दीपावली
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
::1::
लो दिवाली की बधाई,
मित्रवर!
लो दिवाली की बधाई,
मित्रवर!
लो दिवाली की मिठाई,
मित्रवर!
एक दीपक के लिए मुहताज घर;
आपने बस्ती जलाई, मित्रवर!
जल चुका रावण, न बुझती है चिता;
आग यह कैसी लगाई, मित्रवर!
चौखटों की छाँह तक बीमार है;
क्यों हवा ऐसी चलाई,
मित्रवर!
अब रहो तैयार लुटने के लिए;
रोशनी तुमने चुराई,
मित्रवर!
हर अँधेरी जेल तोडी जायगी,
यह कसम युग ने उठाई,
मित्रवर!
::2::
रोशनी जल की परी है,
दीपमाला है!
रोशनी जल की परी है,
दीपमाला है!
रोशनी रहन धरी है, दीपमाला है!!
कुर्सियों की दीप-लौ में सिंक रही रोटी;
पेट की यह नौकरी है,
दीपमाला है!
क्यों हँसी को छीनकर इतरा रहे हो तुम?
आँख में लाली भरी है,
दीपमाला है!
दुधमुँहों के रक्त में जो स्नान कर आई;
रोशनी वह मर्करी है,
दीपमाला है!
इन पटाखों से जलेगा यह महल ख़ुद ही
आज बाग़ी संतरी है, दीपमाला है!
अब सुरंगों में छिपा बारूद जलना है;
रोशनी किससे डरी है! दीपमाला है !!
::3::
आपकी यह हवेली बड़ी!
आपकी यह हवेली बड़ी!
फुलझड़ी, फुलझड़ी, फुलझड़ी!!
आपने चुन लिए हार पर;
भेंट दीं क्यों हमें हथकड़ी?
आपकी राजधानी सजी;
यह गली तो अँधेरी पडी!
कुमकुमे, झालरें, रोशनी;
हिचकियाँ, आँसुओं की लड़ी!
आँख में जल चुके शब्द सब;
होंठ पर कील जिनके जड़ी!
देखिए, द्वार पर लक्ष्मी;
हाथ में राइफल ले खड़ी!
भागिए अब किधर, जबकि हर
लाश ने तान ली है छड़ी?
::4::
क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है?
क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है?
सज गई संसद भवन में दीपमाला तो!
कुर्सियों की जीवनी में व्यस्त दरबारी;
शब्द से चाहे न टूटे बंद ताला तो!
आज मेरे स्कूल की छत गिर गई आख़िर
खुल रहीं उनकी विदेशी पाठशाला तो!
भील युवती ने कहा कल ग्राम मुखिया से;
‘मार खाओगे अगर अब हाथ डाला तो’!
झोंपड़ी पर लिख रहे वे गीत रोमानी;
दर्द-आँसू-पीर-सिसकी-घाव-छाला तो!
अब ज़रूरी अक्षरों में आग भरना है;
नोंक हो तीखी कलम की तीर-भाला तो!
***
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
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