मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

अक्टूबर 2025, अंक 64

 



शब्द-सृष्टि

अक्टूबर 2025, अंक 64

शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक : प्रकाशपर्व की मंगलकामनाओं सहित.....– प्रो. हसमुख परमार

आलेख – दीपपर्व – डॉ. घनश्याम बादल

कविता – 1. दूर करें अंधियारा 2. अबकी बार दीवाली में – प्रेम नारायन तिवारी

आलेख – दीपावली की प्रासंगिकता और स्वरूप – डॉ. राजकुमार शांडिल्य

तेवरी – दीपावली – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

लघुकथा – लक्ष्मी के दो रूप – प्रेम नारायन तिवारी

कविता – ऐ कवि लिख देना – डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर

आलेख – अर्चना कोचर की कविताओं में सामाजिक यथार्थ और सांस्कृतिक चेतना – डॉ. नरेश सिहाग

लघुकथा – 1.भाग्य का लिखा 2. निर्णय – सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

कृती व्यक्तित्व – लालबहादुर शास्त्री – सुरेश चौधरी ‘इंदु’

कृती व्यक्तित्व – कमाल की शख्सियत थे डॉ कलाम – डॉ. घनश्याम बादल

आलेख – हिंदी हाइकु कोश में बेटी विषयक हाइकु – तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

कविता – 1. कुकुर कथा 2. देशभक्ति – डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

सामयिक टिप्पणी – 1.लाज़्लो : सर्वग्रासी अँधेरे में साहित्य की अदम्य लौ 2. मारिया कोरिना मचादो यानी लोकतंत्र की लौ! – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

आलेख – वीर जटायु – प्रीति अग्रवाल

गीत – वाणी गूँगी – दुष्यंत कुमार व्यास

विशेष – 1. रामलीला मंचन का इतिहास और उसका वैश्विक परिप्रेक्ष्य 2. भारत की आर्थिक स्थिति : ऋण, विकास और बाह्य व्यापारिक दबाव – सुरेश चौधरी ‘इंदु’


लघुकथा

लक्ष्मी के दो रूप

प्रेम नारायन तिवारी

            दीया कैसे दिये” लक्ष्मी मिट्टी के दीया बेच रहे देहाती व्यक्ति से बोली। दीया बेच रहा व्यक्ति अत्यंत निर्धन लग रहा था। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे महीने भर से उसने न तो अच्छी नींद ली है न भर पेट खाना खाया है।उसके सामने दीयों का ढेर लगा है, मगर ग्राहक इक्का दुक्का आ रहे थे।

    वैसे तो एक दीया एक रुपये का बेच रहा हूँ, मगर जब आप सौ दीया खरीदेंगी तो नब्बे रुपये का दे दूँगा। “दीया बेच रहे व्यक्ति ने लक्ष्मी को आशा भरी नजरों से देखते हुए जबाब दिया।

     माँ माँ यह पटाखे वाले तो लूट रहे हैं, जो पटाखा मैंने पिछले साल दस रुपये का खरीदा था उसका बीस रुपये माँग रहे हैं। “तभी लक्ष्मी का किशोर बेटा आकर के बोला। लक्ष्मी एक बड़े अफसर की पत्नी है। उसके पिताजी भी सरकारी अफसर थे। वह अपने बेटे के साथ दीया पटाखे खरीदने आई थी।

महँगा है तो क्या हुआ, तुम अपने पसंद के पटाखे ले लो। जितना माँगता है उतना रुपये देकर आ जाओ।” लक्ष्मी अपने बेटे का सिर प्यार से सहला कर बोली।

   नब्बे नहीं पचहत्तर रूपया दूँगी, यदि देना हो तो सौ दीया गिन दो। कोई बाजार से खरीदकर नहीं लाये हो, कि तुम्हारी पूँजी फँसी है।” लक्ष्मी मोलभाव करती हुई बोली।

   ठीक है कहकर” वह दीया गिनने लगा। अब वह कैसे बताये कि उसने इन दीयों के लिए कौन-कौन सी पूँजी लगायी है। कैसे बताये कि एक महीने से भर पेट खाना नहीं खाया है। भर पेट खाना खा लेने के बाद बैठकर दीया बनाया ही नहीं जा सकेगा। कैसे बताये कि कच्चे दीया पर कोई जानवर अपने पैर न रख दे की रखवाली में कुत्ते जैसी नींद रही है। कैसे बताये कि दीयों को पकाने के लिए जो ईंधन, लकड़ी, भूसी आदि खरीदा है उसके लिए दस प्रतिशत प्रति माह के ब्याज पर रूपया उधार लिया है।

    ‌लक्ष्मी के जाने के बाद एक दूसरी महिला दीया खरीदने आई। उसके साथ भी उसका किशोर बेटा है।” बाबा दीया कैसे दिये?” उसने पूछा।

   एक रुपये का एक दीया मगर जब सौ दीये---” ।

   चार सौ दीया गिन दो बाबा, मैं पाँच सौ दूँगी। “वह महिला उसकी पूरी बात सुने बिना ही बोली।

   दीया बेचने वाला उस महिला को आश्चर्य से देखने लगा।

   माँ मुझे और रुपये चाहिए, पटाखे महँगे हैं” तभी उस महिला के बेटे ने आकर कहा।

    अब और रुपये नहीं दूँगी, ज्यादा पटाखे खरीदना अच्छी बात नहीं।”

  यदि आप कहो तो आपसे एक बात पूछूँ।” दीया बेच रहा व्यक्ति उस महिला से बोला।

   पूछिए, मगर मुझे आप न कहकर बेटी कहकर सम्बोधित करिये।”

   बेटी एक तरफ तुम मुझे दीयों का दाम बढाकर दे रही हो दूसरी तरफ अपने बेटे को पटाखे के लिए रुपये देने को मना कर रही हो। ऐसा क्यों?”

  क्योंकि मैं भी एक कुम्हार की बेटी हूँ। यह दीया कैसे बनते हैं मुझे पता है। कहाँ से कैसी मिट्टी लगती है इसकी जानकारी है मुझे। मैंने अपने इन हाथों से मिट्टी रौंदकर अपने पिता को थमाया है। जाग जागकर कच्चे दीया की रखवाली की है। अपने पिता को चाक पर दीया बनाने बैठने के लिए आधा पेट खाना खाते देखा है। क्योंकि मेरी पढाई की फीस भरने के लिए मेरे पिताजी आजके दिन का बेसब्री से इंतजार करते थे। “बोलते बोलते उसकी आँखों से आँसूओं के निर्झर झरने लगे।

     बेटी चार सौ दीया हो गया, मगर मैं अपनी बेटी से इसका दाम नहीं लूंगा।”

  मगर मैं तो अपने छोटे भाई बहनों के मिठाई के लिए रुपये जरूर दूँगी। इन्हीं मिट्टी के दीया के रूपयों ने मुझे आज एक इन्जीनियर बनाया है।” ऐसा कहकर वह पाँच सौ के दो नोट जबरदस्ती पकड़ाकर उसका पैर छूकर चली गई।

    दीया वाला लक्ष्मी का दूसरा रूप देखता रह गया। उसे ऐसा लगा जैसे साक्षात लक्ष्मीजी ने ही उसके श्रम को पहचान कर अपना दर्शन दिया हो। उसके हाथ स्वयमेव जुड़ गये थे, सूनी सूनी आँखें भर आयी थीं।


प्रेम नारायन तिवारी

रुद्रपुर, देवरिया

कविता


डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

1.

कुकुर कथा

 

अगले जनम मोहे ठाकुर जी

देसी कुकुर रूप न दीजो

अगर बनाओगे मोहे देसी कुकुर

प्रजनन क्षमता न दीजो

सही न जाए ये अपमान ठाकुर जी

कि नाम कुकुर ही बन गया है गाली

अगले जनम यह नाम, यह रूप न दीजो

जो लगे तुमको जरूरी कुकुर ही बनाना

तो विदेसी रूप-रंग, चाल-ढाल का

Dogy बना दीजो

जिसको गोद में लेकर लोगबाग भूल जात हौ

सबहीं दुःख, माता-पिता, खुद के बचवन

मोहे अइसन नसीब दीजो

एक ही विनती ठाकुर जी मोरे

मोहे देसी कुकुर न कीजो

Sit, Stand, Sleep, Eat

अंग्रेजी हम सिख लेबो

ग्लूटेन फ्री भोजन खाकर

Walk पर जाकर हम खुद को स्मार्ट बना लेबो

ई जनम प्लास्टिक और कचड़ा खाकर

पेट-पीठ पीरावत हौ ठाकुर जी

जनावर जात की ही जीवन है संकट में

ऊपर से ई देसी कुकुर रूप

सरकार के मन न भावत हौ

अब इस रूप से मोरे ठाकुर जी

मोहे मुक्ति दीजो

 ***

 

2. देशभक्ति

 

यह देशभक्ति, यह जोश

केवल फेसबुक पर सिमट कर न रह जाएँ

दिख जाएँ कहीं कोई शाख सूखता हुआ

तो देश का समझकर

उसे पानी दे दिया जाए।

कलमा क्यों पढ़ने को कहा?

यह प्रश्न दोहराया न जाए।

गीता के कितने श्लोक याद हैं

आत्ममंथन की यह बेला अब शुरू हो जाए।

है खुद की भी गलती उसमें सुधार आए

जल,स्थल, वायु हो पर्यावरण मुक्त

यह भी है देशभक्ति,

बच्चे - बच्चे को समझ आए।

स्त्री शक्ति जब आसमान पर छा गई है

तो ज़मीन पर क्यों उसकी आत्मा होती है लहुलुहान

इस प्रश्न का अब उत्तर आए

यह देशभक्ति, यह जोश

केवल फेसबुक पर सिमट कर न रह जाएँ।

***

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

सहायक प्राध्यापक

भाषा विभाग

भवंस विवेकानंद कॉलेज

सैनिकपुरी केंद्र

हैदराबाद – 500094

 


कृती व्यक्तित्व

कमाल की शख्सियत थे डॉ. कलाम

डॉ. घनश्याम बादल

15 अक्टूबर को भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती है। एक ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी जिनके मन में देश और विज्ञान से प्रेम गहराइयों तक भरा था जिन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा सादगी और महानता के अद्भुत संगम ‘पेपरब्वॉय’ से ‘मिसाइलमैन’ बने कलाम देश के सर्वोच्च पद तक पहुँचे ।

बच्चों खास तौर पर छात्रों से उन्हें बहुत स्नेह था वे उनके पास जाकर सबसे ज़्यादा खुशी महसूस करते थे । इसीलिए उन्होने अपना जन्मदिन भी छात्रों को ही ‘छात्र दिवस’ के रूप में अर्पित किया।   और अंतिम सांस भी छात्र-छात्राओं के ही बीच व्याख्यान देते हुए ली । बहुत साधारण  दिखने वाले असाधारण शख्स थे  भारत रत्न डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम।

            पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक ऐसे राष्ट्रपति थे उन्होंने एक ऐसी परंपरा की शुरुआत की  महामहिम होते हुए भी उन्हें महामहिम  या हिज एक्सीलेंसी कहलवाना पसंद नहीं था । भले ही राष्ट्रपति बनने से पहले कभी राजनीति से नहीं जुड़े कलाम, मगर  सर्वोच्च पद पर आकर  राजनीति को एक नई दिशा दी।

11वें राष्ट्रपति डॉ. अवुल पाकिर जैनुल आब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम में हुआ,   2002 से 2007 तक इस पद पर रहे। इससे पहले  रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन तथा भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन  में लगभग चार दशकों तक वैज्ञानिक  के रूप में कार्य किया। अन्तरिक्ष कार्यक्रम तथा सैन्य मिसाइल विकास कार्यक्रम में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण  रही और भारत की पहली मिसाइल अग्नि बनाने में उनके योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें 'मिसाइल मैन ऑफ़ इन्डिया' कहा जाता है।

डॉ. कलाम एक प्रसिद्ध लेखक भी थे, उनकी लिखीं पुस्तकें काफी लोकप्रिय हैं। डॉ. कलाम द्वारा रचित प्रमुख पुस्तकों में इंडिया 2020, विंग्स ऑफ़ फायर, इग्नाइटेड माइंडस, द लुमिनस स्पार्क्स, मिशन इंडिया, इंस्पायरिंग थॉट्स, इन्डोमिटेबल स्पिरिट, टर्निंग पॉइंट्स, टारगेट 3 बिलियन, फोर्ज योर फ्यूचर, ट्रांसेंडेंस : माय स्पिरिचुअल एक्सपीरियंस विद प्रमुख स्वामीजी, एडवांटेज इंडिया : फ्रॉम चैलेंज टू अपोर्चुनिटी शामिल है।

     डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम  विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श थे।  उनकी उपलब्धियों के कारण उनके जन्मदिन को ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रुप में मनाने की घोषणा की गई है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सभी वर्गों और जाति के छात्रों के लिए प्रेरक और मार्गदर्शक थे। एक छात्र के रूप में उनका जीवन काफी चुनौतीपूर्ण रहा। अपने जीवन में उन्होंने  कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना दृढ़ता से किया     हर तरह की बाधाओं को पार करने में सफल रहे और राष्ट्रपति जैसा  सर्वोच्च  संवैधानिक पद प्राप्त किया।

   अपने वैज्ञानिक और राजनैतिक जीवन में डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने खुद को एक शिक्षक ही माना छात्रों से मिलना और उनसे बातें करना  उन्हें प्रिय था । फिर चाहे वे किसी गाँव के छात्र हों या बड़े कालेज अथवा विश्वविद्यालय के ।

    डॉ. कलाम के जीवन से चुनौतियों व बाधाओं को पार करते हुए बड़े से बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है  उनका मानना था कि छात्र देश के भविष्य है और यदि उनकी अच्छी से देख-रेख की जाये तो वह समाज में कई सारे क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं।

    डॉ.  कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलाजी से सन् 1960 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।भारत के प्रथम सेटेलाइट लांच (एसएलवी 2) में प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर बने।1981 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किये गये। 1990 में पद्म विभूषण सम्मान व 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किये गये।

   डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम  अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के बाद भारत ही नहीं अपितु विश्व भर के आकादमिक संस्थानो में अपने भाषणों द्वारा छात्रों को प्रेरित करने का कार्य करते रहे। छात्रों के प्रति उनका यह प्रेम इतना गहरा था कि उन्होंने अपनी आखिरी साँस भारतीय प्रबंधन संकाय में पृथ्वी को एक जीवित ग्रह बनाए रखने विषय पर भाषण देते हुए ली।

     कई  विश्वविद्यालयों से वह राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी जुड़े रहे। विद्यार्थी  डॉ कलाम को बहुत  ध्यान से सुनते थे।

    कलाम सच्चे मायनों में महानायक थे। जिस तरह की कठिनाइयाँ उन्होंने अपने बचपन में झेली, किसी और व्यक्ति को अपने रास्ते से डिगा सकती थी। पर डॉ अब्दुल कलाम इन सब कठिनाइयों का सामना शिक्षा के अस्त्र से किया उनके विषय में कोई चर्चा तब तक नहीं पूरी होगी जब तक उनके धर्म निरपेक्ष चरित्र की बात न की जाये, जिसका उन्होंने सदैव अपने जीवन में पालन किया। वह सच्चे धर्म निरपेक्ष थे  असाधारण होकर भी साधारण रहते थे, उनका व्यवहार सामान्य व्यक्तियों जैसा था।

    अब्दुल कलाम ऐसे शख्स थे जिन्होंने जीवन में चुनौतियों को  स्वीकार किया उन्हें परास्त करके वह सफलता के शिखर पर पहुँचे।‌ उनकी आंखों में सदैव भविष्य के भारत के  सपने तैरते थे । उनका कहना था कि सपने वे नहीं होते जो सोते हुए देखते हैं अपितु सपने तो वह होते हैं जो सोने नहीं देते ।  वह सदैव ही भविष्य के नागरिकों को ऊंचा लक्ष्य रखने का परामर्श देते थे उनका कहना था - 'सोचो तो आकाश की सोचो, अगर गिरे भी तो तारों के बीच गिरोगे" । डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बताए रास्ते पर चलकर उनके दर्शन एवं आदर्शों को अपने जीवन में उतार कर भारत विश्व के शिखर पर पहुँचने में सक्षम है ।

सदैव शांति के पक्षधर रहे डॉ कलाम ने भारत को परमाणु शक्ति बनाने में भी अतुलनीय योगदान दिया उन्हीं के कार्यकाल में वाजपेई सरकार ने 1998 में दूसरा परमाणु विस्फोट किया जिसमें डॉ कलाम ने सक्रिय रहकर सरकार का साथ दिया । डॉ कलाम एक कमल की शख्सियत से और यह उनके व्यक्तित्व का कमाल ही था कि हिंदुत्व सोच की वाजपेई सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और यह कलाम की प्रशासनिक क्षमता एवं दूर दृष्टि थी कि इस कार्यकाल में भारत ने प्रगति के नए आयाम छुए । यदि आज हम एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विश्व के सामने हैं तो इसके पीछे डॉ कलाम की सोच एवं गहन चिंतन भी है। उनकी जयंती पर उन्हें सादर नमन।

डॉ. घनश्याम बादल

215, पुष्परचना कुंज,

गोविंद नगर पूर्वाबली

रुड़की - उत्तराखंड - 247667


शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक

 

शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक

प्रकाशपर्व की मंगलकामनाओं सहित.....

प्रो. हसमुख परमार

हमारी संस्कृति का एक अभिन्न और अहम अंग है – त्यौहार। हम जानते हैं कि हमारे हर पर्व- त्यौहार के मूल में कोई न कोई पौराणिक या ऐतिहासिक या लोक-प्रचलित कथा-कहानी होती ही है जो उस पर्व व त्यौहार विशेष के प्रारंभ, परंपरा व प्रयोजन को बताती है। वैसे किसी त्यौहार के मनाने के मूल निमित्त रही कथा-कहानी चाहे जो भी हो, त्यौहार होता है मुख्यतः आनंद-उत्साह, संदेश, संकल्प, सकारात्मक सोच तथा व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति हमारे सद्‌भावनात्मक सरोकारों का ही दूसरा नाम।

भारतीय संस्कृति और समाज में मनाये जाने वाले त्यौहारों में दिवाली या दीपावली का कुछ ज्यादा ही महत्त्व रहा है। पाँच दिवसीय इस प्रकाशपर्व के साथ जुड़े रामायण, महाभारत तथा जैन धर्म के कतिपय संदर्भों से हम परिचित ही हैं। दीयों की प्रभा से तिमिर को दूर करने का संदेश लेकर आने वाला यह पर्व हमारे जीवन को और बेहतर तथा औरों के लिए ज्यादा उपयोगी बनाने की प्रेरणा देता है। यहाँ दीयों के प्रकाश तथा तम की प्रतीकात्मकता भी बड़ी वैविध्यपूर्ण व गहरी है। प्रकाश-ज्ञान, सत्य, प्रेम, सौहार्द्र, भाईचारा, मनुष्यता की ज्योति जिसे तम यानी अज्ञान, असत्य, मन की कुत्सित वृत्तियों-विकारों को दूर करना। और युगों-युगों से इस उजालेऔर तममें संघर्ष चल रहा है। । यह भी न भूलें कि तमभी बड़ा बलशाली है। इतना जल्दी मिटेगा नहीं । ये ‘अँधेरेइतनी आसानी से छँटते नहीं।

कवि नीरज लिखते हैं –

बहुत बार आई-गई यह दिवाली

मगर तम जहाँ था, वहीं पर खड़ा है।

बहुत बार लौ जल बुझी पर अभी तक

कफ़न रात का हर चमन पर पड़ा है।

 

किंतु यह त्यौहार हमारे भीतर एक नवीन उत्साह व ऊर्जा का संचार करता है, आशावादी व सकारात्मक सोच से हमारे मन-मस्तिष्क को भरता है, हमें अंधकार से जूझने के लिए प्रेरित करता है, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के साथ-साथ ‘अप्प दीपो भवः’ जैसे भारतीय संस्कृति के महामंत्रों का स्मरण कराता है। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने अंधकार से जूझना है! निबंध में लिखते हैं – “दीवाली आकर कह जाती है कि अंधकार से जूझने का संकल्प ही सही यथार्थ है। मृगमरीचिका में मत भटको। अंधकार की सैकड़ों परत हैं। उससे जूझना ही मनुष्य का मनुष्यत्व है। जूझने का संकल्प ही महादेवता है। उसी को प्रत्यक्ष करने की क्रिया को लक्ष्मी की पूजा कहते हैं।”

हमारा घर, आँगन, अंतःकरण तथा समाज-राष्ट्र इस दीपोत्सवी उजाले से सदैव आलोकित रहे, इसी कामना व प्रार्थना के साथ शब्दसृष्टि के आप सभी पाठकों तथा अपने ज्ञान, विचार व शब्दों के प्रकाश से शब्दसृष्टि को प्रकाशित करने वाले तमाम कलमकारों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभेच्छाएँ । शब्दसृष्टि का यह 64वाँ अंक इसी प्रकाशपर्व के उपहार रूप में आपके समक्ष सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। पुनः आप सभी के लिए – प्रकाशपर्व मंगलमय हो !

 

प्रो. हसमुख परमार

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभ विद्यानगर

आणंद (गुजरात)

विशेष


रामलीला मंचन का इतिहास और उसका वैश्विक परिप्रेक्ष्य

सुरेश चौधरी ‘इंदु’

प्रस्तावना

कल एक विश्वप्रसिद्ध लेखकों के व्हाट्सप्प ग्रुप में डॉ. टी रवीन्द्रन ( उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं है) ने निवेदन किया कि राम लीला मंचन के इतिहास पर प्रकाश डालता लेख लिखूँ। विषय मेरी रुचि का था अतः कुछ तो जानकारी थी कुछ जानकारी गूगल और ए आई और उपलब्ध पुस्तकों से तलाशी और यह लेख तैयार हुआ।

रामकथा भारतीय सांस्कृतिक चेतना का आधारभूत आख्यान है। यह केवल धार्मिक महाकाव्य न होकर मानव जीवन के आदर्शों, नीति, धर्म और सामाजिक संगठन का प्रतीक है। इसी कथा का सार्वजनिक नाट्यरूप “रामलीला” कहलाता है। रामलीला आज केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों में भी भिन्न-भिन्न रूपों में जीवित परंपरा के रूप में प्रचलित है। प्रस्तुत आलेख में रामलीला के भारतीय इतिहास, उसके ऐतिहासिक प्रमाणों तथा थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में उसके प्रसार का विवेचन किया गया है।

1. भारत में रामलीला का इतिहास

(क) आरंभ और प्राचीनता

रामायण का काव्यात्मक रूप वाल्मीकि (500 ई.पू. से 100 ई.) द्वारा दिया गया। आगे भवभूति के उत्तररामचरित (8वीं सदी) जैसे संस्कृत नाटकों में भी रामकथा का नाट्यरूप मिलता है। लोकजीवन में यह कथा कथा-वाचकों और भागवतारों द्वारा गाई-बजाई जाती रही। धीरे-धीरे यह नाट्यरूप में विकसित हुई।

कृतवासी रामायण पर आधारित जात्रा नाटक राम कथा का उल्लेख 15 वीं सदी में मिलता है।

रामलीला के मंचन का रूप पूर्ण रूप से राधेश्याम रामायण आने से बदल गया। यह रामायण प्रख्यात राम कथा वाचक पंडित राधेश्याम कथावाचक ने की थी।  इस रामायण में श्री राम की कथा का वर्णन इतना मनोहारी ढँग से किया गया है कि समस्त राम प्रेमी जब-जब इस रचना का रसपान करते हैं और इस पर आधारित रामलीला देखते हैं तो झूम उठते हैं और तब-तब वे इसके प्रणेता के प्रति अपना आभार व्यक्त करते है।

हिन्दी, उर्दू, अवधी और ब्रजभाषा के आम शब्दों के अलावा एक विशेष गायन शैली में रचित राधेश्याम रामायण गाँव, कस्बा और शहरी क्षेत्र के धार्मिक लोगों में इतनी लोकप्रिय हुई कि राधेश्याम कथावाचक के जीवनकाल में ही इस ग्रन्थ की हिन्दी व उर्दू में पौने दो करोड़ से अधिक प्रतियाँ छपीं और बिकीं।

मुख्य रूप से भारत में ही सैकड़ों रामकथा ग्रन्थ हैं परंतु उनमें मुख्य हैं,

प्रमुख रामायणों के नाम -

वाल्मीकि रामायण

रामचरितमानस

कृत्तिबासी रामायण

कम्ब रामायण

डंडी रामायण( जगमोहन रामायण)

उत्तर रामायण

अद्भुत रामायण

आनंद रामायण

अध्यात्म रामायण

राधेश्याम रामायण

थाई की रामाकेन नामक रामायण अति प्रचलित है,

इन सभी रामकथाओं को आधार मान कर सदियों से राम कथा का मौखिक वाचन तो प्रारम्भ से हो रहा है साथ ही आरम्भ में यदा कदा अभिनीत कर प्रसंग में रोचकता दी जाती रही वही रोचकता रामलीला का रूप ले चुकी थी।

(ख) तुलसीदास और संगठित रामलीला

16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस (1574–77 ई.) की रचना ने उत्तर भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना को गहन रूप से प्रभावित किया। तुलसीदास की प्रेरणा से काशी में कथा-पाठ को संवादात्मक मंचन रूप मिला। जो कि 1625 ई. से आरम्भ हुआ उसमें कहते हैं तुलसीदास जी स्वयं राम चरित मानस की चौपाइयों को पढ़ते थे और लोजी उन चौपाइयों पर मंचन करते थे।

 18वीं शताब्दी में काशी के रामनगर की रामलीला को महाराजा उदित नारायण सिंह ने संगठित एवं भव्य रूप दिया। यहाँ की रामलीला लगभग 31 दिनों तक चलती है और आज भी विश्वविख्यात है।

(ग) अन्य केंद्र

अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा, दिल्ली, राजस्थान, बिहार एवं मध्य भारत में 17वीं–18वीं शताब्दी से रामलीला का व्यापक मंचन आरंभ हुआ। स्थानीय भाषाओं—अवधी, ब्रज, भोजपुरी—में इसे लोकनाट्य शैली में प्रस्तुत किया गया।

2. प्रमाण और ऐतिहासिक साक्ष्य

रामचरितमानस (1574–77) : रामलीला का आधार-ग्रंथ।

रामनगर रामलीला (18वीं सदी) : आज भी निरंतर चल रही परंपरा।

UNESCO (2008) : “Ramlila, the traditional performance of the Ramayana” को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया।

ब्रिटिश यात्रियों के वृत्तांत : W. H. Sleeman (19वीं सदी) ने उत्तर भारत की मेलों एवं रामलीला का उल्लेख अपने संस्मरण Rambles and Recollections of an Indian Official (1844) में किया।

समकालीन समाचार-पत्र : 19वीं–20वीं शताब्दी में लाखों की भीड़ वाले रामलीला उत्सवों का विवरण।

3. दक्षिण-पूर्व एशिया में रामलीला परंपरा

भारत से समुद्री व्यापार, ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से रामायण दक्षिण-पूर्व एशिया पहुँची और वहाँ की संस्कृति में रच-बस गई।

(क) थाईलैंड

रामायण का स्थानीय नाम रामकियन (Ramakien) है।

14वीं–15वीं शताब्दी में अयुथ्या साम्राज्य के दौरान इसका प्रवेश हुआ।

राजा राम-I (1782–1809) ने इसे संकलित करवाया।

आज भी “खोन” नृत्य-नाट्य में रामलीला मंचित होती है।

(ख) वियतनाम

यहाँ रामायण का रूप फ्रा लक फ्रा लाम (Phra Lak Phra Lam) के रूप में प्रचलित है।

इसका प्रसार चम्पा साम्राज्य (12वीं–15वीं सदी) के माध्यम से हुआ।

बौद्ध और लोकनाट्य परंपराओं में आज भी यह जीवित है।

(ग) कंबोडिया

स्थानीय नाम रैमकेर (Reamker)

7वीं–8वीं सदी से ही शिलालेखों और मंदिर मूर्तियों में प्रमाण मिलते हैं।

अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर रामायण प्रसंग अंकित हैं।

(घ) इंडोनेशिया

यहाँ का ककाविन रामायण (9वीं सदी) और वायंग नाट्य परंपरा विश्वविख्यात है।

प्राम्बानन मंदिर में प्रतिवर्ष “रामायण बैले” आज भी आयोजित होता है।

(ङ) लाओस

यहाँ भी नाम फ्रा लक फ्रा लाम है।

यह लोकसंस्कृति एवं नैतिक शिक्षा का प्रमुख आधार है।

4. सांस्कृतिक महत्व

रामलीला ने धर्म, कला और समाज को जोड़ने का कार्य किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी रामलीला सभाओं ने जनजागरण में भूमिका निभाई। दक्षिण-पूर्व एशिया में रामलीला का प्रसार भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का सशक्त प्रमाण है।

निष्कर्ष

रामलीला भारतीय सांस्कृतिक विरासत की अनूठी परंपरा है। इसकी जड़ें वाल्मीकि और तुलसीदास तक जाती हैं और शाखाएँ थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया और लाओस तक फैली हैं। UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त यह धरोहर भारतीय संस्कृति की वैश्विक गूँज का प्रतीक है।

संदर्भ सूची

UNESCO. Ramlila, the traditional performance of the Ramayana, Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity, 2008.

Tulsidas. Ramcharitmanas, काशी, 1574–77 ई.

Sleeman, W. H. Rambles and Recollections of an Indian Official, London, 1844.

Encyclopaedia Britannica. Ramakien (Thai Literature), 2024 edition.

Times of India. “Ramnagar’s month-long Ramlila draws lakhs”, 2023.

Michael Aung-Thwin, The Mists of Ramayana in Southeast Asia, Journal of Asian Studies, 2010.

radheshyam kathawachak vidyavachspti.

***

2. 

भारत की आर्थिक स्थिति : ऋण, विकास और बाह्य व्यापारिक दबाव

(India’s Economic Condition: Debt, Growth, and External Trade Pressures)

1. प्रस्तावना (Introduction)

भारत की अर्थव्यवस्था (Economy) वर्तमान समय में एक ऐतिहासिक संक्रमण (Historic Transition) से गुजर रही है। वर्ष 2025 तक देश का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच चुका है, जिससे भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fourth-Largest Economy in the World) बन गया है।

यह प्रगति ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक परिदृश्य (Global Landscape) ऊर्जा संकट, आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधान (Supply Chain Disruptions) और व्यापारिक तनाव (Trade Tensions) से प्रभावित रहा है। भारत की वृद्धि के मुख्य आधार हैं — उच्च घरेलू खपत (High Domestic Consumption), सेवा क्षेत्र की मजबूती (Robust Services Sector), तथा सरकारी पूंजीगत निवेश (Capital Expenditure) में निरंतर विस्तार।

साथ ही, भारत का सार्वजनिक ऋण (Public Debt) भी बढ़ा है — 2014 में यह GDP का लगभग 64% था, जो अब 81% तक पहुँच गया है। यह वृद्धि अस्थिरता नहीं, बल्कि निवेश-प्रधान विकास (Investment-Led Growth) की ओर संकेत करती है।

2. ऋण का स्वरूप और उपयोग (Structure and Utilization of Debt)

भारत के सार्वजनिक ऋण को तीन प्रमुख वर्गों में देखा जा सकता है —

(i) पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)

पिछले दशक में सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure), परिवहन (Transport), रक्षा (Defence) और डिजिटल ढाँचे (Digital Infrastructure) पर ऐतिहासिक निवेश किया है।

–2014–15 में पूंजीगत व्यय ₹2.5 लाख करोड़ था, जो 2024–25 में बढ़कर ₹11.1 लाख करोड़ हो गया — यह कुल बजट व्यय का लगभग 22% है।

–यह राशि सड़कों, रेलमार्गों, बंदरगाहों, हरित ऊर्जा (Green Energy), रक्षा उपकरणों, और Jal Jeevan Mission जैसी परियोजनाओं में लगी है।

यह व्यय “उत्पादक ऋण” (Productive Debt) माना जाता है क्योंकि इससे दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि (Long-Term Economic Growth) और रोजगार (Employment Generation) दोनों को बल मिलता है।

(ii) राजस्व व्यय और सामाजिक सुरक्षा (Revenue Expenditure and Social Security)

ऋण का एक बड़ा भाग सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (Social Welfare Schemes) और सब्सिडी (Subsidies) में उपयोग होता है — जैसे खाद्य, उर्वरक, ऊर्जा, ग्रामीण आवास (Rural Housing), स्वास्थ्य (Healthcare), और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer – DBT)

–वित्त वर्ष 2024–25 में इन योजनाओं पर लगभग ₹5.7 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है।

 यह व्यय जनसामान्य की क्रय-शक्ति (Purchasing Power) और सामाजिक स्थिरता (Social Stability) को बनाए रखता है।

 

(iii) ब्याज भुगतान और अनिवार्य खर्च (Interest Payments and Committed Expenditure)

भारत के कुल सरकारी व्यय का लगभग 26% केवल ब्याज भुगतान (Interest Payments) में जाता है — जिसकी राशि 2024–25 में लगभग ₹11.9 लाख करोड़ है।

 रक्षा, वेतन और पेंशन को जोड़ने पर यह “अनिवार्य खर्च” (Committed Expenditure) लगभग कुल बजट का आधा हो जाता है।

3. ऋण का प्रकार : घरेलू और बाह्य (Domestic vs. External Debt)

–घरेलू ऋण (Domestic Debt) — कुल ऋण का लगभग 78–80%, जो भारतीय निवेशकों, बैंकों, बीमा कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं से लिया गया है।

–बाह्य ऋण (External Debt) — लगभग 20%, जिसमें बहुपक्षीय संस्थाओं (Multilateral Institutions) जैसे विश्व बैंक (World Bank), एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank – ADB), तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund – IMF) से प्राप्त ऋण शामिल हैं।

IMF से संबंधित दायित्व (IMF Credit Liabilities) कुल बाह्य ऋण का लगभग 3%, और बहुपक्षीय संस्थाओं का हिस्सा 11% है।

भारत का अधिकांश ऋण घरेलू मुद्रा (Domestic Currency – INR) में होने से यह विदेशी विनिमय जोखिम (Foreign Exchange Risk) से अपेक्षाकृत सुरक्षित है।

यह वाह्य ऋण जीडीपी का 19.1% ही है जो कि पूरी तरह कंट्रोल में है

4. आर्थिक वृद्धि और ऋण-संतुलन (Growth–Debt Balance)

भारत की आर्थिक वृद्धि दर (Growth Rate) पिछले कुछ वर्षों में लगातार उच्च रही है।

–वित्त वर्ष 2023–24 में वास्तविक GDP वृद्धि 7.2% रही।

IMF के अनुसार 2025 के लिए अनुमानित वृद्धि 6.5% है।

जब तक आर्थिक वृद्धि दर ब्याज दर (Interest Rate) से अधिक बनी रहती है, तब तक ऋण वृद्धि (Debt Expansion) संकट का रूप नहीं लेती। भारत फिलहाल इस “सकारात्मक ऋण-संतुलन” (Positive Debt Dynamics) की स्थिति में है।

CareEdge और IMF दोनों का अनुमान है कि 2035 तक भारत का ऋण अनुपात घटकर 70–72% के बीच स्थिर हो सकता है, बशर्ते यह वृद्धि दर बनी रहे।

5. अमेरिकी टैरिफ वृद्धि और बाह्य दबाव (US Tariff Hikes and External Pressures)

(i) स्थिति का सार (Overview)

2025 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर 25–50% तक की आयात-शुल्क वृद्धि (Tariff Increase) लागू की।

 इस निर्णय के पीछे दो प्रमुख कारण थे —

व्यापार संतुलन (Trade Balance) में असमानता, और

कुछ भू-राजनीतिक (Geopolitical) मतभेद।

प्रभावित क्षेत्र हैं — वस्त्र (Textiles), रत्न-आभूषण (Gems & Jewellery), रसायन (Chemicals), और चमड़ा उद्योग (Leather Industry)

(ii) संभावित प्रभाव (Likely Impact)

–भारत का कुल निर्यात (Exports) लगभग $770 अरब, जिसमें से अमेरिका का हिस्सा $87 अरब (लगभग 11%) है।

–नई टैरिफ दरों से लगभग 55% अमेरिकी निर्यात प्रभावित हुआ।

ING के अनुमान के अनुसार, इसका कुल GDP पर संभावित प्रभाव 0.6–0.7% तक की कमी (Reduction) के रूप में हो सकता है।

–सितंबर 2025 में भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़कर $32 अरब हो गया — जो 11 माह का उच्चतम स्तर था।

(iii) संतुलनकारी पहलू (Stabilizing Factors)

-भारत का निर्यात–GDP अनुपात (Export–GDP Ratio) लगभग 20%, जबकि घरेलू उपभोग (Domestic Consumption) 55% से अधिक है; अतः टैरिफ का प्रभाव सीमित रहेगा।

–भारत निर्यात विविधीकरण (Export Diversification) द्वारा ASEAN, यूरोप और अफ्रीका में नए बाजारों का विस्तार कर रहा है।

–सेवा-निर्यात (Service Exports) — विशेषकर IT, डिजिटल, और परामर्श क्षेत्र — $350 अरब से अधिक हैं और टैरिफ वृद्धि से अप्रभावित हैं।

6. प्रमुख आर्थिक संकेतक (Key Economic Indicators – 2025 Estimates)

संकेतक

स्थिति

टिप्पणी

GDP (नाममात्र – Nominal)

$4 ट्रिलियन

विश्व में चौथा स्थान (4th Position)

GDP वृद्धि दर (Growth Rate)

6.5–7%

विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था

सरकारी ऋण / GDP (Public Debt / GDP)

81%

नियंत्रण आवश्यक पर संकट नहीं

मुद्रास्फीति (Inflation)

5–6%

RBI के लक्ष्य दायरे में

विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves)

$640 अरब

मजबूत सुरक्षा कवच

चालू खाता घाटा (Current Account Deficit)

~1.5% GDP

प्रबंधनीय स्तर

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)

22% बजट व्यय

रिकॉर्ड स्तर

बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate)

7–8%

सुधार आवश्यक

7. निष्कर्ष (Conclusion)

भारत की अर्थव्यवस्था ऋण-आधारित संकट (Debt-Driven Crisis) नहीं, बल्कि निवेश-प्रधान विकास मॉडल (Investment-Led Growth Model) का उदाहरण है।

 सरकारी ऋण का उपयोग मुख्यतः उत्पादक अवसंरचना (Productive Infrastructure), सामाजिक सुरक्षा (Social Safety Nets), और दीर्घकालिक निवेश (Long-Term Capital Formation) में हुआ है।

अमेरिका की टैरिफ वृद्धि जैसे बाह्य दबाव (External Shocks) अस्थायी अवरोध अवश्य उत्पन्न कर सकते हैं, परंतु भारत की बहुआयामी अर्थव्यवस्था (Diversified Economy), विशाल घरेलू बाजार (Large Domestic Market), और सशक्त सेवा-क्षेत्र (Robust Service Sector) इन दबावों को संतुलित करने में सक्षम हैं।

संक्षेप में (In Summary):

 बढ़ता ऋण भारत के लिए संकट नहीं, बल्कि संसाधन (Resource) है — बशर्ते यह उत्पादक निवेश और वित्तीय अनुशासन (Fiscal Discipline) के साथ प्रयुक्त हो।

 भारत की आर्थिक नींव (Economic Fundamentals) सुदृढ़, टिकाऊ और दीर्घकालीन विकास (Sustainable Long-Term Growth) की दिशा में अग्रसर है।

📘 स्रोत (References)

IMF World Economic Outlook (2024–25)

Reserve Bank of India Annual Report (2025)

Ministry of Finance, Union Budget 2024–25

CareEdge Ratings: Debt Projections for India (2025)

ING Economics Report: Impact of US Tariffs on India (2025)

World Bank: International Debt Statistics (2024)

(लेख लिखने के बाद आधुनिक तकनीक आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की सहायता से लेख को फॉर्मेटिंग और संपादित किया है।)


सुरेश चौधरी ‘इंदु’

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

अक्टूबर 2025, अंक 64

  शब्द-सृष्टि अक्टूबर 2025, अंक 64 शब्दसृष्टि का 64 वाँ अंक : प्रकाशपर्व की मंगलकामनाओं सहित.....– प्रो. हसमुख परमार आलेख – दीपपर्व – डॉ...