रविवार, 20 जून 2021

अंक – 11, योग विशेषांक


योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।

योऽपाकरोत्तं  प्रवरं मुनीनां, पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि।।

शब्द सृष्टि,  जून - 2021, अंक – 11

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित....





















कविता


प्रेमयोग

डॉ. पूर्वा शर्मा

बेसुध, बिना हलचल के, यूँ ही पड़ी थी ‘शवासन’ में ज़िंदगी,

तुम्हारे स्पर्श से, हौले-से उठ बैठी ‘सुखासन’ में यह ज़िंदगी।

 

सुखों का ‘पूरक’, दुखों का ‘रेचक’ और सुकून का ‘कुंभक’ हुआ,

तब जाकर कहीं प्रेम का ‘प्राणायाम’ लयबद्ध गति से आरंभ हुआ।

 

इसके निरंतर अभ्यास से, एकाग्र हुआ ये विचलित मन,

मन में बस ‘धारणा’ तुम्हारी, और बनी मैं प्रेम की पुजारन।

 

तुम्हारे सानिध्य में पाया मैंने, प्रेम साधना का अमूल्य ज्ञान,

तुम्हारे साथ बीताए प्रत्येक पल यूँ लगे, जैसे कर रहे हो ‘ध्यान’।

 

प्रेम सागर में गहरे और गहरे डूबते गए, बन गए हम प्रेम जोगी,

प्रेम सिद्धि पाने मचल उठे, जैसे ‘समाधि’ लेने निकला हो कोई योगी।

 

मैं–तुम जुड़े, हुआ हम दोनों का ‘योग’, प्रेम ‘समाधि’ में होंगे लीन,करेंगे ‘हठयोग’,

बड़ा ही दुर्लभ है यह प्रेमयोग, जीवन पर्यंत चलता रहे हम दोनों का मनोयोग।।

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शवासनमृत की तरह शरीर की स्थिति

सुखासन लम्बे समय तक आराम से बैठने वाली स्थिति   

पूरकसाँस भरना (Inhale)

रेचक  साँस छोड़ना (Exhale)

कुंभकसाँस रोकना (Hold breath)

प्राणायाम नियंत्रित गति में साँस लेना, रोकना और छोड़ना

धारणा एकाग्रता/ध्यान का पूर्व चरण (Concentration)

ध्यान चित्त को एकाग्र करके किसी लक्ष्य पर केन्द्रित करना (Meditation)

समाधि संसार के द्वंद (दुःख आदि) से विरक्ति/ परमानंद की अनुभूति

हठयोग  एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति

डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

कविता

 


योग

हमारी अनमोल विरासत 


भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत है योग।

कोई विकल्प नहीं है,जीवन की जरूरत है योग।

 

'योग कर्मसु कौशलम् 'का प्रबल आह्वान है योग,

निशंक-निर्विकार- निर्भ्रान्त- निर्मल ज्ञान है योग ।

 

सभी रोगों को दूर करने का एक तरीका है योग ,

तनाव से सदा मुक्त रहने का सही सलीका है योग।

 

तन भीतर के विषाक्त विकारों को दूर करता है योग,

मन भीतर के अवसाद-नकारों को भी हरता है योग।

 

अनिद्रा, अपच और आलस्य का उपचार है योग,

ऋषि-मुनियों की तप-साधना का उपहार है योग।

 

संयम-संतुलन-स्वास्थ्य की  संपूर्ण राह है योग,

शांत ,सुंदर और समृद्ध जीवन की चाह है योग।

 

अनेक यौगिक क्रियाओं का अद्भुत समुच्चय है योग,

अजब-अनूठा-अद्वितीय-अपूर्व और अक्षय‌  है योग।

 

शारीरिक-मानसिक- आध्यात्मिक विकास है योग,

आत्मबोध -अनुशासन का अविरत अभ्यास है योग।

 

सजगता, ध्यान, एकाग्रता के लिए जरूरी है योग,

ऊर्जा, उत्सव, उत्कर्ष की सुगम  कस्तूरी है योग।

 

मानव -प्रकृति के बीच रचा अद्भुत अनुसंधान है योग,

भारत की प्राचीन परंपरा का परम योगदान है योग।

 

चेतना का विस्तार और आनंद का आलिंगन है योग,

'वसुधैव कुटुंबकम्' हित के हेतु मुक्त आमंत्रण है योग।

 डॉ. अनु मेहता

प्रभारी प्राचार्य,

आणंद इंस्टीट्यूट ऑफ पीजी स्टडीज इन आर्ट्स,

आणंद ।

शब्द संज्ञान


योग

सोनल परमार

‘योग’ भारतीय संस्कृति की एक अनमोल उपलब्धि है, एक बहुमूल्य विरासत है। यह स्वस्थ जीवन-यापन की एक कला एवं विज्ञान है। योगविशेषज्ञों के मतानुसार योग एक ऐसी विद्या है जिसमें मनुष्य अपने मन को पूर्ण वश में कर ईश्वरीय आत्मा में अपने मन को लीन कर परमानन्द को प्राप्त कर सकता है। ‘योग’ शब्द का अर्थ है- मिलन, जुड़ना, युक्त होना या एकत्र करना। ‘योग’ शब्द की व्युत्पत्ति-‘युजिर् योगे’, ‘युज् समाधौ’ तथा ‘युज संयमने’- इस तरह मानी गई है। प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार ‘योग’ शब्द का अर्थ है- एकीकरण करना, संयुक्त करना, जोड़ना अथवा मिलाना। इसी आधार पर जीवात्मा और परमात्मा का एकीकरण अथवा मनुष्य के व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक पक्षों के एकीकरण को इसमें लिया जाता है।

·     वेदान्त की दृष्टि से जीवात्मा और परमात्मा का पूर्ण रूप से मिलना योग है। आत्मा और परमात्मा के मिलन से, दोनों के योग से एक ऐसे आनन्द का आविर्भाव होता है, जिसकी तुलना संसार के किसी भी सुख व आनन्द से नहीं की जा सकती।

·     योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।। (योगदर्शन)

·     चित्त की सभी वृत्तियों का पूर्ण रूप से निरोध ही योग है। ये वृत्तयाँ चित्त में संग्रहीत संस्कारों से उत्पन्न होती है।

·     मानवीय प्रकृति (भौतिक एवं आत्मिक) के भिन्न-भिन्न तत्वों द्वारा दुःख निवृत्ति हेतु विधिपूर्वक किया गया प्रयत्न ही योग है। इससे ही व्यक्ति की चेतना परम चैतन्य से जुड़ती है। मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक क्षमताओं को योग के जरिए उच्चतम स्तर तक विकसित किया जाता है।

·     योग कर्मसु कौशलम्। (गीता) कर्म का कौशल रूप ही योग है। कुशलतापूर्वक कर्म करना ही योग है।

·     योग एक अभिवृत्ति, एक प्रयत्न है जो व्यक्ति को समष्टि से जोड़ता है।(ऋग्वेद)

·     श्री अरविन्द के मतानुसार-योग का अर्थ केवल ईश्वर की प्राप्ति ही नहीं अपितु उस क्रिया का नाम है जिसके द्वारा भगवत चैतन्य की अभिव्यक्ति हो तथा वह स्वयं ही भगवत कर्म का अंग बन सके।

v प्राणायाम

·     दो शब्दों के योग से शब्द बना है- प्राणायाम। विशेषज्ञों के विचार से प्राण+आयाम में ‘प्राण’ का अर्थ है- जीवन शक्ति। प्राण में निहित है ऊर्जा, ओज, तेज, वीर्य (शक्ति) और जीवन दायिनी शक्ति। ‘आयाम’ का अर्थ है विस्तार, फैलाव, विनियमन, अवरोध या नियंत्रण। इस तरह प्राणायाम का अर्थ हुआ प्राण अर्थात श्वसन (जीवन शक्ति) का विस्तार, दीर्घीकरण और फिर उसका नियंत्रण।

·     योग व प्राणायाम के एक अध्येता की दृष्टि से श्वसन की सामान्य क्रिया को अभ्यास द्वारा धीरे-धीरे धीमा करते जाना अर्थात श्वास शीघ्रता से भरने-छोडने के स्थान पर लम्बी और गहरी श्वास भरना-छोडना। साथ ही इसकी सहजता और लय को बनाये रखते हुए संपूर्ण शांत एवं सतत स्वरूप की ओर बढ़ना।

·     तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योर्गति विच्छेदः प्राणायामः।। (योगदर्शन)

·     आसन की सिद्धि होने पर श्वास प्रश्वास की सामान्य गति को रोक देना या स्थिर कर देना ही प्राणायाम कहलाता है।

·     प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। हठयोग और अष्टांगयोग दोनों में इसे स्थान दिया गया है। प्राणायाम नियंत्रित श्वसनिक क्रियाओं से संबंधित है।

·     प्राणायास्य आयामः इति प्राणायामः।। (अष्टांगयोग) प्राण का विस्तार ही प्राणायाम है।

·     बाह्य श्वास के नियमन द्वारा प्राण को वश में करने की विधि है, उसे प्राणायाम कहते है।

v ध्यान

·     चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है।

·     भीतर से जाग जाना ध्यान है। सदा निर्विचार की दशा में रहना ही ध्यान है। - ओशो

·     तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् ।। (योगदर्शन)

·     जिस स्थान पर भी धारणा का अभ्यास किया गया है, वहाँ पर उस ज्ञान या चित्त की वृत्ति का एकरूपता या उसका एक समान बने रहना ही ध्यान कहलाता है। संक्षेप में जहाँ चित्त को लगाया जाए उसीमें वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है।

·     किसी एक निर्धारित बिन्दु या लक्ष्य पर एकाग्रता पूर्वक चेतना को स्थिर करना। अर्थात बिना किसी अवरोध के निरंतर किसी एक लक्ष्य पर ही अपने मन की शक्ति को एकाग्र करना, ध्यान है।

·     ध्यान का वास्तविक अर्थ है- क्रियाओं से मुक्ति। विचारों से मुक्ति। ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। ध्यान में इन्द्रियाँ मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है।

v योग निद्रा

·     एक ऐसी यौगिक नींद है, जो तुरंत ही हमारी चेतना को, सोई हुई / खोई हुई शक्ति को नई ताजगी भरी प्रसन्नता के साथ आत्मशक्ति को विकसित कर सकारात्मकता प्रदान करती है।

·     योगनिद्रा एक आध्यात्मिक नींद की अवस्था है जिसमें जागते हुए सोना है। शरीर विश्राम की अवस्था में रहता है और चेतना पूर्ण रूप से जागरूक रहती है।

·     जो लाभ अन्य ध्यान का अभ्यास देता है उससे अधिक लाभ योग निद्रा से मिलता है इसमें मन शांत हो जाता है तथा शरीर की कार्यक्षमता बढ जाती है। तनाव से मुक्त होने के लिए यह योग निद्रा उपयोगी है।

·     पूरी तरह से सजगता के साथ सोना ही योग निद्रा है।   

v  विपश्यना

·     आत्मशुद्धि और आत्मनिरिक्षण ही एक प्राचीन ध्यान पद्धति।

·     हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने विपश्यना के जरिए ही बुद्धत्व को प्राप्त किया था। यह सत्य की उपासना है।

·     विपश्यना (संस्कृत) या विपस्सना (पालि) विपश्यना का अर्थ है- विशेष प्रकार से देखना। आओ और देखो और फिर मानो। अंतर्मुख होकर, साक्षी भाव से अपनी अंतर्आत्मा, उनके परमार्थ स्वरूप का निरीक्षण करना- अर्थात आत्मनिरिक्षण द्वारा अंतर्मन की तलस्पर्शी-गहराई तक चित्त की शुद्धि करने की वैज्ञानिक साधना पद्धति- विपश्यना है।

·     इस प्राचीन ध्यान पद्धति को भगवान बुद्ध ने पुनर्जीवित किया। यह एक ऐसी ध्यान विधि है जिसके माध्यम से बुद्धत्व को, ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है।

(विभिन्न विद्वानों की पुस्तकों तथा इंटरनेट साइट से सामग्री संकलन)

सोनल परमार

योग कोच (गुजरात योग बोर्ड)

वल्लभ विद्यानगर

जि. - आणंद (गुजरात)

 

 



आलेख

 


कोरोना काल में योग की भूमिका  

डॉ. पूर्वा शर्मा

विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के इस युग में मनुष्य ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। हमने विश्व को सुरक्षित एवं अपने जीवन को सुगम बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते हुए सफलता अर्जित की है। किन्तु कभी-कभी कुछ आपदाओं पर विजय पाना संभव नहीं हो पाता, कोरोना वायरस (Covid-19) संक्रमण के दौरान हमें इस बात का एहसास हो गया। हम सभी जानते हैं कि गत डेढ़ वर्ष से विश्व के लगभग सभी देश कोरोना महामारी के प्रकोप से जूझ रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर इसके प्रभाव को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। कोरोना से संक्रमित लोग एवं इसके कारण अपनी जान गवाँ देने वाले लोगों की संख्या को देखा जाए तो दिल दहला देने वाले आँकड़ें सामने आते हैं। इसके चलते पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, भौगोलिक, वैश्विक आदि लगभग सभी स्तर पर हुए परिवर्तनों को देखा जा सकता है। कोरोना का असर शारीरिक स्वास्थ्य पर तो है ही लेकिन मानसिक स्तर पर (मानव के मन पर) इसका प्रभाव अत्यधिक दिखाई दिया है।

इस महामारी के चलते शारीरिक-मानसिक स्थिति में सुधार लाने के लिए चारों ओर एक ही शब्द की गूँज सुनाई पड़ रही है, वह है – ‘योग’। इस मुश्किल घड़ी में योग ने संजीवनी का कार्य किया है। आम आदमी हो या डॉक्टर या वैज्ञानिक, सभी ने योग की शरण लेकर अपनी शारीरिक एवं मानसिक समस्या का निराकरण कर इससे स्वास्थ्य लाभ लिया है । सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु भारत के बाहर भी(अमेरिका आदि देशों में) इसका अभ्यास लोगों ने किया और इसे एक Stress Management Tool (तनाव को नियंत्रित करने का उपकरण) माना है। यहाँ पर हम देखने का प्रयास करेंगे कि कोरोना काल में इस योग की उपयोगिता क्या है? वह हमें क्या लाभ प्रदान करता है।

योग हमारे भारतीय दर्शनशास्त्र की बहुत पुरानी एवं महत्त्वपूर्ण शाखा के रूप में सदियों से प्रतिष्ठित है। योग अथवा अष्टांग योग के आठ अंग (यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) है, इन में से तीन अंग वर्तमान कोरोना काल में अत्यधिक प्रचलित हुए है – प्राणायाम, योगासान और ध्यान ।

प्राणायाम में एक नियंत्रित गति से साँस भरना, उस साँस का शरीर के भीतर विस्तार करना (रोकना) और फिर छोड़ना होता है। इस प्रकार प्राणायाम सामान्य श्वसन क्रिया की तुलना में नियंत्रित एवं लयबद्ध होता है। सामान्य श्वसन की तुलना में इसकी गति बहुत धीमी होती है, इसमें जितनी देर साँस को लेने में लगाते हैं उससे दुगुना समय उसे छोड़ने में लगता है। इसका मतलब कि जितनी ऑक्सीजन ली जाती है उसकी तुलना में ज्यादा कार्बन डाय ऑक्साइड बाहर निकलती है जिससे रक्त में फैली अशुद्धियाँ दूर होती है और साथ ही ऑक्सीजन सभी कोशिकाओं तक अधिक से अधिक मात्रा में पहुँचता है। कोरोना के दौरान कोरोना संक्रमित व्यक्तियों में प्रायः हाइपोक्सिया (Hypoxemia) अर्थात् शरीर में ऑक्सीजन की कमी की समस्या को देखा गया है। ऑक्सीजन की कमी के कारण शरीर के सभी अंगों/ अवयवों तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुँच पाती है और इन अंगों को क्षति (विशेषतः फेफड़ों को) पहुँचने के कारण व्यक्ति को साँस लेने में तकलीफ़ होती है। इस प्रकार यह संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को नुकसान पहुँचता है। इस दृष्टि से प्राणायाम बहुत  उपयोगी है।  Covid-19 के इस कठिन दौर में लोगों में भय, तनाव, एंग्ज़ाइटी, डिप्रेशन आदि को देखा गया है। प्राणायाम करने से हमारी संवेदी/ परसंवेदी तंत्र यानी Sensory Nervous System और Parasensory System में संतुलन बनता है, हार्मोन्स में भी संतुलन स्थापित होता है और भावनात्मक रूप से हम संयमित बनते हैं जिससे stress/depression (तनाव/ अवसाद) दूर होते हैं। इस तरह से शरीर और मन के बीच एक सामंजस्य स्थापित हो जाता है। इससे हमारे श्वसन तंत्र (Respiratory System) को तो लाभ मिलता ही है साथ ही ब्लड सर्क्युलेशन सिस्टम (Blood Circulation System), पाचन तंत्र (Digestive System), प्रजनन तंत्र (Reproductive System), उत्सर्जन तंत्र (Emission System) आदि को भी लाभ मिलता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्राणायाम करने से मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ मिलता है।

लॉक डाउन के कारण कहीं भी बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता का छीन लिया जाना और अपने ही घरों में ही बंद रहने से लोग अकेलेपन का शिकार तो हुए ही है साथ ही लोगों की नियमित दिनचर्या में बहुत परिवर्तन हुआ है। इसके कारण उनकी मानसिक स्थिति तो नुकसान हुआ ही है साथ ही शारीरिक हलन-चलन की क्रिया कम होने के कारण वजन बढ़ने एवं कई बिमारियों के शिकार हुए है। ऐसे समय में घर पर रहकर (बिना किसी उपकरणों के) योग करना सरल है। कम जगह में सहजता से इसका अभ्यास किसी योग शिक्षक/ कोच आदि के संरक्षण में ऑनलाइन किया जा सकता है। योगासान कोई शारीरिक व्यायाम नहीं है, यह शरीर की एक अवस्था है। इसमें व्यायाम की तुलना में शक्ति (Calorie) का व्यय कम होता है। आसनों के अभ्यास से थकान नहीं लगती अपितु आराम एवं स्फूर्ति का अनुभव प्राप्त होता है। आसन के अभ्यास से हमारे Nervous system (चेतना तंत्र), Endocrine system (अन्तः स्त्रावी तंत्र) एवं Internal organs (पेट के आंतरिक अंगों) को लाभ मिलता है। इससे हमारी मांसपेशियाँ मजबूत होती है और शरीर में लचीलापन बढ़ता है। योगाभ्यास से आंतरिक अंगों/ अवयवों को मालिश मिलती है और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने में भी सहायता मिलती है। मन को शांति देने एवं तनाव को दूर करने के साथ यह आध्यात्मिक विकास में सहायक है। इस प्रकार योगाभ्यास केवल वर्तमान महामारी की स्थिति में ही नहीं बल्कि दैनिक जीवन में भी हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है।

इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि वर्तमान समय ऐसा समय है जिसमें मनुष्य ने जीवन में पहली बार मृत्यु को बहुत करीब से देखा है। इस विकट परिस्थिति में मनुष्य दुखी है लेकिन दुःख से ज्यादा उसे डर अथवा दहशत ने घेर रखा है । इस महामारी के कारण हम अनिश्चितता की स्थिति में जी रहे हैं। अनिश्चितता, अनियंत्रण एवं विषय की अपूर्ण जानकारी  – ये सभी तत्त्व तनाव को बढ़ाने में सहायक होते हैं। अब यदि हमें तनाव से बचना है और अपनी मानसिक स्थिति में सुधार लाना है तो उसके लिए योग का एक और अंग उपयोगी है – ध्यान (Meditation)। ध्यान की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित है आप उनमें से किसी भी पद्धति का उपयोग कर सकते हैं। क्रियाओं एवं विचारों से मुक्ति को ध्यान कहा जा सकता है। एकाग्रता पूर्वक किसी भी एक बिंदु या लक्ष्य पर बिना किसी अवरोध के अपनी चेतना को स्थिर करना और उस लक्ष्य के सिवाय अब आपके चित्त में कुछ भी और न आने पाए, बस लम्बे समय तक इसी अवस्था में रहना ध्यान कहलाता है। यह सभी प्रकार के मानसिक कष्टों/ तनावों को दूर करने में आपकी मदद करता है। ध्यान करना सरल कार्य नहीं, यह सभी के लिए कर पाना संभव नहीं इसलिए त्राटककर्म भी एक योग षट्कर्म है जिससे मानसिक तनाव को दूर किया जा सकता है।

ध्यान की तरह त्राटककर्म में भी एक विशेष बिंदु पर एकाग्रता से देखना होता है । इसमें शांत चित्त से सीधे बैठकर एक-डेढ़ फूट की दूरी से मोमबत्ती की काले रंग की लौ की ओर एकटक देखना होता है। या यूँ कहिए की आपको अपना ध्यान उसकी ओर एकाग्र करना होता है। आपको इस लौ को तब तक देखना है जब तक की आपकी आँखें थक न जाए और उसमें से आँसू बहने लग जाए तब आप अपनी आँखें बंद कर लें। इस प्रकार यह प्रक्रिया सरल है लेकिन आपको इसे किसी त्राटक के जानकर के संरक्षण में ही अभ्यास करना चाहिए। इससे मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं। त्राटककर्म आसान, प्राणायाम, ध्यान आदि की तुलना में कम प्रचलित है, लेकिन यह बहुत ही व्यवहारिक एवं लाभप्रद है।

एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि योगाभ्यास (योग की कोई भी क्रिया) करने में सावधानी बरते और इसे किसी शिक्षक या कोच की निगरानी में ही करें वरना इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।

अंततः हम कह सकते हैं कि आज की इस विकट परिस्थिति में योग किस तरह से हमारा साथी बन, शारीरिक-मानसिक गंभीर समस्याओं से छुटकारा पाने में हमारी सहायता कर रहा है। जीवन में सकारात्मकता का अधिक समावेश और नकारात्मकता को दूर करने के साथ आध्यात्मिक चेतना के विकास में योग की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है | वैसे तो योग अभ्यास से वैक्तिक, बौद्धिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से लाभ मिलता है लेकिन हम इसके शारीरिक / स्वास्थ्य संबंधी लाभ से ज्यादा परिचित है। इस मुश्किल घड़ी के अलावा भी यदि योग को हम अपने दैनिक जीवन में अपना लें तो हम बहुत-सी कठिनाइयों को सरलता से पार कर जाएँगे और बेहतर भविष्य का निर्माण करने में सक्षम होंगे।

डॉ. पूर्वा शर्मा
योग साधक
वड़ोदरा (गुजरात)

फोटो अलबम – योगासन




फोटो अलबम – योगासन 

इस अंक के योग साधकों का योगाभ्यास (फोटो अलबम) देखने के लिए ‘Play’ करें 





 










अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...