शनिवार, 11 सितंबर 2021

कविता ( राजस्थानी)

 



अनिता मंडा

बाण

 

मूळकणे  की बाण

घालणी पड़े

ज्यूँ नागफणी रो फूल

काँटा माथे खिले

कोई ओळमूँ कोनी राखे मन माथे

बस मुळकतो जावे

इयांही संसार रे बीच

रेवनूँ हुवे जीव नें।

 

***

रस

 

हिवड़े रो खेत

हेत रे इमरत सैं सींच

बोवो आस रा बीज

 

जणां भी उगे

निरासा रो झाड़-झंखाड़

दीज्यो उपाड़

काड निंदाण

बचायां राखो

जिनगी को रस

 

रस रे बिनां

सोक्यूँ हू ज्यावै नीरस

 



अनिता मंडा

दिल्ली

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