गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

प्रासंगिक

 


स्मृति शेष मन्नू भण्डारी

राजा दुबे

15 नवम्बर, 2021 को इस फानी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह अनंत यात्रा पर निकल गई मन्नू भंडारी हिंदी कथा साहित्य की वो उज्ज्वल शख़्सियत जो अपनी लेखन संपदा के बल पर साहित्यानुरागियों के स्मरण में सदैव अपना वजूद बनाए रखेंगी। उनकी स्मृति को मेरा नमन ।

मन्नू जी के निधन से इनके परिजनों, परिचितों तथा पाठकों को एक गहरा सदमा पहुँचा है। इनका जाना साहित्य जगत में एक ऐसी रिक्ति हैं जिसकी भरपाई तत्काल ही नहीं बल्कि आने वाले दिनों में भी बहुत मुश्किल लगती है।

जब मन्नू भण्डारी के समग्र लेखन पर भारी पड़ा उनका एक उपन्यास

सुप्रसिद्ध हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी एक मेधावी और नारी चरित्र का प्रभावी लेखन  करने वाली अप्रतिम और उत्कृष्ट लेखिका है। उनके दमदार लेखन के कैरियर में उनका जो एक उपन्यास बेहद चर्चित रहा, वो है - ‘आपका बंटी’। विवाह-विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केंद्र में रखकर लिखा गया है। यह उपन्यास उनके समग्र लेखन पर इतना भारी पड़ा कि उनका जिक्र होने पर लोग यही कहते हैं कि - “मन्नू भण्डारी, अच्छा! वही आपका बंटी वाली ?

मन्नू भण्डारी को अपने लेखन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं जिनमें  दिल्ली साहित्य अकादमी का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद और कोलकाता साहित्य परिषद का पुरस्कार, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा दिया जाने वाला सम्मान भी शामिल हैं ।

व्यक्तित्व की सहजता से उपजी थी

मन्नू भण्डारी के लेखन की बोधगम्यता

मन्नू भण्डारी के लेखन की बोधगम्यता उनके व्यक्तित्व की सहजता से ही उपजी थी। उनके लेखन और व्यवहार में कहीं कोई फर्क नहीं था। नब्बे वर्ष की उम्र में उनका लेखन भी लगभग छूट चुका था, फिर भी वे हमेशा स्त्री लेखन की मज़बूत कड़ी बनी रहीं। उनके निधन से साहित्य जगत में जो शून्य आया है उसकी भरपाई असम्भव है। वे उस दौर में लेखन कर रही थीं, जब स्त्रियाँ कम लिख पाती थीं। उनकी संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती थी। उस समय भारतीय समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा था। मध्यवर्गीय परिवारों में विखंडन शुरू हो चुका था और स्त्रियाँ अपनी अस्मिता को लेकर मुखर हो रही थीं। ऐसे दौर में मन्नू भंडारी एक सुधारवादी नज़रिया लेकर कथा जगत में आईं। उसी दौर में स्त्रियाँ घरों से बाहर निकलीं और कामकाज़ी बनीं। उनका जीवन बदला और सोच भी बदली। इस यथार्थ और बदलाव को उन्होंने देखा, समझा और अपने लेखन का हिस्सा बनाया।

लेखन के संस्कार उन्हें

अपने परिवार से मिले थे

मध्यप्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा में 03 अप्रैल, 1931 को जन्मीं मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम. ए. तक शिक्षा पाईं और वर्षों तक दिल्ली के मिराण्डा हाउस में अध्यापिका रहीं। ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित अपने उपन्यास - ‘आपका बंटी’ से अपार लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम विश्व विद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्ष भी रहीं। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला था। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे।

अपने व्यापक रचना संसार में

नारी चरित्र को उकेरा था मन्नू भण्डारी ने

मन्नू भण्डारी के नौ कहानी संग्रह - एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक और विदूषक, उपन्यास - आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान, कलवा और एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य), चार पटकथाएँ  - रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण और एक नाटक - बिना दीवारों का घर प्रकाशित हुआ। नारी चरित्रों को सम्यक सोच और सूक्ष्म अध्ययन के साथ प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त मन्नू भण्डारी की एक कहानी – ‘अकेली’ सोमा बुआ नाम के पात्र को केंद्र में रखकर लिखी गई है। सोमा बुआ अपने पास पड़ोस से घुलने-मिलने के प्रयासों के बावजूद अकेली पड़ जाती हैं। वे अकेली इसलिए है क्योंकि वह परित्यक्ता है, बूढ़ी हो चली है तथा उसका पुत्र भी उन्हे छोड़कर जा चुका है। अपने परिवेश के साथ घुलने मिलने का उनका प्रयास भी एकतरफा है। इसी प्रकार सुप्रसिद्ध लेखक और अपने पति राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास – ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े लिखे आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेमकथा है जिसका एक-एक अंक लेखक-द्वय ने क्रमानुसार लिखा है, जो बेहद रोचक है और एक पुरुष और एक महिला की सोच के अन्तर को रेखांकित करता है। नौकरशाही और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी की पीड़ा को उजागर करने वाला उपन्यास – ‘महाभोज़’  भी अपने समय में बेहद लोकप्रिय रहा। इस उपन्यास पर आधारित नाटक भी खूब पसन्द किया गया। इसी प्रकार- ‘यही सच है’  कहानी पर आधारित फिल्म रजनीगंधा भी लोकप्रिय हुई थी और उसको सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।

मन्नू भण्डारी के पिता भी

सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे

मन्नू भण्डारी के पिता सुख सम्पतराय जाने माने लेखक थे और उन्होंने ‘हिंदी के पारिभाषिक कोश’ जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा था। वे एक आदर्शवादी व्यक्ति थे। स्त्री शिक्षा पर बल देने वाले वे लड़कियों को रसोई में जाने से मना करते थे और लड़कियों की शिक्षा को  प्राथमिकता देते थे। मन्नू भण्डारी के व्यक्तित्व निर्माण में उनका प्रमुख  हाथ रहा।  मन्नू भंडारी ने अपने पहले कहानी संग्रह -  ‘मैं हार गई’ अपने पिताजी को समर्पित करते हुए लिखा है -  उन्हें समर्पित जिन्होंने मेरी किसी भी इच्छा पर, कभी अंकुश नहीं लगाया। मन्नू जी की माँ अनूपकुँवरी उदार, स्नेहिल, सहनशील और  धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। मन्नू द्वारा पिताजी का विरोध करने पर वह कहती  - “मुझे कोई शिकायत नहीं है बेटी, तुम क्यों परेशान होती हो, जाओ अपना काम करो।” मन्नू भण्डारी तो कहतीं थीं आज हम जो कुछ भी हैं हमारी माता के प्रोत्साहन का परिणाम है ।

संस्कार और पऱिवेश से

कोई व्यक्ति बड़ा बनता है

मन्नू भण्डारी का मानना था कि कोई भी व्यक्ति जन्म से बड़ा नहीं होता। बड़ा बनने के लिए सबसे बड़ा योगदान संस्कारों का होता है उसके बाद परिवेश का। उन्हें लेखन का संस्कार विरासत में मिला था। उनके पिता लेखक और समाज सुधारक थे। इसी कारण स्वतंत्रता पूर्व जब नारी शिक्षा अकल्पनीय बात लगती थी तब मन्नू तथा उनकी बहनों को उच्च शिक्षा प्राप्त करवाई गई। मन्नू ने अजमेर के सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। अजमेर कॉलेज से इण्टरमीडिएट किया। कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लड़कियों को देशप्रेम और अंग्रेज सरकार के विरोध की प्रेरणा दी जिसके कारण मन्नू भण्डारी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। स्वतंत्रता के बाद बहन सुशीला के पास कोलकाता से बी.ए.की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपना कैरियर कोलकाता से आरम्भ किया। सबसे पहले कोलकाता के बालीगंज शिक्षा सदन में नौ साल तक पढ़ाने का कार्य किया। वर्ष 1961 में वे राणी बिरला कॉलेज, कोलकाता में प्राध्यापिका और फिर दिल्ली के एक आभिजात्य महाविद्यालय मिराण्डा कॉलेज ‌‌‌‌में अध्यापिका रहीं।

व्यर्थ के भावोच्छवास से बचा रहा

मन्नू भण्डारी का लेखन

सुप्रसिद्ध लेखक और मन्नू भण्डारी के पति राजेंद्र यादव उनके लेखन के बारे में कहते थे, कि व्यर्थ के भावोच्छवास में नारी के ‘आँचल में दूध और आँखों में पानी’ दिखाकर मन्नू भंडारी ने पाठकों की कभी दया नहीं वसूली। वह यथार्थ के धरातल पर नारी का नारी की दृष्टि से अंकन करती हैं। मन्नू भण्डारी अक्सर कहा करती थीं कि लेखन ने मुझे अपनी निहायत निजी समस्याओं के प्रति वस्तुनिष्ठ होना और उनसे उबरना सिखाया।

 

राजा दुबे

सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक, जनसंपर्क मध्यप्रदेश

एफ - 310 , राजहर्ष कालोनी,

(अकबरपुर) कोलार रोड,

भोपाल(म.प्र.) – 462042

 

1 टिप्पणी:

  1. मध्यप्रदेश वासियों के लिये और मंदसौर - नीमच वालों के लिए गौरव की बात है कि मन्नू भंडारी जी हमारे क्षेत्र की विरासत है । अच्छी सारगर्भित जानकारी के साथ दुबे जी का यह लेख शब्द श्रुष्टि के पाठकों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा । धन्यवाद दुबे जी ।

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