गुरुवार, 14 सितंबर 2023

आलेख

 

व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के रूप में हिंदी

(विज्ञापन के विशेष संदर्भ में)  

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

          स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर संवैधानिक रूप से आरूढ़ हो गई लेकिन अंग्रेज़ी में जो काम हो रहा था उसे 200 साल की गुलामी के बाद फिर से अपनी ही भाषा में कर पाने में भारतीयों को ही समस्या हो रही थी। अंग्रेजी और हिंदी दोनों अलग भाषाएँ हैं तो यह स्वाभाविक रूप में वाक्य संरचना, बोलचाल के ढंग, अर्थ आदि में विषमतायें होंगी ही।  इन्हीं विषमताओं को दूर करके व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के रूप में हिंदी को सम्मान दिलाने का लक्ष्य रखकर “प्रयोजनमूलक हिंदी” की आवश्यकता पर बल दिया गया। जिससे कि हिंदी केवल संवैधानिक नियमों तक ही सीमित न रह जाए बल्कि पत्रकारिता, मीडिया, अनुवाद आदि क्षेत्रों तक भी यह पहुँचे। यह कार्य वैसे तो काफी लंबे समय पहले ही शुरू हो चूका है लेकिन कटु सत्य यह भी है कि जिस तीव्र गति के साथ काम का क्रियान्वयन होना चाहिए था वैसी गति केवल विगत कुछ दशकों में ही आई है। मीडिया का एक महत्वपूर्ण अंग है “विज्ञापन”। विगत कुछ दशकों से यह देखा जा रहा है कि “विज्ञापन” के अंतर्गत हिंदी भाषा अपनी एक अलग व्यावसायिक छवि बनाने में सफल हुई है।

विज्ञापन असल में क्या है? यह दो शब्दों से बना हुआ शब्द है। “वि” का अर्थ “विशिष्ट” और “ज्ञापन” का अर्थ है “सूचना”। इस प्रकार से विज्ञापन का अर्थ है “विशिष्ट सूचना”। विज्ञापन अंग्रेज़ी शब्द ऐडवरटीजमेंट का हिंदी अनुवाद है। ऐडवरटीजमेंट लैटिन भाषा के ऐडवरटाइस शब्द से बना है। जिसका अर्थ है जनता को “सूचित करना” या “पलटना”।

“वस्तुतः विज्ञापन की प्रमुख भूमिका है किसी सूचना को लोगों तक पहुँचाना तथा उनकी रूचियों व विचारों को विज्ञापनदाता के अनुकूल बनाना।”1

         विज्ञापन का प्रभाव लोगों के जीवन पर बहुत जल्दी पड़ता है। इसी कारण से विज्ञापन और भाषा का आपस में बहुत गहरा संबंध है। विज्ञापन  विशेषज्ञ डेविड आगलिवी (Devid Ogilavy) के अनुसार –“The headline is the most important element in most advertising. It is the telegram which decides for readers whether to read the copy”.2'“बी. एस. राठौर के अनुसार, विज्ञापन सूचनाओं को सार्वजनिक भुगतान प्राप्त साधनों द्वारा प्रचारित करता है जिसका उद्गम स्पष्टतः सौजन्य प्राप्त संगठन के रूप में पहचाना जाता है।”3

            विज्ञापन लिखते समय निम्न बिंदुओं पर ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है।

1. विज्ञापन लिखते समय लेखक को उत्पादन और उपभोक्ता दोनों से संबंधित जानकारी को देना चाहिए।

2. विज्ञापन लिखते समय लेखक को सर्वप्रथम विज्ञापन का शीर्षक तैयार कर लेना चाहिए। इसमें स्मरण, विश्वास, सुझाव तथा कौतूहल आदि गुणों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

3. विज्ञापन लिखते समय सरल, स्पष्ट और प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया जाना आवश्यक है।

4. ध्यान में रखने वाली बात यह है कि विज्ञापन में जिन सूचनाओं को जोड़ा जा रहा है वे उपभोक्ता को संतुष्ट करने वाले होने चाहिए।

5. विज्ञापन लेखक कम से कम समय में अधिक से अधिक प्रभावपूर्ण सूचनाओं को प्रभावी रूप में लिख या बोल सके।

6. विज्ञापन की भाषा में उपभोक्ता को चकित कर देने की क्षमता का रहना भी आवश्यक है।

      उपर्युक्त बिंदुओं पर चर्चा कर लेने के बाद इस प्रश्न का उत्तर पा लेना आवश्यक हो जाता है कि क्या हिंदी में विज्ञापन लेखन से संबंधित ये सारे गुण मौजूद है? उत्तर है हाँ, हिंदी भाषा में क्षमता है उपर्युक्त बिंदुओं को अपने भीतर समा लेने की। विज्ञापन को आकर्षक और हिंदी भाषा को और अधिक मीडिया अनुकूल बनाने के लिए विज्ञापन को निम्न भागों में  बांटा  गया है और हिंदी भाषा का प्रयोग भी उसी के अनुकूल जा रहा है। जैसे -

1.आश्वस्त शीर्षक – यह शीर्षक उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाता है कि विज्ञापित वस्तु से अवश्य ही लाभ होगा। इस विश्वास को देखिए हिंदी भाषा कैसे प्रदर्शित करने में सक्षम है।

 


2.समाचार शिक्षक – कोई भी कंपनी वस्तु का निर्माण करने के बाद उपभोक्ताओं से उनकी राय लेता है वस्तु में सुधार लाने हेतु और लाए गए सुधारों को वह फिर विज्ञापन के माध्यम से प्रदर्शित भी करती है। ऐसा ही एक हिंदी विज्ञापन अवलोकन हेतु नीचे दिया जा रहा है –

 

 


           देखिए इसमें हिंदी बातों को अंग्रेज़ी लिपि में मनोरंजन, रोचकता और सूचना तीनों साधनों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाई गई है।

3.कौतूहल शीर्षक – इस प्रकार के विज्ञापन की भाषा में उपभोक्ता के मन में कौतूहल पैदा करने की शक्ति अवश्य होनी चाहिए। ऐसी शक्ति हिंदी भाषा में है। निम्न विज्ञापन इसी बात का प्रमाण है।

 


4.मजाकिया शीर्षक – हिंदी भाषा में तो व्यंग्य विधा है ही एक विशेष विधा जिसके अंतर्गत चुटीले शब्दों के द्वारा मज़ाक करने की पद्धति पहले से ही रही है। इसी पद्धति को हिंदी भाषा ने विज्ञापन के अंतर्गत भी निम्न उदाहरण के रूप में अपना लिया है।

 


5.प्रश्नवाचक शीर्षक इस प्रकार के विज्ञापनों में उपभोक्ताओं को प्रश्न के माध्यम से आकर्षित किया जाता है।

 


6.सामान्य शीर्षक किसी उत्पाद के विज्ञापन के सन्दर्भ में उत्पाद के गुणों को समझाते हुए उसे उपभोक्ताओं के सामने प्रस्तुत किया जाता है।

 


7. सामयिक कापी – हिंदी केवल एक भाषा नहीं यह देश की अस्मिता भी है। इसी कारण से सामयिक कापी जो कि विज्ञापन का ही एक महत्वपूर्ण अंग है इसके माध्यम से जनचेतना को जागृत करने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग बहुत सशक्त रूप में किया जाता है। निम्न उदाहरण इसी विषय का प्रमाण है।

 


  उपर्युक्त उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी भाषा ने किस प्रकार से विज्ञापन जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

               विज्ञापन-व्यावसायिक स्वरूप

इसमें कोई संदेह नहीं कि आज के समय में विज्ञापन अध्ययन का एक नवीन विषय बन चूका है क्योंकि आर्थिक विकास के हज़ारों नवीन विकल्प विज्ञापन जगत के पास है। “विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2004 में इस क्षेत्र ने लगभग दस हजार करोड़ से अधिक का व्यवसाय सुनिश्चित किया जबकि लगभग एक दशक पूर्व इस क्षेत्र में पाँच हजार करोड़ का व्यवसाय किया था। वर्तमान में विज्ञापन व्यवसाय में चार सौ प्रतिशत से अधिक आय वृद्धि के साथ इसमें कार्य करने वाले कुशल कर्मचारियों की माँग प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।”4

        यह एक आशाप्रद परिवर्तन है। आनेवाले दशकों में 20-30 हज़ार और कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। लेकिन इस विषय में अभी तक जन जागृति का अभाव है। अभी तक अधिकांश विश्विद्यालयों ने पाठ्यक्रम के रूप में 'विज्ञापन' को शामिल करने की बात सोची ही नहीं है। लिंटास और ओ. वी. सी. जैसी कुछ बड़े विज्ञापन प्रतिष्ठान सीमित स्तर पर विज्ञापन पाठ्यक्रम शुरू कर चूके हैं। इसके अलावा ADVERTISING AGENCIES ASSOCIATION OF INDIA (AAAI) समय-समय पर विज्ञापन से संबंधित कार्यशालाओं का आयोजन करती है। “देश के कुछ महत्वपूर्ण संस्थान जहाँ जन संचार और विज्ञापन के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं वे निम्नलिखित हैं -

1.INDIAN INSTITUTE OF MASS COMMUNICATION (IIM),DELHI

2.BHARTIYA VIDYA BHAWAN, MUMBAI

3.JAMIA MILIA ISLAMIA, NEW DELHI

4.XAVIER INSTITUTE OF COMMUNICATION, MUMBAI

5.SOPHIA COLLEGE, MUMBAI

6.THE ADVERTISING CLUB OF BOMBAY

7.MUDRA INSTITUTE OF COMMUNICATION, AHMADABAD

8. INSTITUTE OF MANEGEMENT STUDIES,INDORE

9.NATIONAL INSTITUTE OF ADVERTISING, DELHI

10.THE CLARION COLLEGE OF COMMUNICATION, KOLKATA

11. CONTRACT AD AGENCIES ADVERTISING SCHOOL, MUMBAI

12. NAVEE MANJEE INSTITUTE OF MANEGEMENT, DELHI.5

           आज विज्ञापन केवल मनोरंजन का ही नहीं व्यवसाय की भी पहचान बन गया है। ऐसे में यह भी व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के साथ जुड़ चुका है। इसी कारण से इस क्षेत्र में भी अकुशल और अप्रशिक्षित व्यक्ति को प्रशिक्षण देने के बाद नौकरी देने की प्रथा अब नहीं है। आज प्रत्येक विज्ञापन कंपनी बहु आयामी व्यक्तित्व यानी जो मनुष्य के मनोविज्ञान को समझ सके, भाषा की पकड़ जिसके पास हो, जो अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध हो, जो पूर्ण समर्पण के साथ काम करने को तैयार हो को काम देने के लिए तैयार है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम विज्ञापन के साथ जुड़ी अपनी मानसिकता को बदलें और एक नवीन विषय को अपने जीवन और आर्थिक विकास का माध्यम बनाएँ।

 

सन्दर्भ सूची –

1.      जनसंचार, जनसंपर्क एवं विज्ञापन, डॉ. सुजाता वर्मा, पृष्ठ संख्या-197

2.      वही, पृष्ठ संख्या-238

3.      हरीश, संक्षिप्त प्रयोजनमूलक हिंदी, पृष्ठ संख्या-126

4.     वही, पृष्ठ संख्या-229

5.      जनसंचार, जनसंपर्क एवं विज्ञापन, डॉ. सुजाता वर्मा, पृष्ठ संख्या-230

 



डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

असिस्टेंट प्रोफेसर

भवंस विवेकानंद कॉलेज ऑफ ह्यूमेनाइटिस,

कॉमर्स एंड साइंस,

सैनिकपुरी

हैदराबाद केंद्र -500094

1 टिप्पणी:

  1. विज्ञापन की जानकारी और हिंदी के महत्व को दर्शाने वाला एक बेहतर लेख ।

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