मंगलवार, 30 सितंबर 2025

लघुकथा

1

हॉरिबल हिंदी डे

प्रेम नारायन तिवारी

      डार्लिंग उठो ना, प्लीज हेल्प मी। “मधूलिका अपने सोये पति को जगाते हुए बोली।

   ह्वाट नानसेंस यार, यू नो नाईट सिफ्ट से आया हूँ। जगा दिया मारनिंग मे ही। बोलो ह्वाट हैपेन्ड? “ मोहक रजाई मे मुंह ढके तीखे स्वर मे बोला। मोहक मैकेनिकल इन्जीनियर है, एक प्रतिष्ठित कार निर्माता कम्पनी में काम करता है। मधूलिका उसकी पत्नी है, वह एक इंग्लिश मीडियम स्कूल मे अंग्रेजी की अध्यापिका है।

     जब देखो एन्ग्री हो जाते हो, तुम नाईट सिफ्ट करते हो तो मैं भी तो दिन में टीचिंग करती हूँ। एस्टर डे जो हिंदी डे का बैनर बनवाने का मैटर तुम्हे दिया था उसका क्या हुआ। बैनर बनवाकर लाये?” मधूलिका धम्म से बेड पर बैठते हुए बोली।

  तुमको हिंदी डे क्या मतलब, तुम तो इंग्लिश टीचर हो। वैसे बैनर बन गया है बस जाकर पिक करना है। “मोहक मधूलिका को रजाई ओढाते हुए बोला।

    यू नो स्कूल मे हिंदी टीचर नहीं है, हिंदी लर्न भी नहीं कराया जाता। टुडे वर्ल्ड हिंदी डे सेलीब्रेट करने का आर्डर गवर्नमेंट से सर्व हुआ है। सारी रिस्पान्सबेल्टी प्रीन्सीपल ने मुझपे डाल दिया है। अब बैनर कैसे आयेगा टेनोक्लाक तक मोस्टली चाहिए। “

    ओके ओके मिल जायेगा, रिलेक्स डार्लिंग रिलेक्स। “मोहक मधूलिका का माथा सहलाते हुए बोला।

    नो नो, आई नो योर रिलेक्स! काम बढाओगे। मैं सावर ले चुकी हूँ। किचन मे काम बहुत है। ऊपर से हिंदी डे का टेंशन। ना जाने वर्ल्ड हिंदी डे इण्डिया के स्कूलों मे सेलीब्रेट कराने से क्या फायदा? आफिसों मे सेलीब्रेट कर लेते। स्टूडेंट टीचर को वर्ल्ड हिंदी डे से क्या मतलब? “मधूलिका तुरंत उसका हाथ हटा बेड से तेजी के साथ नीचे उतरकर बोली।

    मोहक खिसियानी हंसी हंसते दोबारा रजाई मे घुस गया।

      डान्ट स्लीप, प्लीज पिक दैट बैनर।” यह देख मधूलिका बोल पड़ी।

    ओके ओके लाता हूँ, बाप रे इस हॉरिबल ठंड मे यह हॉरिबल हिंदी डे राम बचाये इससे। “ऐसा बोलते हुए मोहक ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया।

***

2

माँ की चूड़ियाँ

      आनन्द जरा देख तो समय कितना हुआ है? मेरे तो दोनों हाथों मे सामान है।” तेज कदमों से चलते हुए शेर बहादुर अपने साथी से बोला।

     साढे़ नौ बजे गये हैं।” आनन्द ने हाथ मे पकड़ा मोबाइल देखकर बतलाया।

    समय बताने के बाद आनन्द ने पीछे मुड़कर देखा। दूर आसमान मे धुएँ के साथ आग के शोले दिखाई दे रहे थे। सड़क पर झूण्ड के झूण्ड उसके ही जैसे नौजवान और फौज के जवान दिखाई दे रहे थे।फौजी जवान लगातार उन्हें अपने-अपने घर लौट जाने का सन्देश प्रसारित कर रहे थे।

    सभी नौजवान आन्दोलनकारी हैं। जो दो रात दो दिन लगातार काठमांडू मे  ताण्डव मचाकर अपने घर लौट रहे हैं। सभी के हाथों मे दुकानों घरों मॉलों से लूटे हुए कीमती सामान हैं। आनन्द खाली हाथ है फिर भी बहुत खुश है।उसकी जेब में एक औरत के हाथ से लूटी हुई सोने की वजनी चूड़ियाँ हैं।

   शेरबहादुर और आनन्द एक दूसरे के सहपाठी और हमउम्र दोस्त हैं। बीते कल वह दोनों एक अन्य पड़ोसी दोस्त राकेश के साथ आन्दोलन मे भाग लेने गये थे। तीनों ही आन्दोलनकारियों मे सबसे आगे थे। गोलियों के चलने के दौरान जब भगदड़ मची तभी से राकेश  का साथ छूट गया। अब वह कहाँ किस हालत में है! उन्हें  मालूम नहीं था।

    आनन्द और शेर बहादुर आधी रात को जब अपने मुहल्ले मे पहुँचे तब वहाँ सबकुछ धुआँ-धुआँ-सा था। लगता था जैसे उनके मुहल्ले मे भी जमकर आगजनी और लूटपाट हुआ है। यह देखकर शेर बहादुर अपने हाथ का सामान फेंककर दौड़ा।आनन्द भी पीछे से दौड़ कर गया। दोनों का घर जला दिया गया था।

   शेर बहादुर के घर का तो कोई नहीं परन्तु आनन्द की माँ घर के सामने बैठी रो रही थी। उसके हाथ की चूड़ियाँ टूटी हुई थी। आनन्द दौड़ कर माँ के पास गया। “माँ यह कैसे हुआ? सुमन और पिताजी कहाँ हैं?” उत्तर में उसकी माँ ने ऊँगली के से घर की तरफ इशारा किया। आनन्द ने ध्यान से देखा। उसे कोयले की तरह काली जली दो मानव आकृतियाँ दिखाई दीं। वह खड़े-खड़े जमीन पर गिर पड़ा।

     आनन्द की माँ दौड़ कर उसके पास आ उसका सिर सहलाते हुए दहाड़े मारने लगी। आनन्द को अपने पैंट में रखीं सोने की चूड़ियाँ माँ की चूड़ियाँ बनके असहनीय दर्द दे रही थीं।

प्रेम नारायन तिवारी

रुद्रपुर देवरिया

 

 


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