सोमवार, 16 अगस्त 2021

दोहे

सावन

अनिता मंडा

 

1.

बूँदें मिल गाने लगी, छम-छम वाले गान।

भीगा सावन बाँटता, हरियाली मुस्कान।।

2.

सावन के सपने हरे, फैले चारों ओर।

हरी-भरी सी साँझ है, हरी-भरी है भोर।।

3.

सावन की मुट्ठी खुली, बिखरे आशा-बीज।

राखी बाँधे पूर्णिमा, झूला झूले तीज।।

4.

धानी चुनरी ओढ़कर, धरा रही है झूम।

सावन लेकर आ गया, त्यौहारों की धूम।।

5.

नभ ने भेजी पातियाँ, लिख-लिख अमृत मेह।

हरियाले अनुवाद में, बाँचे धरती नेह।।

6.

घिर घिर आये बादली, छम-छम गाये राग।

धोया सब संताप तो, जगा धरा का भाग।।

7.

सतरंगी पगड़ी पहन, सावन हुआ अधीर।

दर्पण देखे धूप तो, पल में बरसे नीर।।

8.

धूसर मटमैले हुए, धरें जोगिया वेश।

बाँटें जग को रहमतें, बादल हैं दरवेश।।

9.

अंबर ने पाती लिखी, धरा रही है बाँच।

नेह-मेह से ही बुझे ,मन तृष्णा की आँच।।

10.

पल-पल बदले बादली, जाने कितने वेश।

श्वेत वस्त्र धूमिल पड़े, उलझे उलझे केश।।

11.

बिरहा के बादल घिरे, बरसे नैना नीर।

सावन में है सौ गुनी, पीड़ा की जी पीर।।

12.

आँख मिचौली खेलते, घन, चंदा आकाश।

कभी छुड़ावै फिर बँधे, चंदा घन के पाश।।

13.

सावन की बदली लगे, आँखों का अनुवाद।

डूब जहाँ आकण्ठ हम , भूले हैं प्रतिवाद।।



अनिता मंडा

दिल्ली 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया दोहे प्रिय अनिता!

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  2. सावन माह की छटा बिखेरते बहुत सुंदर दोहे।बधाई अनिता जी।

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  3. सावन माह की छटा बिखेरते बहुत सुंदर दोहे। हार्दिक बधाई अनिता जी।

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  4. बहुत सुन्दर दोहे अनिता जी, हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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