सोमवार, 3 जनवरी 2022

विचार स्तवक

 



हिन्दी की महत्ता

 

हिन्दी का उद्देश्य यही है,

भारत एक रहे अविभाज्य ।

यों तो रूस और अमरीका

जितना है उसका जन राज्य ।।

–  मैथिलीशरण गुप्त

करोड़ों भारतीयों की ज़ुबान हिन्दी सही मायने में भारतीय संस्कृति और सभ्यता की परिचायक है। बहुभाषा-भाषी भारत देश में भाषा-भेद से उत्पन्न समस्या का हल एक मात्र हिन्दी ही है। देशवासियों के हृदय में स्नेह और सद्‌भाव जगाते हुए, इनमें मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठित करते हुए, राष्ट्रीय एकता और अखंडिता को सुदृढ़ करने में अपनी सशक्त भूमिका अदा कर रही यह भाषा वर्तमान में ही नहीं, पिछली कई शताब्दियों से देशवासियों को आंतरिक रूप में और बाह्य रूप से जोड़ने-मिलाने में सफल रही है। कहते हैं कि “जब दसवीं शताब्दी के बाद संस्कृत का व्यवहार जनभाषा के रूप में नहीं रह गया था और जब तक अंग्रेज भी भारत वर्ष में नहीं आये थे तब तक नौ सौ वर्षों में रामेश्वरम् से लेकर बद्रीनाथ तक और द्वारिकापुरी से लेकर साथ जनन्नाथपुरी तक विभिन्न संदर्भों में यात्रा करने वाले भारतवासी संपर्क भाषा हिन्दी से ही अपना काम चलाते रहे।”

आज हमारे समाज की हर राह पर हिन्दी का कारवाँ बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जो हिन्दी प्रयोग से वंचित रहा हो । समाज, साहित्य, शिक्षा, शासन, संचार, रोजगार, व्यापार-वाणिज्य, खेल मैदान का आँखों देखा हाल सभी में हिन्दी की मौजूदगी बराबर देखी जा सकती है। हमारे देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर, सात समंदर पार विदेशों में भी हिन्दी बोली जाती है, समझी जाती है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में विस्तार पाती जा रही हिन्दी विश्व के अनेक देशों में बोली जाती है, पढ़ाई जाती है और इसमें उम्दा साहित्य सृजन हो रहा है।

 

भारत की सबसे बड़ी और विश्व की महानतम भाषाओं की अग्रिम पंक्ति में समासीन भाषा हिन्दी की महत्ता के संबंध में हिन्दी प्रेमी कुछेक विद्वानों के विचार –

विश्व भाषाओं में हिन्दी की महिमान्वित स्थिति है। यह भारत का भाषात्मक तीर्थ है। यह देश के साथ अन्य भू-खंडों में भी विशाल लोकसमुदाय के प्रयोजन, चिन्तन-मनन और रागात्मक समन्वय की संवाहिका तथा संयोजिका के कार्य-निष्पादन में संलग्न है।

 –  डॉ. शशि शेखर तिवारी

हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत हैं जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है।

–   मैथिलीशरण गुप्त

भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न भागों में जो अनेक देशी भाषाएँ बोली जाती हैं, उनमें एक भाषा ऐसी है जिसमें शेष सब भाषाओं की अपेक्षा एक बड़ी भारी विशेषता है, वह यह कि उसका प्रचार सबसे अधिक है। वह भाषा हिन्दी है । हिन्दी जानने वाला आदमी सम्पूर्ण भारतवर्ष में यात्रा कर सकता है और उसे हर अगह हिन्दी बोलने वाले मिल सकते हैं। भारत के सभी स्कूलों में हिन्दी की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।

–  ऐनी बेसेन्ट

भाषा के माध्यम से संस्कृति सुरक्षित रहती है। चूँकि भारतीय एक होकर सामान्य सांस्कृतिक विकास करने के आकांक्षी है अतः सभी भारतीयों का अनिवार्य कर्तव्य है कि वे हिन्दी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएँ।

–  डॉ. भीमराव अम्बेडकर

हिन्दी किसी भाषा का अहित नहीं करती, अपितु वह तो सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास एवं समृद्धि में सहयोग प्रदान करती है और समन्वय का मार्ग खोलती है। हिन्दी का स्वभाव प्रेम एवं सहिष्णुता से ओतप्रोत है और यही उसकी विशेषता है।

– पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेलसिंह

हिन्दी विश्व की महानतम भाषा है।

 –  राहुल सांकृत्यायन

 

1 टिप्पणी:

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