चौपाई
डॉ. ज्योत्स्ना
शर्मा
निशा चंद्रिका
चतुर सहेली
चली भोर को
छोड़ अकेली ।।
शिखर ओट रवि
छुपके झाँके
नाच उठें तरुवर
अति बाँके ।।
उषा संग अम्बर
हर्षाए ।
गीत मधुर पंछी
ने गाए ।।
सौरभ सुमन
बिखेरें पावन
यज्ञ होम गुंजन
मनभावन ।।
अद्भुत है सखि
कला छली की
भ्रमर वंदना
करे कली की ।।
पवन मुदित मन
गुनगुन गाए।
छेड़ तान आगे
बढ़ जाए ।।
अरी तलैया
क्यों मन प्यासा ।
विरह-घड़ी घट
घना उदासा ।।
पुरवा क्या
संदेशा लाई ।
खिले कमल ज्यों
तुम मुसकाई ?
गगन घिरे घन
बड़े सलोने
भरें चौकड़ी
ज्यों मृग छौने ।।
उच्च शिखर से
जा टकराएँ
फूट-फूट आँसू
बिखराएँ ।।
बड़े लाड़ से
पवन दुलारे
दे गलबहियाँ
ताप उतारे ।।
चल दी फिर
मेघों की टोली
छेड़छाड़ करते
हमजोली ।।
रस छलकाते
भटकें छैला
धुला धरा का
आँचल मैला ।।
भरते ताल नदी नद सारे
ओ घन श्याम !
लगो तुम प्यारे ।।
डॉ. ज्योत्स्ना
शर्मा
वापी (गुजरात)
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मनमोहक चौपाइयाँ। हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी। सुदर्शन रत्नाकर
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