मंगलवार, 30 सितंबर 2025

आलेख

हिंदी भाषा का महत्त्व अक्षुण्ण

डॉ. ज्ञानप्रकाश पीयूष

हिंदी भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था –

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल।”

अर्थात किसी भी राष्ट्र की उन्नति का मूल आधार उस राष्ट्र की अपनी भाषा होती है। राष्ट्रभाषा के बिना वह अपनी प्रगति नहीं कर सकता और न ही अपने हृदय के दुख-दर्द को व्यक्त कर सकता है। विश्व में जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, चीन, रूस, अमेरिका आदि विकसित राष्ट्रों की प्रगति का मूल आधार उन राष्ट्रों की अपनी भाषाएँ हैं, जिन्हें अपनाकर वे आज विश्व में अपना सर्वोपरि स्थान बनाए हुए हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी संपूर्ण राष्ट्र में व्यापक रूप से प्रयोग में आने लगी थी तभी से यह जनता द्वारा राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार कर ली गई थी क्योंकि राष्ट्रभाषा शब्द कोई संवैधानिक शब्द नहीं है। यह जन मान्यता पर आधारित शब्द है। राष्ट्रभाषा सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोड़ने का कार्य करती है, यह संपूर्ण देश की संपर्क भाषा होती है, इसका जनाधार बड़ा व्यापक होता है इस दृष्टि से हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में वर्तमान में सुप्रतिष्ठित भाषा है , जो सर्वथा सुसंगत एवं समीचीन है।

संप्रभुता संपन्न स्वतंत्र राष्ट्र के लिए जितना महत्त्व उसके राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रचिह्न का होता है, उतना ही महत्त्व उसकी राष्ट्रभाषा का भी होता है। राष्ट्रभाषा से रहित राष्ट्र गूंगे के समान दीन-हीन लाचार व अपनी पहचान से रहित होता है। वह विश्व के समक्ष अपना सिर उठाकर, सीना तान कर गर्व से खड़ा नहीं हो सकता। अतः एक स्वतंत्र, स्वाभिमानी व अनंत संभावनाओं से संपन्न राष्ट्र के लिए अपनी राष्ट्रभाषा का होना नितांत आवश्यक है।

15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तब उसके समक्ष एक अहम प्रश्न राष्ट्रभाषा का ही था कि कौन-सी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए जो सर्वमान्य व राष्ट्रहित में हो। यह कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि भारत बहुभाषी राष्ट्र है। हमारे संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है और भिन्न-भिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं तथा उनके राज्य कार्य भी उन्हीं भाषाओं में संपन्न होते हैं। अतः इतनी भाषाओं के होते हुए कौन-सी एक भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए , यह प्रश्न बड़ा जटिल था।

इसका हल निकालने के लिए देश के मूर्धन्य विद्वानों की राय ली गई। सभी विद्वानों ने हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत करने के पक्ष में अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत किए। महात्मा गाँधी, लोकमान तिलक, लाला लाजपत राय, डॉ. भीमराव अंबेडकर आदि जो अहिंदी भाषी थे, उन्होंने भी हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के रूप में अपना समर्थन दिया और आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने तो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भारत के विभिन्न प्रांतों में डीएवी स्कूल और कॉलेज खुलवाए।

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के समर्थन में कहा कि- मैं  हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए स्वीकार नहीं करता कि यह बहुसंख्यक लोगों के द्वारा बोली व समझी जाती है, इसलिए भी नहीं कि इस भाषा का शब्द भंडार विपुल है तथा इसका स्वरूप अन्य भाषाओं के स्वरूप से मिलता-जुलता है और इसका अन्य भाषाओं से पारिवारिक रिश्ता भी है, इसलिए भी नहीं कि यह सीखने में आसान है और इसकी लिपि व ध्वनि तत्त्व बड़ा वैज्ञानिक है तथा यह अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की भाषा है व इसमें अंग्रेजी भाषा जन्य मानसिक- गुलामी से मुक्ति दिलाने की क्षमता विद्यमान है, यह आर्थिक और व्यावसायिक जगत के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है अपितु हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में इसलिए स्वीकार करता हूँ कि इसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति अविच्छिन्न रूप से सन्निहित है जो राष्ट्र की भावनात्मक एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने में समर्थ है।”

महापुरुषों व विद्वानों की संस्तुतियों के आधार पर 14 सितंबर, 1949 में हिंदी को भारत संघ की राजभाषा घोषित कर दिया गया तथा 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान ने इसे विधिवत रूप से लागू कर दिया गया तब से लेकर आज तक हिंदी भाषा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह भाषा अविरल रूप से विकासमान है। इसमें प्रतिवर्ष विपुल साहित्य का सृजन हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों के माध्यम से यह विश्व के अनेक राष्ट्रों में अपना परचम लहरा चुकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण दे कर पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई विश्व के समक्ष हिंदी का लोहा मनवा चुके हैं तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का पठन-पाठन होता है।

प्रवासी भारतीय,विश्व के जिन देशों में रहते हैं वहाँ भी हिंदी का बोलबाला है। गूगल, याहू, और माइक्रोसॉफ्ट पर भी हिंदी विषय की जानकारियाँ उपलब्ध हैं। अतः इन सब के आधार पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का महत्त्व अक्षुण्ण है। इसका भविष्य अनंत संभावनाओं से ओतप्रोत है। इसकी कीर्ति उज्जवल है। अतः हमें इस पर गर्व है।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में -

जिसको न स्व देश पर गर्व व राष्ट्रभाषा पर अभिमान है।

मनुज नहीं वह, पशु तुल्य है, जीते हुए भी मृतक समान है।”

अतः हमें एक स्वर में मिलजुल कर बोलना चाहिए -

गूँज उठे भारत की धरती, हिंदी के जयगानों से।

राष्ट्रभाषा पूजित हो, सब बालक, वृद्ध, जवानों से।”

जय हिन्दी, जय भारत।

***

कविता

हिंदी भाषा महान है

 

भारत देश की भाषा हिंदी

इसका महत्त्व महान है

देश की संस्कृति निहित है इसमें

विश्व में इसकी शान है।

 

देवनागरी लिपि है इसकी

सीखने में बहुत आसान है

है यह वैज्ञानिक भाषा

नहीं उलझन जंजाल है ।

 

खड़ी बोली भी कहते इसको

भारत का स्वाभिमान है

अन्य भाषाओं से मेल है इसका

राष्ट्रीय-एकता की पहचान है ।

 

स्वतंत्रता आंदोलन की रही यह भाषा

इसका गौरव गान है

निज संस्कृति का मूल है इसमें

इतिहास में इसका नाम है ।

 

ऋषि दयानंद ने इसे अपनाया

घर-घर तक फैलाया ।

स्कूल कॉलेज बहुत खुलवाए

हिंदी का प्रचार करवाया ।

 

लाजपत राय की हृदय की धड़कन

उन्होंने इसे अपनाया

गाँधी तिलक गोखले सबने

इसका मान बढ़ाया ।

 

राष्ट्र संघ में भाषण देकर

अटल जी ने इसे चमकाया

जहाँ भी रह रहे भारत वासी

सबने  इसे अपनाया।

 

अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की भाषा

विश्व में इसका नाम है

सभी नागरिक हिंदी अपनाएँ

इससे देश की शान है।

 

चौदह सितंबर उन्नचास को

राजभाषा इसको स्वीकार किया

राजकार्य सब  करना हिंदी में

सरकार ने था अंगीकार किया।

 

निज भाषा को मान देने को,

हिंदी दिवस हम मनाते हैं

इसका हो विस्तार विश्व में

संकल्प यही हम लेते हैं। 


डॉ. ज्ञानप्रकाश पीयूष

आर.ई.एस.

पूर्व प्रिंसिपल

1/258 मस्जिदवाली गली

तेलियान मोहल्ला, सिरसा (हरि.)

पिनकोड-125055.

 

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