डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
दयनीय
दयनीय शब्द की व्युत्पत्ति क्या है?
पहली नजर में यही लगता है कि दयनीय
शब्द दया से बना है।
लेकिन ऐसा नहीं है।
दयनीय विशेषण शब्द है,
जिसमें ‘अनीयर’ प्रत्यय लगा है। संस्कृत में सात प्रत्ययों का एक
समूह है, जिसे ‘कृत्य’ प्रत्यय कहा जाता है। ‘अनीयर’ सात में
से एक प्रत्यय है।
ध्यान देने की बात है कि कृत्य
प्रत्यय धातु से जुड़ते हैं। लेकिन दया शब्द धातु नहीं है। अर्थात् दयनीय दया से
नहीं बना है।
तब?
यह जानने के लिए मैंने संस्कृत
व्याकरण के एक बड़े आचार्य से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि दयनीय शब्द ‘देङ्’
धातु से बना है।
‘देङ्’ धातु का अर्थ होता है रक्षा
करना।
देङ् धातु के साथ अनीयर प्रत्यय के
लगने से दयनीय शब्द बनता है, जो संज्ञा के
साथ प्रयुक्त होकर विशेषण का कार्य करता है।
दयनीय का मूल अर्थ होता है रक्षणीय।
रक्षा में दया का भाव होता है। संभव
है इसी लिए जो दया (रक्षा).का पात्र (योग्य) है वह है दयनीय।
यह तो अनुमान मिश्रित मेरी व्याख्या
है।
इसमें यदि परिवर्तन-परिवर्धन की
गुंजाइश हो तो सुझाएँ।
दम्पति/दम्पती
इसमें अपनी बुद्धि लगाने या यों कहें
कि अपनी होशियारी दिखाने का कोई अवकाश नहीं है।
सर मोनियर विलियम के
संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसे
अपने ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ -
1. दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ
रहा हे।
2. ‘दम्’ धातु (क्रिया) भी है और
संज्ञा भी।
3. ‘दम्’ का मूल अर्थ है ‘घर’। मूल
अर्थ पत्नी या स्त्री नहीं है। स्त्री तो बिल्कुल नहीं। ‘दम् का स्वतंत्र प्रयोग
नहीं मिलता।
4. दम् के साथ पति द्वंद्व समास के
रूप में जुड़ता है। मजे की बात यह कि वह आगे-पीछे दोनों तरफ जुड़ता है - दम्पति तथा
पतिदम्। ये दोनों रूप कोश में दिए गए हैं।
5. दम्पति का मूल अर्थ है - घर का
स्वामी। दम् यानी घर। पति यानी स्वामी।
6. चूँकि घर के स्वामी पति तथा पत्नी
दोनों होते हैं (या उस जमाने में होते रहे होंगे)। इसलिए आगे चलकर दम्पति का अर्थ
हो गया पत्नी-पति (पति-पत्नी)। दम् यानी पत्नी।
7. और आगे चलकर पाणिनि काल में दम्पति
का समास-विग्रह किया गया - जाया च पतिश्च दम्पतिः।
8. फिर सवाल यह हो सकता है कि विग्रह
में दम् क्यों नहीं आया? जाया क्यों आया?
इसका जवाब मेरी अल्पमति से यह हो सकता
है कि चूँकि दम् शब्द का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता और विग्रह में स्वतंत्र शब्द
चाहिए,
इसलिए दम् के पर्याय जाया का प्रयोग दम् के स्थान पर हुआ होगा।
सर मोनियर विलियम के कोशग्रंथ के
सहारे अपनी अल्पमति से मैंने यह व्याख्या की है।
खुद को अल्पमति विनय प्रदर्शन के लिए
नहीं कहा है। संस्कृत व्याकरण मेरा विषय नहीं है, इसलिए कहा है।
योगेन्द्रनाथ
मिश्र
40,
साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल
– 388315
जिला
आणंद (गुजरात)
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