सन्देश संवाहित करने में समर्थ है – पृ.31

किं अधिकं , प्रकृति में रमी प्रकृति वाली सुधा जी की लेखनी कहीं भी भ्रमण करे अंततोगत्वा प्रकृति पर लौट आती है। हाइगा आनन्दिकामें भी प्रकृति के इतने सुन्दर दृश्य साकार किए हैं कि कुछ कहते न बने। घर के आँगन में महकते तुलसी-चौरे से , ट्यूलिप , धरा का शृंगार करता वसंत , फूलों की पाग बाँधे वरजैसा पर्वत-शिखर।  आड़ू -अनार से लदे वृक्ष और इन्द्रधनुषी पंखों वाली तितलियाँ बड़ी सुन्दरता से पुस्तक में विद्यमान हैं। नटखट गंगा फेन उड़ाती रस की झारी-सी प्रतीत होती है तो कहीं एकाकिनी तापसी जैसी - पृ. 35

कस्तूरी मृग, हिरणी, घटाएँ ,चाँद से सजा आकाश क्या कहिए छोटी सी पुस्तक में सुधा जी का रचना-संसार इतना विस्तृत है कि उसे शब्दों मे कह पाना सहज नहीं । उसे तो पुस्तक पढ़कर ही जाना जा सकता है ।

अस्तु, श्रीमती निरुपमा जी का सरल, सधा, मोहक रेखांकन और उस पर डॉ. सुधा जी के सुन्दर हस्तलेख में भावप्रवण हाइकु का संयोग अनुपमेय है।

 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी, गुजरात

जुलाई 2025, अंक 61

  शब्द-सृष्टि जुलाई 2025 , अंक 61 परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख प...