राष्ट्रीय
चेतना की भोर, रवींद्र नाथ टैगोर
कुमार
महेंद्र
साहित्य
जगत विराट छवि,
ओजस्वी
मुखर लेखनी स्वर ।
नित्य
विरोध फिरंगी शासन,
लेखन
ज्वाला संप्रभु तत्पर ।
बौद्धिक
नैतिक योगदान सेतु,
स्वदेशी
हित प्रयास पुरजोर ।
राष्ट्रीय
चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।
कविता
गीत नाटक अंतर,
देश
भक्ति स्तुति दिव्य ज्योत ।
परित्याग
नाइट हुड उपाधि,
कलम
स्वाभिमान ओतप्रोत ।
संचेतन
पहल नारी सशक्ति,
रविन्द्र
संगीत वृक्षारोपण ओर ।
राष्ट्रीय
चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।
जन
गण मन रचना अद्भुत,
राष्ट्र
प्रेम एकता भव्य झलक ।
सांस्कृतिक
विविधता भाव अनूप,
शासक
भाग्य विधाता अलक ।
उन्नीस
सौ तेरह वर्ष मनोरम,
गीतांजलि
स्पर्श नोबेल पुरस्कार छोर ।
राष्ट्रीय
चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।
अप्रतिम
ख्याति विश्व कवि रूप,
सृजन
ध्येय मानवता उत्थान ।
पुनीत
स्थापना शांति निकेतन,
शिक्षा
संस्कार ग्राम्यता आह्वान ।
प्रातः
स्मरणीय व्यक्तित्व कृतित्व,
हर
कदम साहित्य वंदना सराबोर ।
राष्ट्रीय
चेतना की भोर,रवींद्र नाथ टैगोर ।।
कुमार
महेंद्र
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