गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

उपन्यास पर बात

 


आओ पेपे, घर चलें !

(प्रभा खेतान)

डॉ. हसमुख परमार

          हिन्दी की शीर्षस्थ समकालीन स्त्री साहित्यकारों में प्रभा खेतान अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। स्त्री के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध इस लेखिका का, कथा लेखन के साथ-साथ कविता, आत्मकथा, अनुवाद आदि क्षेत्रों में भी विशिष्ट प्रदेय रहा है। आओ पेपे, घर चलें !, तालाबन्दी, छिन्नमस्ता, अपने अपने चेहरे, पीली आँधी जैसे उपन्यासों, कतिपय काव्यसंग्रहों, अन्या से अनन्या आत्मकथा, सीमोन द बोउवार की विश्व प्रसिद्ध कृति THE SECOND SEX का स्त्रीःउपेक्षिता नाम से हिन्दी अनुवाद आदि स्तरीय सृजन व चिंतन के चलते विगत दो-तीन दशकों से प्रभा खेतान हिन्दी साहित्य जगत के पाठकों, शोधकर्ताओं तथा समीक्षकों में काफी चर्चित रही है। मारवाडी समाज से संबद्ध, आजीवन अविवाहित, डॉ. सर्राफ की प्रेमिका के रूप में जीवन और समाज के विष का घूँट पीती रही एक समाजसेविका तथा प्रखर नारीचिंतक प्रभाजी ने अपनी कथा कृतियों में भारत और भारतेतर देशों की स्त्रियों की नियति, इनकी यातना पूर्ण स्थिति तथा शोषण से मुक्ति हेतु इनके संघर्ष को शब्दबद्ध किया है।

          सन् 1990 में प्रकाशित आओ पेपे, घर चलें ! प्रभा खेतान की प्रथम औपन्यासिक रचना है जो इनकी अमरीकी यात्रा के अनुभवों को लेकर लिखा गया अमरीकी स्त्री जीवन का एक प्रामाणिक दस्तावेज है। ‘ब्यूटी थैरापी’ के कोर्स हेतु अमरीका गई प्रभा जी ने वहाँ के जिस पारिवारिक-सामाजिक परिवेश को देखा, विशेषतः जिस अमरीकी स्त्री समाज की सच्चाई से रूबरू हुई, इसी का औपन्यासिकरण है यह- ‘आओ पेपे, घर चलें !’ इस तरह अमरीकी पृष्ठभूमि पर लिखे गए और वहाँ की स्त्री की व्यथा-कथा बताने वाले उपन्यास के रूप में उक्त उपन्यास की हिन्दी उपन्यास जगत में एक विशेष पहचान रही है। डॉ. भगवतीशरण मिश्र के शब्दों में- ‘‘यह कृति प्रभा खेतान के निजी अनुभवों पर आधारित है, अतः विश्वसनीयता से ओतप्रोत है। भारतीय नारी की नियति को लेकर तो बहुतों ने लिखा है पर अमरीकी नारी के जीवन की पीड़ा और विसंगतियों को चित्रित करने वाला यह हिन्दी का अकेला उपन्यास है।’’

          सत्तर साल की आइलिन नामक वृद्ध महिला तथा इनके पेपे नामक कुत्ता-जिसके प्रति इनका पुत्र सदृश स्नेह है, उपन्यास के केन्द्र में है। उपन्यास के कथानक में प्रभा जी स्वयं प्रत्यक्ष रूप में उपस्थित है। अमरीका में आइलिन के साथ रहते हुए प्रभा जी देखती हैं कि गुजरे समय और संबंधों को स्मृतियों में जी रही आइलिन नितान्त अकेली है और अपने इस अकेलेपन के दुःख को थोड़ा कम करने हेतु इन्होंने पेपे नामक कुत्ता पाल रखा है। अपने इस जिगर के टुकडे को अपना बच्चा मानते हुए आइलिन अपनी व्यथा को भुलने का प्रयास करती है। आइलिन के अलावा मरील, एलिजा, क्लारा ब्राउन, कैथी, नैन्सी, लारा, मिसेज त्रातस्की, ग्रेटा गारबो, एडिना आदि स्त्रियाँ भी इस उपन्यास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन अमरीकी स्त्रियों के विविध जीवन प्रसंगों तथा इनकी मनोदशा को लेकर लेखिका ने अपने इस उपन्यास के कथानक को बडी कुशलता से गूँथा है। उपर्युक्त स्त्रियों में से एक-दो को छोडकर बाकी सभी का जीवन किसी न किसी समस्या से घिरा हुआ है। इनके जीवन के एकाकीपन, अजनबीपन, पीडा,ऊब, घुटन आदि को लेखिका ने कलात्मक ढंग से निरूपित किया है।

          मरील एक ऐसी परित्यक्ता स्त्री है जो अपनी दो बेटियाँ नैन्सी और लारा के साथ रहती है। पति-पत्नी के अहं की टकराहट में इनकी ये दोनों बेटियाँ पीसती रहती हैं। हम देखते हैं कि दाम्पत्य जीवन के सुख से वंचित मरील के व्यवहार में दुःख के साथ-साथ ऊब और आक्रोश प्रकट होता रहता है। डॉक्टर डी. की पत्नी होने के नाते उपन्यास में एलिजा का परिचय मिसेज डी के नाम से भी मिलता है। एलिजा का डॉक्टर पति एक अन्य स्त्री क्लारा ब्राउन के प्रति आकर्षित है। एलिना के जीवन में यही सबसे बडा दुःख है। पति को बेहद प्यार करने वाली एलिजा को बदले में मिलता है- पति की बेवफाई, अनेकों शारीरिक - मानसिक कष्ट। एलिजा की बहन कैथी ऐलिजा की तथा अपने परिवार की अन्य स्त्रियों की यह त्रासदी प्रभा जी को बताती है- ‘‘एलिजा मेरी सबसे अच्छी बहन है, प्रभा, हमारे परिवार में कोई भी औरत सुखी क्यों नहीं ? ममा ने आत्महत्या कर ली। आंटी एडिना का प्यार असफल रहा और अब एलिजा। एलिजा इन्वेस्टेड हरसेल्फ टोटली। इतना टूटकर किसी को चाहना कि अपना कहने लायक कोई चीज न बचे।’’

          प्रस्तुत रचना तथा प्रभा खेतान का और भी लेखन इस बात का प्रमाण है कि इनका नारीवादी चिंतन विश्व स्तरीय स्त्री-जीवन से संबद्ध रहा है। विश्व संदर्भ में अपने नारीविमर्श को मुखरित करने वाली लेखिका अपने इस उपन्यास के जरिए यह बताना चाहती है कि नारी की स्थिति भारत हो या अमरीका, सब जगह एक जैसी ही रही है। उपन्यास का केन्द्रीय स्त्री पात्र आइलिन एक जगह कहती है- ‘‘औरत कहाँ नहीं रोती और कब नहीं होती ? वह जितना भी रोती है उतनी ही औरत होती जाती है।’’ स्त्री का यह दर्द किसी एक देश तक सीमित नहीं है, यह तो पूरी दुनिया की सच्चाई है। आइलिन का एक और कथन इसी सत्य को प्रकट करता है- ‘‘दुनिया में ऐसा कोई कोना बताओ, जहाँ औरत के आँसू नहीं गिरे।’’ प्रभा जी के छिन्नमस्ता, अपने अपने चेहरे, पीली आँधी आदि उपन्यासों में वर्णित स्त्री-जीवन में भी हम स्त्री की इस त्रासदी को बखूबी देखते हैं। छिन्नमस्ता की नायिका प्रिया के कथन देखिए - ‘‘औरत कहाँ नहीं रोती ? सड़क पर झाडू लगाते हुए, खेतों में काम करते हुए, एयरपोर्ट पर बाथरूम साफ करते हुए या फिर सारे भोग ऐश्वर्य के बावजूद.... पलंग पर रात-रात भर अकेले करवटें बदलते हुए.. हजारों सालों से इनके ये आँसू बहते आ रहे हैं।’’

          इस तथ्य को पहले हम रेखांकित कर चुके हैं कि आओ पेपे घर चलें ! प्रभा जी की अमरीकी यात्रा के अनुभव और वहाँ की स्त्रियों के यथार्थ को बयान करने वाला उपन्यास है। ज्यादा संपन्न, शिक्षित व आधुनिक माने जाने वाले अमरीका में, स्त्री स्वातंत्र्य की बड़ी बड़ी बातें करने वाले पश्चिम में स्त्री जीवन की जो सच्चाई है उसे लेखिका ने बडी संजीदगी से अपनी इस कृति में प्रस्तुत किया है। प्रो. गोपालराय के विचार से- ‘‘भोग विलास में डूबी अमरीकी औरत भीतर से कितनी अकेली, असहाय और पीड़ित है, इसका चित्रण इस उपन्यास में गहरी संवेदनशीलता के साथ किया गया है। .... यह वैश्विक स्तर पर पारिवारिक विघटन, उच्चवर्गीय जीवन के अन्तर्विरोध, बाहर और भीतर की जिन्दगी के तनाव, सम्बन्धहीनता, नकली जिन्दगी, पति-पत्नी की टकराहट में टूटते-पिसते बच्चे, भोगविलास के पीछे अन्धी दौड, आर्थिक समृद्धि के बीच सम्बन्धहीनता और संवेदनशून्यता की पीड़ा का, प्रमाणिक अनुभव और गहरी अनुभूति के साथ, अंकन करने वाला उपन्यास है।’’ एक मानवेतर जीव, एक पशु विशेष पेपे नामक कुत्ते की एक जीवंत और प्रमुख पात्र के रूप में उपस्थिति इस उपन्यास की एक महत्वपूर्ण विशेषता कही जा सकती है। ‘पशु में मानवीय संवेदना को भर देने में लेखिका को अदभुत सफलता मिली है।’ आइलिन की मृत्यु पर पेपे का दुःखी होना, कब्रस्तान जाकर आँसू बहाना। एक जानवर का मनुष्य के प्रति इस तरह का स्नेह व लगाव का वर्णन करते हुए लेखिका एक जगह लिखती है- ‘‘पेपे चुपचाप कब्र की कच्ची मिट्टी पर बैठ गया। किसी ने कुछ नहीं कहा। न ही किसी ने पेपे को हटाया। हम लोग लौट आए थे, पर पेपे की वह बडी बडी आँखें। उसके आँसू कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह रहे थे। .... बस पेपे की एक जोडी नीली आँखें निरंतर रोती रहती। पेपे क्लिनिक आता और आइलिन की कुर्सी के पास चुपचाप बैठा रहता। मुझे देखकर धीरे से आकर पैरों से लिपट जाता।... आह ! जानवर में आदमी और आदमी में जानवर। आइलिन ने मुझे यही तो देखने और समझने को कहा था।’’



डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभा जी के उपन्यास में व्यक्त स्त्री संवेदना की बहुत ही सुंदर और बोधगम्य भाषा में प्रस्तुति।
    हार्दिक बधाई आदरणीय 🙏

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  2. स्त्री विमर्श की सबसे अलग लेखिका प्रभा खेतान की रचना पर बढ़िया विचार....
    बहुत उपयोगी जानकारी।
    हार्दिक बधाई और प्रणाम सर जी।

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  3. स्थान अमरीका हो या भारत, समय प्राचीन हो या आधुनिक
    स्त्री की चिंता और इसकी स्थिति पर चिन्तन अतिआवश्यक।
    उपन्यास की संवेदना अनगिनत स्त्रियों की वेदना।
    बहुत अच्छा लगा।

    हसमुख, बहुत खूब।
    SONA

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  4. વિશ્વના કોઈ પણ દેશની સ્ત્રીઓની વ્યથા એક જ પ્રકારની હોય છે. એ વેદનાને ઉજાગર કરતી 'આઓ પેપે ઘર ચલે'
    કૃતિ ખૂબ સારી રીતે આલેખાયું છે. અને એટલીજ સારી રીતે તેનું વિવરણ કરવા બદલ આપનો ખૂબ ખૂબ આભાર સર

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  5. आज के दोर में भी कुछ न कुछ दर्जों में स्त्री की व्यथा रहतीं ही है। इस विषय में प्रभाजी की लेखनी अत्यंत सटीक हैं और इस विषय पर आप साहब के विचार भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    आभार आप सर का और आप इसी तरह हमारे ज्ञान की सीमाओं को बढ़ावा देते रहे।
    खालीद

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  6. साहित्य की सटीक विवेचना के धनी गुरूवर्य हसमुख परमार साहब के 'आओ पेपे घर चले' पर का चिंतन बड़ा ह्रदय स्पर्शी है। युगीन समय की नारी चेतना एवं विडम्बना का जो चित्रण प्रभा खेतान ने अपने उपन्यास में विस्तार से चित्रित किया है उसका पूरा हार्द बहुत ही कम शब्दों में आपने किया हैं। प्रभा खेतान के पूरे उपन्यास की त्रासदी को आपने बहुत ही कम शब्दों में सटीकता से उभारा हैं। साथ ही अमरीकी महिलाओं की विडम्बना एवं भारतीय महिलाओं की विडंबनाओं का पूरा चितार आपने पाठकों के सामने रख दिया हैं। साहित्य का अनुशीलन करनेवाले कहीं विद्वानों को पढ़ा पर साहित्य की सभी विधा चाहें वह कहानी हों,उपन्यास हों,या फिर कविता हों आपकी इन सभी विधाओं पर की सटीकता औरों से अलग ही नजर आती हैं। नारी विमर्श पर आपके विचार वर्तमान छात्रों, शोधार्थीयों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

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  7. प्रभा जी के उपन्यास पर बहूत ही बढ़िया विचार है आपका । अभिनंदन🙏सर

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