आज
यह गीत
इंद्र
कुमार दीक्षित
कैसे रिश्ते
कैसे नाते ।। फूल झर गये झरते पाते।
मरु
निचाट सा पसरा जीवन,जिसका आर न पार।
नहीं
बाँचता जैसे कोई रद्दी का अखबार ।।
रखा
चपत उधर कोने में, नजर न आये आते जाते।।
फूल
झर गये-------
निपट
अबोलापन रहता है, हफ्तों और महीनों।
महाद्वीप
सूखे रह जाते,सागर में ‘अलनीनो’
।।
झरें
खार खाये होंठों से, कैसी-कैसी बातें ।।
फूल
झर गये---------
पिंजरे में है कैद, कहीं ना
उड़कर आना जाना ।
चोंच छिपा सीने में, अब
जीने का एक बहाना ।।
तृप्त
न हो पाया मन कितनी बीत गईं बरसातें।।
फूल
झर गये------------
रिश्तों
में अनुबंध भरे हैं,अधरों पर प्रतिबंध जड़े हैं,
चंद
दिनों में उकता करके, सूली पर संबंध चढ़े हैं।।
गुजरे
बरसों-बरस देहरी के दीवट में दीप जलाते।।
फूल
झर गये-----------झरते-------- पाते ।।
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इंद्र
कुमार दीक्षित
5/45 मुंसिफ कालोनी रामनाथ
देवरिया(उत्तरी)
274001
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