बुधवार, 30 जुलाई 2025

गीत

आज यह गीत

इंद्र कुमार दीक्षित

कैसे  रिश्ते   कैसे नाते ।। फूल झर गये झरते पाते।

मरु निचाट सा पसरा जीवन,जिसका आर न पार।

नहीं बाँचता जैसे  कोई रद्दी का अखबार   ।।

रखा चपत उधर कोने में, नजर न आये आते जाते।।

फूल झर गये-------

निपट अबोलापन रहता है, हफ्तों और महीनों।

महाद्वीप सूखे रह जाते,सागर में अलनीनो।।

झरें खार खाये होंठों से, कैसी-कैसी बातें  ।।

फूल झर गये---------

पिंजरे  में है कैद, कहीं ना उड़कर आना जाना 

चोंच  छिपा सीने में, अब जीने का एक बहाना  ।।

तृप्त न हो पाया मन कितनी बीत गईं बरसातें।।

फूल झर गये------------

रिश्तों में अनुबंध  भरे हैं,अधरों पर प्रतिबंध जड़े हैं,

चंद दिनों में उकता करके, सूली पर संबंध चढ़े हैं।।

गुजरे बरसों-बरस देहरी के दीवट में दीप जलाते।।

फूल झर गये-----------झरते-------- पाते   ।।

******


इंद्र कुमार दीक्षित

5/45 मुंसिफ कालोनी रामनाथ

देवरिया(उत्तरी) 274001

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जुलाई 2025, अंक 61

  शब्द-सृष्टि जुलाई 2025 , अंक 61 परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख प...