सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

सार /ललित छन्द

 



छलनी लेकर हाथों में

ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

1

चंदा-सी काया हर घर में,बाट चाँद की जोहे ।

निशिकर आया नभ में देखो नयनों को वो सोहे ।

चाँद विभा का खुद प्रेमी है,प्रेम न उसका दूजा l

युग बदला हो चाहे कितना, निशिकर सबने पूजा !

2

छलनी लेकर हाथों में प्रिय, तुमको नैन निहारे l

झरे ओज चंदा से प्यारा, तेरी आँखों वारे l

छलनी से पूजा है तुमको,छन- छन छने अँधेरे l

छलना ना जीवन में सजना,सुख -दुख तेरे -मेरे !

3

दीप-दीप से जग रौशन है,मन में पर अँधियारा,

कोना-कोना मन का चमके , हो ऐसा उजियारा I

अँधियारी रातों को मिलकर,भोर बना लो प्यारी,

नेह बना लो दिनकर सा तुम,हर मन हो सुखकारी।

 


ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

देहरादून

3 टिप्‍पणियां:

  1. छलना न जीवन में सजना- मनमोहक सृजन। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं
  2. ज्योत्स्ना जी आपको हार्दिक बधाई । ललित छंद की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के हेतु ।

    जवाब देंहटाएं

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...