गुरुवार, 26 जून 2025

व्याकरण विमर्श


डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

क्रिया

बोलना/बुलाना/बुलवाना

बोलना

बुलाना

बुलवाना

ये तीन क्रियाएँ हैं।

इनकी वर्तनी को देख कर सहज ही लगता है कि इनमें बोलनामूल क्रिया है। बुलानाउसका प्रथम प्रेरणार्थक रूप है और बुलवानाउसका द्वितीय प्रेरणार्थक रूप है।

परंतु ऐसा नहीं है।

आइए वाक्य में इनका प्रयोग करके देखते हैं।

1. यह बच्चा भले ही अभी बोलता नहीं है।

2. परंतु मैं इसे बुलवा कर रहूँगा।

3. तुम अभी रमेश को बुला नहीं रहे हो।

4. परंतु मैं तुमसे रमेश को बुलवा कर रहूँगा।

आप ध्यान दें -

पहले वाक्य में बोलनाअकर्मक क्रिया है। बच्चा बोलता है। बच्चा बोलता नहीं है।

संदर्भ के अनुसार दूसरे वाक्य में बुलवानाक्रिया बोलनाक्रिया का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप है। बच्चे को बोलने के लिए किसी (मैं) के द्वारा प्रेरित करने का भाव निहित है।

 

बोलना बच्चे को ही है। परंतु किसी की प्रेरणा से।

तीसरे वाक्य में बुलानासकर्मक क्रिया है। वर्तनी की लगभग समानता के कारण सामान्यतः लोग बुलानाको बोलनाका प्रेरणार्थक रूप मान बैठते हैं।

परंतु ऐसा बिलकुल नहीं है।

अर्थ पर विचार करें तो बोलनाअलग प्रकार की क्रिया है तथा बुलानाअलग प्रकार की क्रिया है। दोनों मूल क्रियाएँ हैं। दोनों स्वतंत्र क्रियाएँ हैं। कोई किसी से व्युत्पन्न नहीं है।

चौथे वाक्य की बुलवानाक्रिया बुलानाक्रिया का प्रेरणार्थक रूप है।

बुलाना और बुलवाना।

बुलाना अर्थात् किसी को स्वयं बुलाना।

बुलवाना अर्थात् किसी को दूसरे के द्वारा (दूसरे को प्रेरित करके) बुलवाना।

निष्कर्ष यह कि बुलवानासमान वर्तीनी की दो द्वितीय प्रेरणार्थकक्रियाएँ हैं -

बोलना  (मूल अकर्मक ) -  बुलवाना (बोलना का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप)।

बुलाना (मूल सकर्मक)  -  बुलवाना (बुलाना का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप)।



डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315,

आणंद (गुजरात)

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