रविवार, 25 जुलाई 2021

आलेख

 

प्रेमचंद जयंती के अवसर पर....

प्रेमचंद जी को हम क्यों याद करें ?

डॉ. हसमुख परमार

एक लम्बे अरसे से हर वर्ष 31 जुलाई को प्रेमचंद जयंती के निमित मुंशी प्रेमचंद को विशेष रूप से याद किया जाता है। एक महान कथा लेखक के अवदान की इनके जन्म दिवस पर भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए नई पीढ़ी को इसके महत्व व मूल्य से अवगत कराना सराहनीय कार्य है, परन्तु खास करके हम हिन्दी वालों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रेमचंद हमारे लिए साल में एक बार आऩे वाले मेहमान जैसे नहीं बल्कि साल के बारहों महीनों हमारे साथ रहने वाले हमारे हिन्दी साहित्य परिवार के उस मुखिया जैसे हैं, उस बुजुर्ग के समान हैं, जिनकी छत्रछाया में हम रहते हैं और उनसे उचित मार्गदर्शन हमें मिलता रहता है। मानवीय संवेदना, साहित्य का सामाजिक सरोकार, साहित्यकार का दायित्व, मनुष्यता जैसे मुद्दों के सन्दर्भ में प्रेमचंद को जितना पढ़ना-समझना जरूरी है उतना ही उनको जीना, उनसे सीखना, उनके लेखन व विचारों को जीवन व्यवहार में लाना भी अति आवश्यक है।

          प्रेमचंद पर बात करने, इनके लेखन पर विचार करने, प्रेमचंद विषयक चर्चा में शामिल होने की दो वजहें हैं। एक- प्रेमचंद उऩ लोगों की जरूरत है जो अपने पाठ्यक्रम में प्रेमचंद के होने की वजह, इन्हें पढ़ते-पढ़ाते हैं, इस नाते वे प्रेमचंद जी से विशेष रूप से जुड़े रहते हैं। दूसरी वजह है- प्रेमचंद व इनके लेखन की महानता व महत्ता जिसके चलते महज स्कूल-कॉलेज में पाठ्यक्रम में प्रेमचंद को पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग ही नहीं बल्कि समाज व विविध व्यवसाय क्षेत्रों से जुड़े असंख्य लोग भी प्रेमचंद के लेखन से परिचित रहे हैं।

          युगनिर्माता-युगप्रवर्तक प्रेमचंद, सामाजिक यथार्थ के एक बड़े लेखक, ग्राम्यजीवन-ग्राम्य संस्कृति का सर्वांगीण निरूपण करने वाले सर्जक, जनजीवन का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करने वाले कथालेखक, मानवीय संवेदना के महान सर्जक, विश्वसाहित्य के मंच पर हिन्दी कथासाहित्य को प्रसिद्धि दिलाने वाले कथा लेखक, मौजूदा समय में प्रेमचंद की प्रासंगिकता व उपयोगिता ये कुछ ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं जो प्रेमचंद के जीवन व रचनाकर्म से सन्दर्भित हैं। उक्त विषयों की चर्चा प्रेमचंद, अमृतराय तथा शिवरानी देवी की निम्न कृतियों के आधार पर होती रही है-

-    सेवासदन, प्रतिज्ञा, वरदान, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान। (प्रेमचंद के उपन्यास)

-    बूढ़ी काकी, गृहदाह, हार की जीत, सवासेर गेहूँ, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, ठाकुर का कुआँ, ईदगाह, नशा, बड़े भाई साहब, कफन और ऐसी अन्य अनेक कहानियाँ (प्रेमचंद का कहानी साहित्य)

-    कलम का सिपाही (अमृतराय)

-    प्रेमचंद घर में (शिवरानी देवी)

हिन्दी कथासाहित्य, विशेषतः हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन एक युगांतकारी घटना कही जा सकती है। इस लेखक की लेखनी ने हिन्दी उपन्यास के इतिहास में एक नवीन व महत्वपूर्ण अध्याय का प्रवर्तन किया। हिन्दी उपन्यास के संस्कार व तेवर को बदलते हुए इन्होंने संवेदना व शिल्प की दृष्टि से एक बहुत ही सम्पन्न व समृद्ध औपन्यासिक परम्परा की नींव डाली। ‘प्रेमचंद (1880-1936) के साहित्य जगत में प्रवेश के साथ ही हिन्दी उपन्यास में एक नया मोड़ आता है। अभी तक हिन्दी पाठक जासूसी का चमत्कार और तिलस्म के आश्चर्यजनक करिश्मे देख रहे थे। ऐतिहासिक रोमांसों की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं थी। उनमें सनातनधर्मी प्रतिक्रियावादी मनोवृत्तियाँ-पर्दाप्रथा का समर्थन, थोथे पतिव्रत्य का अनुमोदन, स्त्री शिक्षा तथा विधवा विवाह का विरोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है। प्रेमचंद ने इस भूलभुलैया और प्रतिक्रियावादी स्थितियों से बाहर निकालकर हिन्दी उपन्यासों को वास्तविकता की जमीन पर खड़ा किया।’(1) वाकई हिन्दी उपन्यास के इतिहास में प्रेमचंद की एक युगप्रवर्तक की भूमिका रही है। संवेदना, विचार, भाषाशैली आदि को लेकर हिन्दी कथासाहित्य को एक नयी व वास्तविक पहचान दिलाने का कार्य प्रेमचंद जी के हाथों हुआ।

हिन्दी कथासाहित्य को सामाजिक जीवन के अधिक निकट ले जाना प्रेमचंद जी की लेखनी की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है। अपनी कहानियों व उपन्यासों में सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने वाले इस कथालेखक ने एक यथार्थवादी लेखक के दायित्व का बराबर ध्यान रखा है। ‘‘वास्तव में वे ही पहले लेखक थे जिन्होंने सामाजिक परिस्थितियों और समस्याओं को उनके समग्र और पूर्ण रूप से समझा था और मानव चरित्र के गुण-दोषों की यथार्थता से सीधा साक्षात्कार किया था। यथार्थवादी वस्तु के सम्प्रेषण हेतु उपयुक्त शैली पर भी उनका अधिकार था।’’2 समाज जीवन के विस्तृत, व्यापक व प्रामाणिक रूप को हम प्रेमचंद के कथासाहित्य में देख सकते हैं।

अनेक विचारकों, समाज के अध्येताओं व साहित्यकारों के उन कथनों से हम अच्छी तरह परिचित है जिनमें गाँवों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए हमारे देश की सही पहचान के रूप में गाँव को देखा गया है। जैसे- भारतमाता ग्रामवासिनी, भारत गाँवों में बसता है, गाँव भारत की आत्मा है, भारत गाँवों का देश कहलाता है। हिन्दी के जिन साहित्यकारों ने अपने लेखन में गाँव को ज्यादा स्थान व महत्व दिया है ऐसे सर्जकों में प्रेमचंद का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है। ऐसा नहीं है कि शहरी जीवन प्रेमचंद की कृतियों में नहीं है, इनकी लेखनी शहरी जीवन को भी चित्रित करती है पर ग्रामीण जीवन इनके लेखन के केन्द्र में रहा है। ‘‘ग्रामीण जीवन और उसकी समस्याओं का इतना सजीव चित्रण जो प्रेमचंद कर सके उसके लिए सबसे बड़ा कारण उनके स्वयं के जीवन की अनुभूतियाँ थीं। किसान वर्ग के प्रति तथा उनके दुःख दर्दों के प्रति उनके उपन्यासों में जो इतना स्वाभाविक चित्रण मिलता है, उन सबके पीछे उनके जीवन का गंभीर चिंतन प्रतीत होता है। प्रेमचंद मानते थे, कि जिस देश के 80 फीसदी मनुष्य गाँवों में बसते हों, उसके साहित्य में ग्रामीण जीवन ही प्रधान रूप से चित्रित होना स्वाभाविक है। उन्हीं का सुख राष्ट्र का सुख, उनका दुःख राष्ट्र का दुःख और उन्हीं की समस्याएँ राष्ट्र की समस्याएँ हैं।’’3

प्रेमचंद की दृष्टि में गाँव अपने समस्त रूप-रंग के साथ आया है। उक्त विषय़ से सम्बन्धी कृतियाँ ग्रामीण जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज बनी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप उत्तर भारत के गाँवों को जानना-समझना चाहते हैं तो प्रेमचंद से अच्छा परिचायक कोई दूसरा नहीं होगा। वैसे देखें तो प्रेमचंद की रचनाओं के ग्रामीण जीवन सम्बन्धी ‘प्लोट’ ज्यादातर उत्तर भारत से जुड़ा है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इनकी रचनाएँ सिर्फ हिन्दी प्रांत-प्रदेश तक ही सीमित रहीं। असल में एक विस्तृत दृष्टि एवं सृजनात्मक कौशल के चलते इस लेखक की रचनाओं में निरूपित समाज या गाँव हमें भारतीय समाज व भारतीय ग्रामीण जीवन के रूप में नजर आता है। प्रेमचंद की कथाकृतियाँ वह दर्पण हैं जिसमें भारतीय समाज, भारतीय ग्रामीण जीवन प्रतिबिम्बित होता है। इनकी रचनाओं में भारतीय गाँव अपने पूरे वजूद के साथ चित्रित हुआ है।

दलित, पीड़ित, शोषित व अभावग्रस्त को प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य में विशेष स्थान दिया है। स्त्री, किसान, मजदूर व दलित समाज की विविध समस्याओं तथा अन्य सामाजिक मुद्दों तथा मानवजीवन के प्राणप्रश्नों को प्रेमचंद जी मानो एक समाजशास्त्री की दृष्टि से देखते हैं और इसे विश्लेषित करते हैं। इस तरह प्रेमचंद हिन्दी के एक बड़े व प्रमुख सामाजिक उपन्यासकार व कहानीकार हैं। ‘‘प्रेमचंद का आगमन हिन्दी उपन्यास के इतिहास में एक युगांतकारी घटना है। प्रेमचंद एक व्यापक सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना, उदार और प्रगतिशील दृष्टि तथा नारी, अछूत, मजदूर और किसान आदि वर्गों के प्रति गहन सहानुभूति रखते थे, जो पिछले खेमे के उपन्यासकारों में प्राप्त नहीं थी। इसलिए प्रेमचंद के उपन्यास युग और समाज का सच्चा प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करते हैं और उपन्यासकारों की एक पूरी पीढ़ी उनसे प्रभावित हुई है।’’4

विश्व साहित्य के मंच पर प्रेमचंद जी अपनी कथाकृतियों के द्वारा हिन्दी कथा साहित्य का, भारतीय कथा साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि आज विश्व के महान लेखकों की पंक्ति में प्रेमचंद जी का नाम शामिल है। कहा जाता है कि रूस में उनके ‘गोदान’ की नब्बे हजार प्रतियाँ बिक गई थीं। उनको भारत का गोर्की तक कहा गया है।

साहित्य समीक्षा के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से पुराने साहित्याकारों की मौजूदा समय में प्रासंगिकता को लेकर काफी चर्चा हो रही है। सात-आठ दशकों के बाद प्रेमचंद, उनका लेखन, इनकी विचारधारा, इनके सर्जन की संवेदना वर्तमान समय सन्दर्भ से कितनी मेच होती है ? इसकी आज क्या उपयोगिता है ? इतने वर्षों के बाद क्या प्रेमचंद हमारे हमसफर कहे जा सकते हैं ? ये कुछ ऐसे सवाल है जो आज कई समीक्षकों के चितंन व चर्चा के विषय बने हुए हैं। इन प्रश्नों के उत्तर में हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद की प्रासंगिकता, उपयोगिता एवं आवश्यकता आज भी है।

सन्दर्भ

1.     आधुनिक हिन्दी साहिय का इतिहास, बच्चन सिंह, पृ. 164

2.     बृहत् साहित्यिक निबन्ध, डॉ. यश गुलाटी, पृ. 223

3.     हिन्दी उपन्यासों में ग्राम समस्याएँ, डॉ. ज्ञान अस्थाना, पृ. 66

4.     बृहत् साहित्यिक निबन्ध, डॉ. यश गुलाटी, पृ. 22

5.     द्रष्टव्य – प्रेमचंद और गोर्की, सं. शचिरानी गुर्टू

डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. ખૂબ સરસ સાહેબ... પ્રેમચંદ હિન્દી સાહિત્યના મહાન લેખક વિશે અને ખાસ કરીને એમની સાહિત્ય કૃતિઓની માહિતી અદભૂત આપી છે.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत शुभ कामनाएँ सर 💐💐💐

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय गुरुवर्य, समय के अभाव वश प्रेमचंद जयंती पर आपके लेख पर कोई विचार प्रस्तुत नहीं कर सका। प्रेमचंद जयंती पर प्रेमचंदजी के साहित्य का आपके द्वारा दिया गया संक्षिप्त विवरण बड़ा ही उत्कृष्ठ है। प्रेमचंदजी का साहित्य सही में समाज का दर्पण है। आपके द्वारा दिया गया शीर्षक "प्रेमचंद जयंती के अवसर पर हम प्रेमचंद को क्यों याद करें?" बड़ा सटीक हैं। उनके साहित्य को पढ़ने और समझने के बाद पाठक को स्वतः ही अंदेश आ जाता है कि हिंदी साहित्य में प्रेमचंदजी को क्यों याद किया जाए। प्रेमचंद जी पर लिखें गए आपके लेख से महसूस होता है कि वो एक व्यक्ति ही नहीं पूरा समाज थे। उनके साहित्य की यथार्थता को देख कर हम कह सकतें है कि वह आज भी हमारे बीच जिंदा है। निम्नांकित उद्धरण से स्पष्ट पता चलता हैं कि हम आज भी प्रेमचंद जी को क्यों याद करतें हैं – कफ़न कहानी की ये पंक्तियां देखें: "समाज का कैसा बुरा रिवाज़ है कि जिस आदमी को जीते जी तन ढकने के लिए चिथड़ा न मिले उसे मरने के बाद नया कफ़न चाहिए।"
    प्रेमचंद जी के साहित्य की यहीं युगीन यथार्थता आज भी हमारे बीच विद्यमान हैं।

    जवाब देंहटाएं

फरवरी 2025, अंक 56

  शब्द-सृष्टि फरवरी 202 5 , अंक 5 6 परामर्शक की कलम से : विशेष स्मरण.... संत रविदास – प्रो.हसमुख परमार संपादकीय – महाकुंभ – डॉ. पूर्वा शर्...