जन-जन के मन का प्यार मिले
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
हो पूर्ण मेरी यह अभिलाषा
और स्वप्न यही साकार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले ।
हों छन्द सहज से ,सरस, सरल
नवगीत रचें प्यारे-प्यारे
कुंडलिया सीख सिखाएँ नित
माहिया भी भाव भरें न्यारे
है आस यही हम रसिकों को
दोहे का खूब दुलार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले।
अद्भुत शृंगारमयी कविता
बस रस अमृत बरसाती हो
गज़लों की गर्वभरी दुनिया
प्रगति के पथ मुस्काती हो
फिर छन्द मुक्त की धूम मचे
मुक्तक का शुभ उपहार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले ।
सुत तुलसी, सूर ,कबीर मिलें
तुमको हे माता बार-बार
केशव, रसखान, बिहारी भी
फिर वर्षें अतुलित रस अपार
हों मीरा और महादेवी
दिनकर जैसी हुंकार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले ।
प्रगति के पथ पर आगे बढ़
पग तनिक देर भी न ठहरे
हिन्दी की ध्वजा सकल जग में
ऊँची बस ऊँची ही फहरे
हिन्दी के ,देश-विदेशों में
गीतों का पारावार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले ।
ज्ञान और विज्ञान सभी
थामे हिन्दी के दामन को
हिन्दी कह देवे अधिकारों,
कर्तव्यों, धर्म सुपावन को
सखी बोली, भाषा साथ चलें
और भावों को विस्तार मिले
अपनी इस हिन्दी भाषा को
जन-जन के मन का प्यार मिले।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
H-604,
प्रमुख हिल्स
छरवाड़ा रोड, वापी, 396191
जिला- वलसाड (गुजरात)
बहुत सुंदर कविता। बधाई ज्योत्सना जी।सुदर्शन रत्नाकर ।
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