हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा
मालिनी त्रिवेदी पाठक
लयबद्ध स्वरों में थिरक-थिरक कर,
हर अन्धकार को चीर-चीर कर,
आगे बढ़ो बनो राष्ट्रभाषा।
हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा।
तुम हो प्यारे
हिन्द की माता,
तुम हो हर भेदों की ज्ञाता,
तुम ही हो हर ज्ञान की दाता,
ज्ञान के दीप जलाकर,
आगे बढ़ो बनो राष्ट्रभाषा।
हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा।
जन-जन हों प्रिय
हिन्दी साक्षर,
संस्कृति-सभ्यता हो उजागर,
शुद्ध संचार के मर्म को पाकर,
सखी भाषाओं का मान बढ़ा
कर,
आगे बढ़ो, बनो राष्ट्रभाषा।
हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा।
सब हृदयों के तार जोड़ कर,
संकुचित भाव बन्धन तोड़ कर,
देश के बंद वातायन खोल कर,,
विश्व-चमन में महक-महक कर,
आगे बढ़ो बनो राष्ट्रभाषा।
हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा।
राष्ट्र के भेद-भाव हर कर,
नीतियों में समत्व भर कर,
कोने-कोने में बरस कर,
अखण्ड राष्ट्र में धड़क-धड़क कर,
आगे बढ़ो बनो राष्ट्रभाषा।
हे हिंदी! बनो राष्ट्रभाषा।
मालिनी त्रिवेदी पाठक
वडोदरा गुजरात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें