गुरुवार, 14 सितंबर 2023

विमर्श

 



राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रश्न

इन्द्र कुमार दीक्षित

राष्ट्रभाषा, किसी संप्रभु राष्ट्र की अस्मिता, एकता, अभिव्यक्ति एवं संस्कृति की पहचान होती है।

सुदृढ़ तथा अखंड भारत की कल्पना राष्ट्रभाषा हिन्दी के बिना नहीं की जा सकती । भारत की संविधान सभा ने 14सितम्बर, 1949 को  सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये हिन्दी की व्यापक स्वीकार्यता, बहुलवादी संरचना और सभी भाषाओं के बीच सेतु बनने की क्षमता रखने वाली भाषा हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके प्रमाण स्वरूप संविधान के अनुच्छेद 343 में यह उल्लिखित है कि “संघ की भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी।”

इन्हीं संवैधानिक उपबंधों के तहत हिन्दी को 26 जनवरी, 1965 को भारतीय संघ के राजभाषा(प्रकारांतर से राष्ट्रभाषा) बनाने का निश्चय किया गया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कहना था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। परंतु भाषायी आधार पर राज्यों के बँटवारे की नीति ने भाषा की राजनीति का खेल शुरू कर दिया और हिन्दी को राजभाषा घोषित होते ही दक्षिण के राज्यों-तमिलनाडु, आन्ध्र, कर्नाटक और केरल से हिन्दी के विरुद्ध उग्र आँदोलन खड़े हो गये। परिणाम यह हुआ कि उनके तुष्टिकरण के लिये संविधान लागू होने के पन्द्रह वर्षों बाद अनुच्छेद 343(2) के जरिये हिन्दी के साथ साथ एक भी राज्य के असहमत रहने तक अंग्रेजी को भी संघ के सरकारी कामकाज में जारी रखने का प्रावधान लागू कर दिया गया। राजभाषा संशोधन अधिनियम1963 के तहत राजभाषा अधिनियम 1975 बनाया गया, जिसके अन्तर्गत समय समय पर हिन्दी के अनुगामी प्रयोग के लिये निर्देश जारी किये जाते हैं। राष्ट्रभाषा का प्रश्न नेपथ्य में चला गया। तब से अब तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये चल रहे अनेक मुबाहिसों और कोशिशों का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है और राष्ट्रभाषा का प्रश्न जहाँ का तहाँ खड़ा है।

नेहरू युग के शुरू होकर देश में जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र और क्षेत्रीय भाषा की राजनीति प्रबल होती गई, इस आधार पर प्रभावशाली समूह तथा दल विकसित होते गये, जो केंद्र की सत्ता को प्रभावित करते गये। सरकारें पर सरकारें आती जाती रहीं पर वे इन्हीं ताकतों के बल पर अपना वोट बैंक मजबूत करने के चक्कर में राष्ट्रभाषा के मुद्दे को उठाने का साहस न कर सकीं। यही नहीं वे अपनी सत्ता के लालच में उन समूहों व दलों का तुष्टिकरण करके राष्ट्रहित के इस अहम मुद्दे की उपेक्षा करती रहीं ।

आजादी के संघर्ष के इतिहास पर नज़र डालने पर पता चलता है कि सन 1857 में अंग्रेजी सत्ता से टकराने का बीड़ा उत्तर और मध्य भारत के हिंदीभाषी जनता ने ही उठाया। जनता का यह प्रयास  एक साल बाद ही विफल कर दिया गया लेकिन उसने देश की अस्मिता को जगाने और भाषा की ताकत को पहचानने में प्रमुख भूमिका निभायी । कांग्रेस के गठन के पश्चात गाँधी जी के भारत लौटने पर जब आँदोलन की बागडोर उनके हाथ में आई तो उन्होनें राष्ट्र भाषा के प्रश्न पर विचार करते हुए हिन्दी को ही इसके लिये सबसे उपयुक्त माना ।

हिन्दी ने भारत के सम्पूर्ण जनमानस को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। आजादी मिलने तक सारा आंदोलन प्राय: हिन्दी भाषा मे ही चला।इस दौरान इसकी ताकत बढ़ी और हिन्दीभाषा की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता दूसरे राज्यों में भी बढ़ी जिससे इस भाषा ने अपने को राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता अर्जित कर ली।

हिन्दी की इसी योग्यता के चलते संविधान बनने के बाद इसे राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव और समर्थन सर्व प्रथम अहिंदी भाषी राज्यों के प्रतिनिधियों की ओर से लाया गया। प्रसिद्ध तमिल विद्वान श्री गोपास्वामी आयंगर ने 14 सितम्बर, 1949 को संसद में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव लाया जिसका समर्थन पट्टाभि सीता रामय्या, राजगोपालाचारी तथा तमिल भाषा के महाकवि सुबृह्मनियम भारती ने भी किया। बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, बाबू सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गाँधी(सभी अहिंदी भाषी)तो पहले ही इसके पक्ष में थे। पर हकीकत है कि सत्तर-बहत्तर वर्षों बाद अभी भी राष्ट्रभाषा का प्रश्न अनुत्तरित है। अब जबकि केंद्र में देश की जनता के व्यापक समर्थन से बनी एक मजबूत और दृढ इच्छा-शक्ति वाली सरकार विगत पाँच वर्षों से सत्ता में है और उसने अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित मुद्दों का समाधान सूझ बूझ, कूटनीतिक कौशल और दृढ़ता पूर्वक करने का साहस दिखाया है तो एक सुखद उम्मीद जगी है कि हिन्दी को वास्तविक रूप से राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने की दिशा में दृढ़ता पूर्वक निर्णय लिया जाना चाहिए।  इसमें जो भी बाधाएँ आयें उन्हें हल किया जाय ।

         इस समय वैश्विक परिदृश्य पर भारत का अच्छा और अनुकूल प्रभाव है,हिन्दी सवा सौ से ऊपर देशों मे प्रयुक्त हो रही भाषाओं में शुमार है। अंग्रेजी और मन्दारिन(चीनी)के बाद विश्व में यह तीसरे  स्थान पर है। यदि हिन्दी अपने देश की राष्ट्रभाषा बन जाय तो अतिशीघ्र इसे संयुक्तराष्ट्र की भाषा होने का गौरव प्राप्त हो सकता है।       

इसी प्रयास में इस प्रश्न हिन्दी राष्ट्र भाषा कब तक??’ का उत्तर छिपा हो सकता है।

 



इन्द्र कुमार दीक्षित

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