बुधवार, 30 जुलाई 2025

काव्य रूपांतर

 

ईदगाह

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

साहिल  शेखू  राजा आओ ।

जल्दी अपने कदम बढ़ाओ । ।

ईदगाह   का    सुंदर   मेला ।

लगा   खिलौने  का है ठेला । ।

बिकती रबड़ी  और जलेबी ।

खाये  फातिमा  आपा  बेबी । ।

शेखू  असलम  चाट खा रहे ।

आपस में मिलबाँट  खा रहे । ।

मेरा  मन  भी   है ललचाता ।

करना क्या  समझ न आता । ।

रखे  पास  में  तीन   हैं पैसे ।

कर दूँ  खर्च उन्हें फिर कैसे । ।

चलो नहीं अब कुछ खाऊँगा ।

समय  हो रहा  घर जाऊँगा । ।

राह   देखती   घर  में  दादी ।

बेचारी    है    सीधी   सादी । ।

बना   रही  होगी   वो   रोटी ।

छोटी   कच्ची   मोटी  मोटी । ।

रोटी   सेक   नहीं     पाती है ।

बिन चिमटी के जल जाती है । ।

हाथ  में   कैसे पड़ गए छाले ।

सूखे-   सूखे   काले-   काले । ।

क्यों  न चिमटा आज  खरीदूँ ।

दादी  को    ही   ईदी   दे  दूँ । ।

लौटके  हामिद जो घर आया ।

दादी  को  चिमटा  पकड़ाया । ।

रखना   इसको  साथ  तुम्हारे ।

नहीं  जलें फिर  हाथ तुम्हारे । ।

लगी   फूट  कर   दादी   रोने ।

हाय   हामिद  लाल   सलोने । ।

जोर   से  उसको गले लगाया ।

अल्ला का  फिर शुक्र मनाया । ।

***

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

जबलपुर

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