शुक्रवार, 27 जून 2025

कहानी

रिवर्स गियर

एकता चौधरी

                                                                          

अरे ये अचानक पीछे क्यों चलने लगी’

मेट्रो के सभी यात्री खड़े हो गए , पूरी ट्रैन में अफरा तफरी का माहौल हो गया।  

अब क्या होगा, ये तो रुक भी नहीं रही’

कुछ लोग पायलट केबिन की तरफ पहुँच चुके हैं।  पायलट खुद घबराई हुई स्थिति में कण्ट्रोल रूम से बात करने और कोई कोई नोब्स दबाने में लगा हुआ है।जो कोई ट्रैक पे इसके साथ ही चल रही होगी पीछे से , उससे क्या टकरा जाएगी? ‘

और क्या’

इसके तो कंट्रोल्स ख़त्म हो गए हैं

हे राम! इस तरह तो प्राण पखेरू उड़ जाएँगे’

“आ -$$$$$$$$

--------- मैं पसीने से लथपथ बैड से नीचे की तरफ आधा लटका पड़ा सा फटी आँखों से फर्श देख रहा।  और हार्ट बीट तो जैसे दरवाजा तोड़ बाहर ही निकल जाये अभी की अभी।

उफ्फ्फ ---- ये क्या था !!

पानी पीने की कोशिश की काँपते हाथों से । माय गॉड !

अभी तो २:३० हुआ है, नींद भी नहीं आने वाली अब।

आजकल घर पे भी कोई नहीं है , पत्नी बच्चे नानी के घर छुट्टियाँ मनाने जा रहे हैं।  

क्या हो रहा है आजकल चारों तरफ।  

प्रकृति ने मानव को इतना कुशल बनाया है, विकास की कितनी संभावनाएँ हैं और विकास हुआ भी है।  मगर क्या विकास का वास्तविक परिणाम यही है !  जो हो रहा है।  

इन दिनों --बहुत दिनों से होता चल रहा ।  

दिल दिमाग शायद मेरे घर वालों के जैसे छुट्टियाँ मनाने लग रहे हैं, और चारों तरफ खूनखराबा हो रहा। 

विकसित मानव अपने जीवन में पाषाण युग की सी हरकत कैसे किये जाता !

और कौन ही जाने पाषाण युग वाला मानवी बहुत ज़्यादा संवेदनशील रहा हो तो, प्रेममय  जिया हो तो !

आज जैसे कारखानों के काले धुएँ सा-पानी , हवा सब समाकर जाने एक दूसरे को कुचलने की कोशिश करता-सा दिख रहा , क्यों !!!

गला काट रहा, गोली चला रहा -

प्रकृति ने तो बुद्धि जीवी बनाया सबसे ज़्यादा, और कितना रंगीन पृथ्वी का स्वरुप दिया, बम बरसा के राख ही राख किये जा रहा।

ये सही है,

ब्लैक एंड व्हाइट जीवन में रंग दो ही थे,

लेकिन दो रंगों ने इतनी सारी जगह दे रखी थी,

सद्भावना की,

दिल में सच्चे प्रेम की,

साफ़ सुथरी भावनाओं की।

आजकल के रंगीन जीवन में जाने कैसी ईर्ष्या घुस गयी है,

रंगों में भी लड़ाई,

नफरत भरी है।

आपस में झगड़ झगड़ के एक दूसरे का अस्तित्व ख़तम करने पे तुले हुए हैं। कोई चाहे न बचे , आखिर में बस कोढ़िया’  बचने वाला है  -- जो काले से भी बुरा।

अच्छा, जब भूकंप आ जाए, या मेट्रो उलटी चल पड़े ( चाहे सपने में ही ) - कहाँ भाग जाता है नफरती भाव,

द्वेष, और कहीं से आ जाता है - सारी संवेदना का प्रवाह !

सब समान दिखते हैं।

मालूम पड़ता है - नहीं कोई असमान !

सब वही लाल खून बहाती नसों वाला एक सा शरीर लिए नज़र आ जाते हैं।

मर्म का वास्तविक रंग शायद एक चिड़िया के पास भी रहा हो

जिसका कोई दोष भी नहीं, और उसके समुदाय का अता पता ही नहीं लग रहा उसे। 

जब फिलिस्तीन की ज़मीन पर लड़ाई हो - और उसका कोई योगदान भी न हो, बताओ ज़रा।

ये अपाषाण मानवी की आधुनिक लड़ाई में

नन्ही चीची को कल वाले किसी सुगन्धित रंग का आभास न हो रहाकल तक सुनने वाला संगीत न सुन पा रहा, न वो सुना पा रही - पता नहीं अकेली बची रह गयी है राख में ।

खैर।

अब रात ख़त्म है - सुबह ४:१५ बजे मेरी चाय बन चुकी है।

मेरी कक्षा १ वाली होली हाट (holy heart) स्कूल के प्राचार्य श्री जोशी जी याद आ रहे, जो क्रिश्चियन थे।

हर साल बड़े दिन की मिठाई मिलती थी,

जोशीजी की फ्यूनरल पे ज़िले के कितने ही प्रतिष्ठित लोग शिरकत किये थे, याद है।

७ वी कक्षा का असलम मेरे साथ संस्कृत की सरस्वती वंदना कितनी सुरीली गाता था।

मेरे भाई को ज़ुकाम होता था, मेरी मम्मी पास के मुसलमानों के मुहल्ले में झाड़े वाले के पास भागती थी, और वो बच्चा निसंदेह ठीक हो जाता था।

पर शायद उस वक़्त एक कमी सी लगती थी - कि जीवन में साधारण सा सब कुछ, कुछ तो विकास होना चाहिए।

कब तक छोटे शहर की आकाश बत्ती में पढ़ेंगे, चलो मेट्रो सिटी में ज़रा।

अब मैं ओरिजिनल मेट्रो सिटी का वासी हूँ।

पूरी तरह विकसित हूँ।

भौतिक सुख सुविधाएँ मेरे गेट बाहर ही खड़ी हैं, जिसे चाहे बुला लूँ।

और सपनों की उड़ान वाली मेट्रो रिवर्स गियर डाले हुए है !

और किसी से बात करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती,

और महसूस हो भी तो,

असल में जी घबराता है-

सच निकल जाए - बतियाने में - कोई बवाल हो जाए, बैठे बिठाये। मुझे क्या !

पता नहीं आज विक्रम-बेताल की कहानी वाली किताब आर्डर करने का मन हो रहा - और  कहानी ख़त्म होने के बाद के अकेले बचे विक्रम के जैसे सर में खुजली सी भी फील हो रही है। थोड़ा धुंधला सा याद आ रहा - सपना ख़त्म होने के बाद मैं सच बोल गया था और ये चिल्लाया था " बहुत हो गया, मत लड़ो अब "  चलो, अब ऑइलिंग कर लेता हूँ।

 

एकता चौधरी

प्रबंधक

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड -रक्षा मंत्रालय उद्यम

नयी दिल्ली


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