छलनी
लेकर हाथों में
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
1
चंदा-सी
काया हर घर में,बाट
चाँद की जोहे ।
निशिकर
आया नभ में देखो नयनों को वो सोहे ।
चाँद
विभा का खुद प्रेमी है,प्रेम
न उसका दूजा l
युग
बदला हो चाहे कितना, निशिकर
सबने पूजा !
2
छलनी
लेकर हाथों में प्रिय, तुमको
नैन निहारे l
झरे
ओज चंदा से प्यारा, तेरी
आँखों वारे l
छलनी
से पूजा है तुमको,छन-
छन छने अँधेरे l
छलना
ना जीवन में सजना,सुख
-दुख तेरे -मेरे !
3
दीप-दीप
से जग रौशन है,मन
में पर अँधियारा,
कोना-कोना
मन का चमके , हो
ऐसा उजियारा I
अँधियारी
रातों को मिलकर,भोर
बना लो प्यारी,
नेह
बना लो दिनकर सा तुम,हर
मन हो सुखकारी।
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
देहरादून
छलना न जीवन में सजना- मनमोहक सृजन। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंज्योत्स्ना जी आपको हार्दिक बधाई । ललित छंद की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के हेतु ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , मधुर छंद !
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