डॉ.
सुरंगमा यादव
आँसू
सजल
आँखों को कभी तुम
इस
तरह होने न देना
भाव
के मोती हैं ये
पत्थरों
पर गिरने न देना
आँख
का पानी नहीं ये
मौन
व्यथा की है कहानी
यह
अगर बह जायेगा तो
पीर
छिप न पायेगी पुरानी
समझ
पाओ तो समझ लो
विकल
मन का तरल रूप
आँसुओं
को मान लो
आँख
से सूखा जो आँसू
आग
का दरिया बनेगा
धैर्य
धरती के हृदय का
मापने
की जिद न करना
शब्द
जब लाचार होते
अश्रु
उनको थाम लेते
आँसुओं
को ढोंग की तुम
फिर
कभी संज्ञा न देना।
डॉ.
सुरंगमा यादव
4/27, जानकीपुरम विस्तार
लखनऊ
-226031
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