मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

लघुकथा

1  

भाग्य का लिखा

सविता मिश्रा अक्षजा

अपनी शादी तय होने की बात पर रश्मि का गुस्सा फूट पड़ा माँ पर... “क्या चाहती हैं आप? क्यों पर कुतरना चाह रही हैं मेरे।

उन्मुक्त हो उड़ रही हो। तुम्हारी उड़ान पर किसी ने पाबन्दी लगायी क्या कभी?” माँ ने रोष में जवाब दिया।

हाँ माँ लगाई! “ खीझकर रश्मि बोली।

तुम्हें पढ़ाया-लिखाया, तुमने जो चाहा, तुम्हें वो दिया। कौन-सी पाबन्दी लगाई तुम पर?”

तेईस की उम्र में ही पाँव में बेड़िया डाल दीं आपने और पूछ रही हैं कौन-सी पाबन्दी लगायीं? खुला आकाश बाहें फैलाये मेरे स्वागत के लिए बेताब था, पर आपने तो मेरे पर ही कतर दिए।

ऐसा क्यों बोल रही है? शादी तो करनी ही थी तेरी। अच्छा लड़का बड़े भाग्य से मिलता है। तेरे पापा के अंडर ट्रेनिंग किया है। तेरे पापा कह रहे थे एक दिन एक कामयाब आईपीएस बनेगा।

हाँ माँ, पापा की तरह कामयाब आइपीएस तो होगा, पर पापा की तरह पति भी बन गया तो?” उसके चेहरे पर कई भाव आये और चले गये।

बेटी के शब्द सुमन के दिल में जहर बुझे तीरसे चुभे। चेहरे पर उभर आए दर्द को छुपाते हुए बोली- “भाग्य का लिखा कोई मिटा सकता है क्या?”

हाँ माँ, मिटा सकता है... जैसे पापा ने, आपका इस्तीफा दिलाकर मिटाया, आपका अपना भाग्य। नहीं तो आज आप पापा से भी बड़ी अफसर होतीं, पर... वे अपनी लकीर बड़ी तो खींच नहीं पाए, पर आपकी लकीर को छोटी... छोड़िए, उन्होंने तो उस लकीर का वजूद ही मिटा दिया ।

--०--

2

निर्णय

नाम करेगा रोशन मेरा नन्हा राज दुलारा...” गाना गुनगुनाती हुई नीलम जल्दी जल्दी घर के काम निपटा रही थी। नहाने के बाद चाय लेकर रिशु के कमरे में आ बैठी थी। सामने दीवार पर ट्राफी लिए हुए अनूप कुमार की तस्वीर देखकर ख्यालो में खो गयी थी कि सब्जी वाले की आवाज़ गूँजी- “सब्जी ले लो, तोरई, गाजर, मटर, आलू ले लोओओss!”

भैया रुको, मैं आती हूँ!” भागती हुई आकर बालकनी से बोली।

बेटा रिशु! चल साथ में। ज्यादा सब्जी लेनी है न, तू उठा ले आना।”

जी मम्मा, आप चलिए मैं आता हूँ। बस थापर सर द्वारा दी गयी कामयाबी के टिप्स लिख लूँ!”

जल्दी आना!”

हाँ मम्मा, आप के खरीद चुकने से पहले आपके पास होऊँगा।”

टमाटर कैसे दिए भैया।”

चालीस रुपये में दीदी जी।”

इतने महँगे! न, , तीस रुपये में दो तो बोलो, हमें तीन चार किलो लेना है। राष्ट्रीय कबड्डी टीम में मेरे बेटे के सेलेक्शन होने की ख़ुशी में कल पार्टी है न।”

अरे वाह दीदी जी, फिर तो आप मेरी तरफ से फ्री में ले लीजिये।” सब्जी वाला खुश होकर बोला।

अचानक सर-सर कहते सुन ठेल से नजर उठाते ही नीलम ने रिशु को सब्जी वाले के कदमो में झुका हुआ देखा।

रिशु...?” नीलम हतप्रभ हो बोली।

मम्मा तुम नहीं जानती इन्हें? यही तो हैं मेरे अदृश्य गुरु! गोल्ड मेडिलिस्ट, जिनकी मैं दिन रात पूजा करता हूँ। आज ये मुझे मिल गए, अब साक्षात इनसे  ही सीखूँगा मैं।”

बोलिये न थापर सर, आप सिखायेंगे न मुझे कबड्डी में कामयाबी के ट्रिक?”

नीलम की ख़ुशी अब काफूर हो गयी थी। उसके सामने तराजू का पलड़ा नहीं बल्कि बेटे का वर्तमान और भविष्य ऊपर-नीचे हो रहा था।

अचानक नीलम के माथे पर बल पड़ गये। सब्जी वाले से बोली- “भैया! टमाटर बस आधा केजी ही देना।”

--०--



सविता मिश्रा अक्षजा

फ़्लैट नंबर -३०२, हिल हॉउस,

खंदारी अपार्टमेंट, खंदारी

आगरा, पिन- 282002


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