मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

तेवरी

दीपावली

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

 

::1::

लो दिवाली की बधाई, मित्रवर!

 

लो दिवाली की बधाई, मित्रवर!

लो दिवाली की मिठाई, मित्रवर!

 

एक दीपक के लिए मुहताज घर;

आपने बस्ती जलाई, मित्रवर!

 

जल चुका रावण, न बुझती है चिता;

आग यह कैसी लगाई, मित्रवर!

 

चौखटों की छाँह तक बीमार है;

क्यों हवा ऐसी चलाई, मित्रवर!

 

अब रहो तैयार लुटने के लिए;

रोशनी तुमने चुराई, मित्रवर!

 

हर अँधेरी जेल तोडी जायगी,

यह कसम युग ने उठाई, मित्रवर!

 

::2::

रोशनी जल की परी है, दीपमाला है!

 

रोशनी जल की परी है, दीपमाला है!

रोशनी रहन धरी है, दीपमाला है!!

 

कुर्सियों की दीप-लौ में सिंक रही रोटी;

पेट की यह नौकरी है, दीपमाला है!

 

क्यों हँसी को छीनकर इतरा रहे हो तुम?

आँख में लाली भरी है, दीपमाला है!

 

दुधमुँहों के रक्त में जो स्नान कर आई;

रोशनी वह मर्करी है, दीपमाला है!

 

इन पटाखों से जलेगा यह महल ख़ुद ही

आज बाग़ी संतरी है, दीपमाला है!

 

अब सुरंगों में छिपा बारूद जलना है;

रोशनी किससे डरी है! दीपमाला है !!

 

::3::

आपकी यह हवेली बड़ी!

 

आपकी यह हवेली बड़ी!

फुलझड़ी, फुलझड़ी, फुलझड़ी!!

 

आपने चुन लिए हार पर;

भेंट दीं क्यों हमें हथकड़ी?

 

आपकी राजधानी सजी;

यह गली तो अँधेरी पडी!

 

कुमकुमे, झालरें, रोशनी;

हिचकियाँ, आँसुओं की लड़ी!

 

आँख में जल चुके शब्द सब;

होंठ पर कील जिनके जड़ी!

 

देखिए, द्वार पर लक्ष्मी;

हाथ में राइफल ले खड़ी!

 

भागिए अब किधर, जबकि हर

लाश ने तान ली है छड़ी?

 

::4::

क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है?

 

क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है?

सज गई संसद भवन में दीपमाला तो!

 

कुर्सियों की जीवनी में व्यस्त दरबारी;

शब्द से चाहे न टूटे बंद ताला तो!

 

आज मेरे स्कूल की छत गिर गई आख़िर

खुल रहीं उनकी विदेशी पाठशाला तो!

 

भील युवती ने कहा कल ग्राम मुखिया से;

‘मार खाओगे अगर अब हाथ डाला तो’!

 

झोंपड़ी पर लिख रहे वे गीत रोमानी;

दर्द-आँसू-पीर-सिसकी-घाव-छाला तो!

 

अब ज़रूरी अक्षरों में आग भरना है;

नोंक हो तीखी कलम की तीर-भाला तो!

***

 

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद


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