शनिवार, 31 अगस्त 2024

कुण्डलिया

 


कुण्डलिया

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 

1

दुनिया हसरत बो रही , मैंने बोए गीत,

खेती करने मैं चली, करी पीर से प्रीत ।

करी पीर से प्रीत, रोज़ सींचा अँसुवन से ,

निभे लगन से रीत, माँगती नित जीवन से ।

आए नन्हे फूल, नाचती मन की मुनिया ,

गई सभी दुख भूल, सजी गीतों की दुनिया ।

2

चलते-चलते रे पथिक , जले धूप में पाँव ,

पेड़ लगाए जो कभी , देंगें तुमको छाँव ।

देंगे तुमको छाँव , मिलेंगे मीठे फल भी ,

शीतल, शुद्ध, समीर, आज भी, निश्चित कल भी ।

पँछी गाते गीत, गोद में इनकी पलते ,

सुनो मधुर संगीत , राह में चलते-चलते ।

3

विनती करती आपसे, सुनो लगाकर ध्यान,

कृषक वीर बस आप हो , धरती के भगवान ।

धरती के भगवान , खाद मत ऐसी डालो,

शुद्ध अन्न ,फल, धान्य , उगा कर हमें बचालो ।

दवा न देना डाल, रोग जो तन में भरती,

करना हमें निहाल, आपसे विनती करती ।

4

पाती अब आती नहीं , फोन हुआ है मौन ,

रोज़ टूटती साँस को , आस बँधाए कौन ।

आस बँधाए कौन , नैन धुँधलाते जाते ,

है मनवा बेचैन, खबर कुछ उसकी पाते ।

उठे हूक दिन-रात, तुम्हारी याद सताती,

पिता देखते द्वार , मात भी चैन न पाती ।

5

छोटा-सा मन का भवन, रहने की दरकार,

ख्वाहिश कितनी आ गईं , बनीं किराएदार ।

बनीं किराएदार, न करतीं घर अब खाली,

करने की  तकरार , परस्पर, आदत डाली ।

धमा-चौकड़ी खूब, हुआ खुशियों का टोटा ,

गया गमों में डूब, भवन यह मन का छोटा ।

 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी, गुजरात

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कुंडलियाँ । हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ज्योत्सना जी । सुदर्शन रत्नाकर

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सितंबर 2024, अंक 51

शब्द-सृष्टि सितंबर 202 4, अंक 51 संपादकीय – डॉ. पूर्वा शर्मा भाषा  शब्द संज्ञान – ‘अति आवश्यक’ तथा ‘अत्यावश्यक’ – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र ...