1.
शिक्षक
प्रेम नारायन तिवारी
बचपन
खत्म,
हुआ अब बूढा,
नहीं
रही तरुणाई।
नमन
हृदय से करूँ सभी का,
जिनसे
शिक्षा पायी।।
सबसे
पहली जगत मे शिक्षक,
जन्मदात्री
माई।
भला-बुरा
अक्षर-गिनती संग,
रिस्ते
नाते,
बतलायी।।
आज
भी याद कि कैसे उसने,
क्या
क्या था सिखलाया।
क्या
खाना और कैसे खाना,
कर्म
धर्म बतलाया।।
पिता
से ज्यादा दादी दादा,
भाई
बहन पढाये।
उन्हीं
कि ऊँगली थामे थामे,
विद्यालय
तक आये।।
उसके
बाद जो शुरू पढाई,
रेल
सी चलती जाये।
एक
खत्म तो एक शुरू है,
याद
कहाँ तक आये।।
पर
इतना है याद सभी ही,
शिक्षक
थे हितकारी।
तभी
तो सुन्दर आज जिन्दगी,
दुनिया
लगती प्यारी।।
किसी
ने पढ़ना किसी ने लिखना,
किसी
ने ज्ञान बढाया।
थी
जीवनसंगिनि भी शिक्षक,
प्रेम
का पाठ पढाया।।
कैसे
झुकना कैसे झुकाना,
कैसे
दूरी नजदीकी।
जीवनोपयोगी
ज्ञान बहुत सा,
उन्हीं
से मैंने सीखी।।
सहकर
दर्द भी कैसे जीते,
उन्हीं
से मैंने जाना।
जबसे छीन लिया ईश्वर ने,
हुआ,
बिना गुरू का माना।।
अब
जीवन की उलझी गुत्थी,
‘प्रेम’
मैं रखता जाऊँ।
अमृत
विष अब समझ रहा न,
जो
पाऊँ सो खाऊँ।।
बिन
शिक्षक के ज्ञान मिले न,
जीवन
न बिना माता।
‘प्रेम’ झुकाकर सिर गुण गाऊँ,
सब
लगे मुझे विधाता।।
***
2.
अपनी
हिंदी पे हमको तो अभिमान है।
कोई
भाषा छोटी है न कोई है बड़ी,
कोई
मोती जड़ी न ,न तो कोई सड़ी,
पर
हिंदी ने हमे सिखाया ज्ञान है।
अपनी
हिंदी पे हमको अभिमान है।।
इसकी
फितरत मे झलके न कोई घमंड,
हर
भाषा से चुन लेती है सुन्दर सा शब्द,
यह
सबका ही कर जाती सम्मान है।
अपनी
हिंदी पे हमको अभिमान है।।
इसको
पढना लिखना सहज ही आता है,
जो
लिखा जाता है , वह ही पढा जाता है,
लिखने
पढने मे दिखता सुर व तान है।
अपनी
हिंदी पे हमको तो अभिमान है।।
शब्द
लाखों करोड़ों समेटे हैं यह,
सादगी
फिर भी खुदमें लपेटे है यह,
लोकोक्तियों
मुहावरों की यह खान है।
अपनी
हिंदी पे हमको अभिमान है।।
हिंदी
दिवस मनाना है गौरव का क्षण,
‘प्रेम’
आ जाओ सब मिलके करते हैं प्रण,
इसकी
खातिर समर्पित दिलो जान है।
अपनी
हिंदी पे हमको तो अभिमान है।।
प्रेम
नारायन तिवारी
रुद्रपुर देवरिया
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