ऐ कवि लिख देना
डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर
ऐ कवि लिख देना
अपनी सुंदर लेखनी से
कोरे कागज के पन्नों पर
जिस धरती की गोंद में
पले बढ़े खेले कूदे
जिन हरे वृक्षों की छाया में
सूरज की तप्त किरणों से
जब व्यथित हुए
सहारा दिया मधुर छाँव मिली
उनकी मधुर स्मृतियों को लिख देना।
जिस वायु की शीतलता से
काया की उष्णता को
शीतलता मिली
लिख देना उनके आत्मीय अहसासों को।
लिख देना निःस्वार्थ,अहर्निश
निष्कपट प्रकृति के इन भावों को
जहाँ झरने, नदियों, के शीतल
अमृतमय जल, जीवन को
दीर्घ बनाते हैं
तुम्हारे शस्य हरित हो लहराते हैं
खेतों में,लिख देना उनके
परोपकारी भावों को।
लिख देना चिड़ियों की कोलाहल
किसान की थकावट
हल चलाते, खेतों में अथक
परिश्रम से आक्लांत धरती के
भगवान को उनके मधुर गीत
पल भर संगीत के अमिय से
उनकी भुजाओं में नयी
उर्जा का संचार करते हैं।
लिख देना
प्रकृति सदा गीत, संगीत के बहाने
जीवन को नया धार देती है
लिख देना।।
***
डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर
हाटा कुशीनगर
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