मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

कृती व्यक्तित्व

 


लालबहादुर शास्त्री

सुरेश चौधरी ‘इंदु’

आज से करीब 61 वर्ष पूर्व तब मैं दसवीं पास करके ग्यारवीं में गया था, सुबह उठा तो पता चला कि हम सब के प्रिय शास्त्री जी नहीं रहे, जब किसी महान विभूति से आप मिले हों वह भी महीना भर पहले और समाचार मिले की वे  नहीं रहे तो अपार कष्ट होता है।

जब उनके न रहने कि खबर शहर में फैली तो पूरा शहर शोक की लहर में डूब गया था और स्वतः ऐसा बंद हुआ जैसा मैने आज तक नहीं देखा । बाजार तो पूरा बन्द ही था हर जगह प्रार्थना सभा थी।

एक नेता होता है, एक जन प्रिय नेता होता है, शास्त्री जी ऐसे प्रधानमंत्री थे जो हर भारतीय के लहू में दौड़ते थे, वे मात्र डेढ़ वर्ष रहे पर जितनी विकट परिस्थितियों से वे गुजरे वह अवर्णनीय है। खाद्य संकट ऐसा की देश को दो वक्त की रोटी मुहाल थी, ऊपर से अमेरिकी सह पाकर पाकिस्तान ने हमला कर दिया । देश को इन हालात से सफलता पूर्वक बाहर निकालना शास्त्री जी की करामाती प्रतिभा ही थी।

नेहरू जी की अकस्मात मृत्यु के बाद भारतीय राजनीति में एक शून्य आ चुका था, लोग हतप्रभ थे अब क्या होगा, ऐसा एक दृश्य बन चुका थी कि यह सोचना भी मुश्किल था कि नेहरू के बिना देश चल सकता है। नेहरू जी की आत्मीय इच्छा थी कि इनका स्थान इंदिरा ले पर राजनैतिक परिदृश्य अलग था एक दल इसके विरोध में सोच रखता था। कुलदीप नैयर अपनी पुस्तक इंडिया द क्रिटिकल इयर्स में बड़े रोमांचकारी ढंग से वर्णन करते हैं कि कैसे शास्त्री जी एक मात्र नेता थे जो दोनो दलों में साफ छवि रखते थे अतः इनके नाम पर सहमति बनी।

 मेरा शास्त्री जी और इनके परिवार से बहुत करीबी संबंध रहा। 1965 के अंतिम दिनों में वे जमशेदपुर आये थे मैं 13 वर्ष का था तब इनसे मिलने गया था हमारे पारिवारिक मित्र तब के शहर के एक मात्र समाचारपत्र आज़ाद मजदूर के सम्पादक गंगाप्रसाद कौशल जी के साथ। मुझे याद है उनकी सादगी प्रोटोकॉल के बावजूद वे अपने दामाद के घर गए थे मिलने की बेटी के घर जाना पड़ता है उन्हें बुला नहीं सकता।

बाद में ललिता जी शहर में 7 दिनों के कैम्प पर थी तब प्रत्येक दिन उनसे मिलने जाता घण्टों साथ रहता।

जब मैंने उषा में नौकरी शुरू की तब इनका सबसे छोटा पुत्र अशोक शास्त्री जो मुझसे कुछ वर्ष ही बड़े रहे होंगे टाटा स्टील में सेल्स में थे, अक्सर काम के सिलसिले में मिलना होता तब अनौपचारिक कई बातें भी होती वे अपना शास्त्री जी के साथ का संस्मरण बताते थे।

इस तरह एक अनबोला से भावनात्मक रिश्ता बन चुका था। मैं उस पुण्यात्मा कों कुछ शब्दों से श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।

जब  कंटक   पथ  पर  देश  खड़ा  था खोल नैन द्वार

एक तो  अन्न  संकट  दूजे  सीमा  पर  था   हाहाकार

हर  जन  के  मन में  बसा  जिसे कोई न भूल है पाया

जय जवान जय किसान का नारा वह लेकर था आया

 

नमन-नमन  हे  वीर पुत्र महिमा  गा देश  न अघाया है

अमर  विभूति  राष्ट्र  अस्मिता  हेतु  ही तो  तू आया है

मोड़  जलधार  गंगा  की  जिसने  इतिहास रचाया  था

धीर   लाल-बहादुर   को  तब  देश ने  सर  बैठाया था

 

अभेद   पेटन  टेंको  को  चुटकी  में  मार  उड़ाया  था

अमरीकी  जेट  को  भारतीय  नेट  से ।तब लड़ाया था

रणभेरी  बजा  वीरों  में  साहस  का बिगुल बजाया था

अरिदल  शमन कर खोई  प्रतिष्ठा  को वापस लाया था

 

अन्न संकट  करने दूर व्रत लिया व्रत रखेंगे सीखाया था

सोच  नयी  ला  जिसने  देश  आत्मसम्मान बढाया था

भारत   का   नेता   कैसा   हो  आपने  सिखलाया  था

उच्च  आदर्श  स्थापना  हेतु  मंत्रिपद भी  ठुकराया था

 

सीखो  सीखो   देश वासियों    सीखो  लालबहादुर  से

अभिनन्दन  करो  अर्पित  करो  श्रद्धा  सुमन गरूर से

लाल  बहादुर  देश  अस्मिता  का  सर्वोच्च  उपनाम थे

अभिज्ञान  थे  शान थे  मान थे  हमारे  अभिमान थे ।।

आज लालबहादुर शास्त्री स्वतः स्मरण में आते हैं जिनका जन्म दिवस भी आज है, दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर किसी भी समस्या को दूर किया जा सकता है यह प्रेरक उपदेश हमें उनकी कार्य पद्धति से मिलता है।

सुरेश चौधरी ‘इंदु’

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046


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