शनिवार, 30 अगस्त 2025

संस्मरण

‘गोली’ के साथ बिताए वे दिन

सुरेश चौधरी

यूँ तो मैंने आचार्य चतुरसेन शास्त्री के सभी उपन्यास पढ़े हैं, उनके उपन्यास में तत्सम शब्दों द्वारा रचित जो कथानक है  वह पूरी देह को झकझोर कर रख देने का सामर्थ्य रखता है। मैं उनके चर्चित उपन्यासों की बात नहीं करूँगा बल्कि एक कम चर्चित उपन्यास की बात करूँगा।

लगभग साठ वर्ष पहले, जब मैंने पहली बार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की कृति ‘गोली’ पढ़ी थी, तब मैं किशोरावस्था में था। उस समय हिन्दी साहित्य का संसार मेरे सामने धीरे-धीरे खुल रहा था, और ‘गोली’ मेरे लिए केवल एक उपन्यास न होकर राजस्थान की मरुस्थलीय मिट्टी की गंध, वहाँ की हवाओं की तपिश और वहाँ के लोगों की अस्मिता का जीवंत दस्तावेज़ प्रतीत हुआ था।

‘गोली’ में चतुरसेन ने जिस जनजाति की कथा कही, वह केवल किसी एक परिवार या समाज की कहानी नहीं थी, बल्कि पूरे राजस्थान की उस पीड़ित परंपरा का स्वर थी, जो सामंती अत्याचारों और कठोर जीवन-संघर्ष के बीच भी अपनी पहचान बचाए रखने के लिए जूझ रही थी। मैंने जब इसे पढ़ा तो ऐसा लगा जैसे आँखों के सामने कहीं जैसलमेर की टीलों पर उभरती वह बस्ती है, जहाँ धूल, भूख, गरीबी और अन्याय के बावजूद इंसान का हृदय धड़कता है, सपने देखता है और विद्रोह भी करता है।

उस समय साहित्य पढ़ना मेरे लिए केवल रसास्वादन नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन से साक्षात्कार था। ‘गोली’ ने मुझे पहली बार यह अनुभूति कराई कि उपन्यास केवल घटनाओं का सिलसिला नहीं, बल्कि समाज की आत्मा की आहट है।

राजस्थान में  ‘गोली’ शब्द ही गाली का पर्याय था। मुझे आज भी याद है, मेरी अपनी दादी जब किसी पर झुंझलातीं या क्रोध में होतीं, तो कहतीं— “गोली की जाएडी ह”।

साठ वर्षों के बाद जब उस पुस्तक की याद आती है तो लगता है मानो वह केवल राजस्थान की कहानी न होकर पूरे भारतीय समाज की व्यथा-कथा है। हाशिये पर खड़े लोगों का जीवन, उनकी पीड़ा और उनकी जिजीविषा आज भी हमें उतनी ही गहराई से झकझोरती है। ‘गोली’ मेरे लिए साहित्य का नहीं, जीवन का हिस्सा बन गई थी।

आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है कि ‘गोली’ ने ही मेरे भीतर यह बीज डाला था कि साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संवेदना और समाज की चेतना का दर्पण है।

सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

  

1 टिप्पणी:

  1. सचमुच मे आचार्य जी के शब्द जादू की तरह प्रभाव डालते हैं। महमूद गजनवी के सोमनाथ विजय पर आधारित उनका उपन्यास *सोमनाथ* मुझे अत्यधिक पसंद है। मैं इसे चार पांच बार पढ चुका हूँ। हर बार मुझे यह नया ही प्रतीत होता है। धन्यवाद🙏

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