बुधवार, 30 जुलाई 2025

जुलाई 2025, अंक 61

 

शब्द-सृष्टि

जुलाई 2025, अंक 61

परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख परमार

शब्द संज्ञान – ज़मीन तथा ज़मीं – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

संस्मरण – एक था हृदयपाल सिंह ..... – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

चोका – गुरु पूर्णिमा – प्रीति अग्रवाल

कविता – 1. वंचित क्यों रोटी से 2. ज़िंदगी का फ़लसफ़ा – डॉ. ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’

हाइकु – आषाढ़ घन – पार्वती देवी ‘गौरा’

गीत – आज यह गीत – इंद्र कुमार दीक्षित

कविता – 1. लहरों के पग रीते हैं ?? 2. देखता हूँ कौन है वो? – डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर

कविता(मनहरण घनाक्षरी) – शिव – ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

सामयिक टिप्पणी – एक थी रिधन्या ! – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

प्रेमचंद विशेष

आलेख – मुंशी प्रेमचंद : हिंदी साहित्य के युगद्रष्टा – अपराजिता ‘उन्मुक्त’

आलेख – प्रेमचंद के देसिल बयना : संदर्भ ‘गुल्ली डंडा’ का – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

आलेख – मुंशी प्रेमचन्द – डॉ. राजकुमार शांडिल्य

आलेख – मुंशी प्रेमचंद – एम. संध्या

काव्य रूपांतर – ईदगाह – डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

आलेख – यूँ ही नहीं बन जाता कोई ‘प्रेमचंद’ – डॉ. घनश्याम ‘बादल’

कहानी पर बात – ‘बाबा जी का भोग’ कहानी से गुजरते हुए… – सुशीला भूरिया

कविता – कलम के सिपाही प्रेमचंद – डॉ. ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’



3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर अंक....स्तरीय विषय सामग्री।
    परामर्शक की कलम से.....पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।
    प्रो.हसमुख परमार सर की लेखनी और अंक की विषयगत विविधता तथा प्रकाशन नियमितता सराहनीय।
    💐🙏
    Hiya

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  2. विषयों की विविधता लिए हुए बेहतरीन अंक। यह आप सब के परिश्रम का परिणाम है। शब्द-सृष्टि अंक की हमेशा प्रतीक्षा रहती है। स्तरीय रचनाओं लिए सभी रचनाकारों को बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  3. विशुद्ध साहित्यिक अंक, मुंशी जी को समर्पित इसका दूसरा भाग भी विशेष है।
    बधाई, शुभकामनाएँ।

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जुलाई 2025, अंक 61

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