शुक्रवार, 27 जून 2025

कविता

 


राष्ट्रीय चेतना की भोर, रवींद्र नाथ टैगोर

कुमार महेंद्र

साहित्य जगत विराट छवि,

ओजस्वी मुखर लेखनी स्वर ।

नित्य विरोध फिरंगी शासन,

लेखन ज्वाला संप्रभु तत्पर ।

बौद्धिक नैतिक योगदान सेतु,

स्वदेशी हित प्रयास पुरजोर ।

राष्ट्रीय चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।

 

कविता गीत नाटक अंतर,

देश भक्ति स्तुति दिव्य ज्योत ।

परित्याग नाइट हुड उपाधि,

कलम स्वाभिमान ओतप्रोत ।

संचेतन पहल नारी सशक्ति,

रविन्द्र संगीत वृक्षारोपण ओर ।

राष्ट्रीय चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।

 

जन गण मन रचना अद्भुत,

राष्ट्र प्रेम एकता भव्य झलक ।

सांस्कृतिक विविधता भाव अनूप,

शासक भाग्य विधाता अलक ।

उन्नीस सौ तेरह वर्ष मनोरम,

गीतांजलि स्पर्श नोबेल पुरस्कार छोर ।

राष्ट्रीय चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।

 

अप्रतिम ख्याति विश्व कवि रूप,

सृजन ध्येय मानवता उत्थान ।

पुनीत स्थापना शांति निकेतन,

शिक्षा संस्कार ग्राम्यता आह्वान ।

प्रातः स्मरणीय व्यक्तित्व कृतित्व,

हर कदम साहित्य वंदना सराबोर ।

राष्ट्रीय चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।

 


कुमार महेंद्र


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