शब्द
सृष्टि, दिसंबर - 2021, अंक – 17
शब्द संज्ञान – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
प्रासंगिक – स्मृति शेष मन्नू भंडारी – राजा दुबे
जयकरी छन्द /चौपई – नीला-जलजात – ज्योत्स्ना प्रदीप
परिचय – बिरसा मुंडा – सुशीला भूरिया
उपन्यास पर बात – आओ पेपे, घर चलें ! (प्रभा खेतान) – डॉ. हसमुख परमार
कविता – हर-हर गंगे – डॉ. अनु मेहता
आलेख – राजस्थानी लोक नृत्यों में जालोर का ‘ढोल नृत्य’ – डॉ. जयंतिलाल बी. बारीस
संस्मरण – कितने कमलेश्वर! – मन्नू भंडारी
औपन्यासिक जीवनी – काल के कपाल पर हस्ताक्षर : हरिशंकर परसाई (भाग – 4) – राजेन्द्र चंद्रकांत राय
लघुकथा – वृद्धावस्था का पड़ाव – सविता अग्रवाल 'सवि'
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जवाब देंहटाएंपरिश्रमपूर्वक तैयार किया सुंदर अंक। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अंक । पूरी टीम को बधाई ।
जवाब देंहटाएंहर महीने हिन्दी भाषा व साहित्य से संबद्ध सुंदर और वैविध्य पूर्ण सामग्री से परिचित कराने के लिए डॉ. पूर्वा शर्मा जी और डॉ. हसमुख सर आप दोनों का आभार🙏💐
जवाब देंहटाएंशब्द सृष्टि का सर्वांगीण सौंदर्य हमारे मन- मस्तिष्क को एक नई ऊर्जा और आनन्द से भर देता है।
Vicky
पठन मनन करने योग्य एक और सुंदर अंक! पूर्वा जी और उनकी समस्त टीम का धन्यवाद और अनेकों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंAppreciate your thoughts 👌🤩
जवाब देंहटाएंपठनीय सामग्री से भरपूर अंक!
जवाब देंहटाएंसंपादकीय और संयोजकीय परिश्रम से ही ऐसा अंक बन पाता है। हार्दिक शुभकामनाएं और साधुवाद!
बहुत बढ़िया अंक । पूरी टीम को दिल से बधाई!
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