बुधवार, 30 जुलाई 2025

कविता

 

1.

लहरों के पग रीते हैं ??

डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर

आज कहूँ मैं कैसे किससे

नदियों के तट रीते हैं?

रेत हठीली थमती जाए

लहरों के पग  रीते हैं??

 

बाग बाग मंथर गति बहती

बहती सभी दिशाओं में

घाट घाट पर पूजित होती

सुंदर सृजित कथाओं में

नील गगन के छाए रहते

लहरों के पग  रीते हैं??

 

कंकर कंकर रेत कणों को

अभिसिंचित करती रहती

मर्म वेदना को धोती सी

निर्मल अविरल बहती रहती

नीर रेत घुल घुल कर मिलते

लहरों के पग  रीते हैं ??

 

हिम गिरि से निकली धारा

कल कल छल छल जाती है

वन उपवन को जीवन देती

अमिय बिछाती जाती है

निज आश्रय में साधन देते

लहरों के पग रीते हैं ??

 

खग कुल कलरव करते जल में

धवल हार सी बहती जाए

नदिया जीवन,जीवन धारा

जीवन में सुख भरती जाए

वसुधा का शृंगार हैं करते

लहरों के पग रीते हैं ??

 

रेत हठीली थमती जाए

नदियों के तट रीते हैं??


2

देखता हूँ कौन है वो?

 

देखता हूँ कौन है वो ??

देखता हूँ कौन है वो

शून्य की गहराईयों में

झाँकता है मौन है वो

देखता हूँ कौन है वो??

 

चीरते घनघोर तम की

खाइयों में डूबता है

ले तरंगित ज्योति लव

देखता हूँ कौन है वो??

 

है शिखरिणी मौन देखे

श्वेत नीले बादलों को

ले सजाए पंख स्वर्णिम

देखता हूँ कौन है वो??

 

कालिमा की भेंट चढ़ती

जो निशानी दिख रही है

मर्म के व्याकुल दृगों में

देखता हूँ कौन है वो??

 

कंटकों के रास्ते में

शूल की तीखी चुभन

चीखती सी घाटियों में

देखता हूँ कौन है वो??

 

हैं गगन में दिख रहीं जो

उड़ रही हैं बगुल पंक्ति

श्वेत धारी नील नभ में

देखता हूँ कौन है वो??

***


डॉ. मोहन पाण्डेय भ्रमर

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