गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

विचार स्तवक

 



 

घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए।

      निदा फ़ाज़ली

 

जिसके भी भीतर पवित्रता

जीवित है शिशुता की,

उस अदोष नर के हाथों में

कोई मैल नहीं है।

      दिनकर

 

बच्चों का न भूत होता है न भविष्य।

वे आज (वर्तमान) का आनन्द लूटते हैं जो हममें से बहुत कम लोग करते हैं।

      लॉ ब्रुयार

 

 

इन्कार से भरी हुई एक चीख

और

एक समझदार चुप

दोनों का मतलब एक है –

भविष्य गढ़ने में ‘चुप’ और ‘चीख’ अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से

अपना-अपना फर्ज अदा करते हैं ।

 

      धूमिल

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जुलाई 2025, अंक 61

  शब्द-सृष्टि जुलाई 2025 , अंक 61 परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख प...