बुधवार, 30 जुलाई 2025

आलेख

मुंशी प्रेमचन्द

एम. संध्या

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायबराय और माता का का नाम आनंदी देवी था। उनका वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। धनपतराय श्रीवास्तव का मुंशी प्रेमचंद उपन्यास सम्राट’, कथा सम्राट बन जाना इतना भी आसान नहीं था। माता की मृत्यु के बाद बालक धनपतराय ने जिस प्रकार के अत्याचार को विमाता के पास से सहा वह कल्पनातीत था। लेकिन उस बच्चे ने अपने कष्टों को अपने कलम की ताकत बना डाला। तभी तो वे हिंदी में कलम के सिपाही कहलाए। उनका साहित्यिक जीवन सन् 1901 से प्रारंभ हुआ। प्रेमचंद की रचनाओं में समाजसुधारक आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है, उसमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छुआछूत, जातिभेद, आधुनिकता का अंधानुकरण, विधवा विवाह आदि उस समय की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है।

       ईदगाह का हमीद जब अपनी दादी के लिए ईद के मेले में से चिमटा खरीदकर लाता है तो वह इस स्वार्थी जगत को त्याग और प्रेम का संदेश देता हुआ दिखाई पड़ता है। पूस की रात का हल्कू न केवल परिश्रम के महत्व को स्थापित करता हुआ दिखाई पड़ता है बल्कि वह भारतीय किसानों का सच्चा प्रतिनिधित्व  गोदान के होरी के समान ही करता हुआ दिखाई पड़ता है। कर्बला नाटक जिसे प्रेमचंद ने सन् 1924 में लिखा था। आज जब संपूर्ण विश्व विभिन्न धार्मिक, भौगोलिक, सामाजिक मुद्दों को लेकर लड़ रहा है ऐसे में आज भी सांप्रदायिक सद्भाव, धार्मिक एकता, सत्य और न्याय के लिए युद्ध की आवश्यकता, मानवता की स्थापना की आवश्यकता आदि मुद्दों पर प्रभावी संदेश देने की क्षमता रखता है।

                               प्रेमचंद केवल एक नाम नहीं बल्कि एक अमर कालखंड है।

मेरे कई प्रिय लेखकों में से एक प्रेमचंद हैं। उनके बारे में कुछ बातें लिख पाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।


एम. संध्या

कक्षा- बी. बी. ए. द्वितीय वर्ष

वर्ग – 2 बी.

क्रमांक- 107224684076

महाविद्यालय- भवंस विवेकानंद कॉलेज,

वाणिज्य,मानविकी और विज्ञान

सैनिकपुरी हैदराबाद केंद्र- 500094

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