डॉ. पूर्वा शर्मा
1.
क्यों मोहब्बत
में दर्द है ज्यादा !
मिलन के पल कम और जुदाई बहुत ज्यादा ।
2.
इतने दूर हो हमसे,
फिर भी जादू तुम्हारा कमाल
ग़र पास होते तो न जाने क्या होता हमारा हाल !
3.
क्यों महोब्बत में इतनी बेबसी होती है
जो ज़िंदगी है, बस उसी से दूरी होती है
4.
उदय
हुआ है सूरज फिर से, कलियों ने आँखें है
खोली ।
भोर हुई है आज रंगीली, कानों गूँजी ज्यों तेरी बोली।।
5.
एक
ही मन था मेरा
तुमने
उसे भी रख लिया अपने पास
अब
इस बेमन को लेकर कहाँ जाऊँ
रख लो न तुम मुझे भी... अपने ही पास....
6.
ज़माने
भर की ख़बरे छपी थी अख़बार में
वो
कैसे है हमारे बिन? बस इसी का जिक्र नहीं
किसी भी समाचार में....
7.
यूँ
तो शब्दों से घिरे रहते हैं
हरपल
हम
लेकिन
उनके सामने आते ही.....
निःशब्द...बेजुबां हो जाते हैं हम
8.
ज्यों
पहलू में आकर बैठे वो
मुस्कान
ने ली अँगड़ाई
और
मैं....
खुशी
के आगोश में...
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
Bahut umda likhi ho purva
जवाब देंहटाएंपूर्वा जी प्रेम की धारा में बहती कविताएँ हैं। सुंदर अनुभूतियाँ। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह पूर्वा, मन की व्याकुलता को व्यक्त करती बहुत सुंदर कविताएं । अंतर्मन में उतरने वाली । आशीर्वाद और बधाई ।
जवाब देंहटाएंपूर्वा कविता में तूकबंदी होना जरूरी है। तभी कविता सूनना और पढ़ना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंपूर्वा कविता में तूकबंदी होना जरूरी है। तभी सूनना और पढ़ना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएँ पूर्वा जी, विशेषतः ज़माने भर की खबरें छपी...!आपको अनेकों बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।बधाई पूर्वा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचनाएँ !
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई पूर्वा जी 💐
Bahot khub didi
जवाब देंहटाएंBhaut khub
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है। शुक्रिया 💐
जवाब देंहटाएंबहुत खूब प्रिय पूर्वा जी... बधाई!
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