मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

आलेख

 


हिंदी हाइकु कोश में बेटी विषयक हाइकु

तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

हिंदी हाइकु कोशमें समावेशित चुनिंदा छह हजार से अधिक हाइकु में कुछ बेटियों पर आधारित भी हाइकु हैंइसी से २५ हाइकु मैं ले आया हूँहाइकु का यह अनुपम ख़ज़ाना डॉ. जगदीश व्योम जी ने हमें दिया हैयह पुस्तक हर हाइकुकार एवं हाइकु के पाठक एवं अध्येता के लिए मिल का पत्थर साबित होगी

बेटी घर के लोगों की लाड़ली होती हैकिसी दम्पती को पहली बेटी हुई तो वो भाग्य का लक्षण माना जाता हैमराठी में एक कहावत है,’ पहिली बेटी, तूप रोटी’, यानी पहली बेटी, घी रोटीऐसा ही एक हाइकु देखिए:

बेटियाँ जन्मीं / तभी से संसार में / नेकियाँ जन्मीं’ -डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

बेटियाँ जन्म से ही बहुत हँसमुख होती हैंवह नींद से उठते ही इधर उधर घूमते रहती हैं बेटी की मुस्कान कितनी लुभावनी हैदेखें इन हाइकु में -

गुनगुनाई / हवाओं ने जो लोरी / बेटी मुस्काई’ - शशि पाधा

मिटा देती है / माँ की सारी थकान / बेटी की हँसी’ - ईप्सा यादव

हँसती बेटी / बिखरती सुगंध / घर-आँगन’ - सत्या शर्मा कीर्ति

नन्ही-सी लाड़ो / पकड़ना चाहती / मुट्ठी में धूप’ - कंचन अपराजिता

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओइस योजना के अंतर्गत बेटियों को मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था शासन द्वारा की गई फिर भी, भ्रूणहत्या की वारदातें होती रहती हैंकुछ ही लोग अक्ल के अंधे होते हैं, जो दुर्व्यवहार करते हैं, बेटी के जन्म पर नाखुश होते हैं; और मजे की बात देखिए, जो पहले बेटी थी वह अब सास बनकर बेटी का ही बुरा सोचती है

बेटी का जन्म / लकवा मारे जैसे / घर के लोग’ - डॉ.शैल रस्तोगी

नई कहानी / हुई शुरू फिर से / बेटी जन्मी है’ - ज्योत्स्ना सिंह

रोती गुड़िया / किताबों में खो गयीं / नन्हीं परियाँ’ - सुनीता अग्रवाल नेह

जैसे बेटियाँ माँ बाप के आँखों का तारा होती है, उतना ही स्नेहमयी बेटी का दिल भी होता हैकभी पिता बाहर गये तो, घर आने तक रो रो कर धराकाश एक करती हैमाँ तो उसकी सबकुछ होती हैउम्र के पहले ही बेटियाँ सयानी बन घरकाज में ध्यान देती हैं जिस घर में बेटी नहीं होती, वो इस अभाव को प्रतिदिन याद करते रहते हैं

स्कूल जाती माँ / खिड़की से झाँकती / नन्हीं बिटियाँ’ - पूर्णिमा वर्मन

हाथ फैलाये / चले पेंगुइन-सी / मेरी बिटिया’ - नवलकिशोर नवल

सात रंगों की / बेटियाँ मेरी बनी / इन्द्रधनुष्य’ - जसवन्त सिंह विरदी

दवा के साथ / सलाह देती बेटी / लगे माँ जैसी’ - रामनिवास बांयला

देख गरीबी / अच्छे नहीं खिलौने / बिटिया बोली’ - साकेत कुमार सेन

बेटों की तरह बेटियाँ भी हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर हैंराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या कलेक्टर, डॉक्टर क्या नहीं है बेटी! इतनी बड़ी अधिकारी होकर भी वो बेटी का कर्तव्य नहीं भूलती! ऐसे बड़े पद के बेटे माँ -बाप को पहचानते ही नहीं! ऐसी बहुत सारी घटनाएँ दिखाई देती हैंकितनी भी उड़ान क्यों न लें, लड़की के पाँव भू पर ही रहते हैं

काट बेड़ियाँ / बेटी भरे उड़ान / बढ़ा दे मान’ - प्रवीन मलिक

रस्सी टापते / उछली वो लड़की / छुआ आकाश’ - हरेराम समीप

गत्ते का घर / छत पर तिरंगा / लगाती बच्ची’ - अनंत पुरोहित अनंत

कितनी भी बड़ी मुसीबत आये, बेटी उसका मुकाबला बड़े धैर्य से करती हैबाहरी समाज से ही नहीं, घर में भी कभी कभी उसकी प्रताड़ना होती रहती हैसारा दुख अपने दिल में छुपाकर चेहरे पर हँसी कैसे दिखाना यह अनोखी कला हम बेटियों से सीख सकते हैं

गोधूलि वेला / गजरा बेच रही / दिव्यांग बाला’ - सविता बरई वीणा

होस्टल पथ / बेटी की कुर्ती पर / उड़ते पंछी’ - सुनीता अग्रवाल नेह

बाँटते बेटे / ज़मीन-जायदाद / बेटियाँ दर्द’ - घनश्याम नाथ कच्छावा

रोबोट बनी / गरीब की लड़की / बड़े घर में’ - पुष्पा सिंघी

कुछ माँ-बाप ऐसे भी होते हैं, जों बेटी के जनम पर खुश नहीं होतेकभी-कभी प्रसूता माता को ससुराल वाले ऐसे परेशान करते है, जैसे बेटा या बेटी प्रसूत करना उसके हाथ में हो! बेटी को शादी के बाद ससुराल जाना पड़ता है, क्या यही वजह इस त्रासदी के पीछे है? या शादी करके बेटी का नाम बदल जाता है ये भी कारण है? यह सोच बेकार की हैक्योंकि, कोई कहाँ भी रहे, कुछ घंटों की यात्रा करके इच्छित स्थान पर पहुँच सकते हैंरही बात नाम की या वंश चलाने की, यह तो एक अंधश्रद्धा ही हैआदमी एक बार कालवश हो गया, तो उसके पीछे उसका कुछ भी नहीं रहता! मरनेवाले के पीछे सारा धनसंचय कुड़े-कचरे के समान हैबेटियों को इस नजरिये से देखना सरासर गलत बात है

बेटी ने झेली / कोख से कब्र तक / अनन्त पीड़ा’ - डॉ.सूरजमणि स्टेला कुजूर

भाई को लाने / बेटी को भेजा स्वर्ग / माता - पिता ने’ - दिनेश चन्द्र पाण्डेय

बाल विधवा / अकेली मोमबत्ती / जली, पिघली’ - नीलमेंदु सागर

बेटी का ब्याह तो एक आँख से हँसना और एक से रोना हैलाड़-प्यार से पली बेटी को ससुराल वाले कैसे रखेंगे, यह आशंका रहती हैकिंतु यह विचार बेटी के मोह से आता है, वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं रहताजरूर, कभी कभार विपरीत घटनाएँ दिखाई देतीं है, लेकिन, नहीं के बराबर! आजकाल तो बिदाई के समय कैसे रोये, इसका भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है

बिंदी-सिन्दूर / लो हो गई बेटियाँ / ख्वाबों से दूर’ - सुशीला शील राणा

रातें कटतीं / मगर, बेटियों-सी / लम्बी दिखतीं’ - द्विजेन्द्र शर्मा

हिंदी हाइकु कोशमें समाये गये विषय बहुत सारे हैंएक लेख में सभी विषय लिए तो, अच्छे हाइकु भी छूट सकते हैंयह ध्यान में रखकर ऐसे छोटे परिचय की शृंखला के अंतर्गत मैं अच्छे हाइकु आपके सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ

***

तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

57, ‘पार्वती निवास’

गणपती मंदिर के पास,

लोकमान्यनगर,

परभणी - 431401 ( महाराष्ट्र  )


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