मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

आलेख



दीपावली की प्रासंगिकता और स्वरूप

डॉ. राजकुमार शांडिल्य

एक जैसी दिनचर्या से जीवन नीरस लगता है उसमें नवीनता और  उल्लास के संचार के लिए भारतीय ऋषि मुनियों ने त्योहारों की परम्परा का आरंभ किया। आजकल की भाग दौड़ भरी जीवन शैली में ये त्योहार अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। ये राष्ट्रीय एकता, भाईचारे तथा समरसता के संदेश के साथ ही हमें अपनी समृद्ध संस्कृति से भी परिचित करवाते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में प्रजा ने घी के दिए जलाकर उनका स्वागत किया था। दीपावली ज्योतिप्रिया श्री की उपासना का पर्व है। श्री व्यक्ति के मुख पर मुखरित होने से वह श्रीमान् कहलाता है। श्री महालक्ष्मी बनकर महासरस्वती की नित्यसंगिनी है। यह प्रकाश का त्योहार अज्ञान का अन्धकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाने तथा घर के आस-पास का कूड़ा-कर्कट साफ करने के साथ ही अल्पज्ञता के मल को भी दूर करके हृदय को उज्ज्वल बनाने का प्रतीक है। जहाँ पर सत्य, प्रियदर्शन, सुन्दरता, पुरुषार्थ, विनय, श्रद्धा तथा स्वाध्याय हैं वहीं पर लक्ष्मी का निवास होता है ऐसा स्कन्दपुराण तथा महाभारत में कहा है।

गुरु कृपा और स्वाध्याय से मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान का रहस्य जान लेने से मनुष्य अहंकार त्याग कर विनम्र हो जाता है। ज्ञान संचय से मनुष्य संसार की नश्वरता के विषय में जान लेता है और लोभवश अधिक संग्रह नहीं करता है, मोह और विषय वासनाओं के जंगल में पूरी तरह नहीं उलझता है। यदि हम निर्धन, असहाय और पीड़ित लोगों के जीवन में कुछ प्रकाश की किरणें ला देते हैं तो यह दीपावली का पर्व हमारे जीवन को भी प्रकाशमय बना देता है। छल-कपट के त्याग से हृदय निर्मल हो जाता है। जो मनुष्य देश, धर्म और जाति की सीमाओं से बाहर निकल कर विश्व में बंधुत्व की भावना रखता है उसका जीवन सफल होता है। सत्य से ही संसार में सौन्दर्य है, सत्य में ही कल्याण निहित है। असत्य से विनाश निश्चित है। यह सत्य, धर्म और सदाचार की विजय का पर्व है। अहंकार के कारण स्वयं को सर्वोत्कृष्ट मानने वाला कभी भी श्रद्धालु नहीं बन पाता है। अहंकार ज्ञानशील का भी विनाश कर देता है। जिसके मन में शंका रहती है वह कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाता है।

पुरुषार्थ से ही मनुष्य उन्नति के शिखर पर आरूढ होता है, उसके यश की पताका सब ओर लहराती है और लक्ष्मी भी स्वयं उसके पास आती है।

स्वच्छता से स्वास्थ्य और फिर अपना और देश का भला हो सकता है। यदि मनुष्य के भीतर दैवी प्रवृत्तियों का विकास और पशुता का विनाश हो जाए तो उल्लास होता है। पर्व पर नई वस्तुएँ खरीदने और बंधुजनों में आदान-प्रदान से उल्लास उमंग और भ्रातृत्व की भावना बढ़ती है।

उलूक वाहिनी की उपासना से अवैध और अनैतिक धन की प्राप्ति होती है। यदि हमारा जीवन कीचड़ में पैदा हुए कमल के समान निर्मल और निर्लेप हो जाए और दूसरों के जीवन में खुशियों का संचार हो जाए तो प्रतिक्षण त्योहार ही है।

द्यूतक्रीडा और मदिरा पान से त्योहार की पवित्रता नष्ट होती है। आज धन का प्रदर्शन, मर्यादा विरुद्ध आचरण, लोभ के कारण खाद्य पदार्थों में मिलावट, पटाखों से ध्वनि प्रदूषण, अनुचित तथा असामाजिक कार्यों के लिए नेताओं और अधिकारियों को  उपहार के रूप में घूस से स्वार्थ सिद्धि सभी त्योहारों के स्वरूप को विकृत कर रहे हैं।

हमें मानव तथा समाज के हित के लिए कमल के आसन पर विराजमान लक्ष्मी की ही उपासना करनी चाहिए जिससे सब ओर ज्ञान का प्रकाश फैले, सभी के जीवन में उल्लास और उमंग रहे, प्रत्येक क्षण त्योहार की ही अनुभूति हो। महालक्ष्मी हमें विवेक और सुख समृद्धि प्रदान करें।

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डॉ. राजकुमार शांडिल्य

हिन्दी प्रवक्ता

शिक्षा विभाग, चंडीगढ़


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