ईदगाह
डॉ.
अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश
साहिल शेखू
राजा आओ ।
जल्दी
अपने कदम बढ़ाओ । ।
ईदगाह का
सुंदर मेला ।
लगा खिलौने
का है ठेला । ।
बिकती
रबड़ी और जलेबी ।
खाये फातिमा
आपा बेबी । ।
शेखू असलम
चाट खा रहे ।
आपस
में मिलबाँट खा रहे । ।
मेरा मन
भी है ललचाता ।
करना
क्या समझ न आता । ।
रखे पास
में तीन हैं पैसे ।
कर
दूँ खर्च उन्हें फिर कैसे । ।
चलो
नहीं अब कुछ खाऊँगा ।
समय हो रहा
घर जाऊँगा । ।
राह देखती
घर में दादी ।
बेचारी है
सीधी सादी । ।
बना रही
होगी वो रोटी ।
छोटी कच्ची
मोटी मोटी । ।
रोटी सेक
नहीं पाती है ।
बिन
चिमटी के जल जाती है । ।
हाथ में
कैसे पड़ गए छाले ।
सूखे- सूखे
काले- काले । ।
क्यों न चिमटा आज
खरीदूँ ।
दादी को
ही ईदी दे
दूँ । ।
लौटके हामिद जो घर आया ।
दादी को
चिमटा पकड़ाया । ।
रखना इसको
साथ तुम्हारे ।
नहीं जलें फिर
हाथ तुम्हारे । ।
लगी फूट
कर दादी रोने ।
हाय हामिद
लाल सलोने । ।
जोर से
उसको गले लगाया ।
अल्ला
का फिर शुक्र मनाया । ।
***
डॉ.
अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश
जबलपुर
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