सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

ग़ज़ल

 



हिमकर श्याम

राह मुश्किल सही, हौसला कीजिए।

क्या किसी का यहाँ आसरा कीजिए।

 

धर्म क्या, जात क्या देखिए ख़ूबियाँ,

फ़र्क़ अच्छे- बुरे में किया कीजिए।

 

ज़िन्दगी मुख़्तसर ख़्वाहिशें हैं बहुत,

क्या लक़ीरों में है तबसरा कीजिए।

 

अब्र रहमत के जाने कहाँ खो गए,

तिश्नगी बढ़ रही है दुआ कीजिए।

 

उँगलियाँ जो उठाता है सब की तरफ़,

रू-ब- रू उसके भी आइना कीजिए।

 

हो गई बेगुनाही भी साबित मेरी,

सोच कर ही कोई फ़ैसला कीजिए।

 

इस नए दौर का है तक़ाज़ा यही,

साथ दुनिया के हिमकरचला कीजिए।

 


हिमकर श्याम

राँची (झारखंड)

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