मनहरण घनाक्षरी
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
शिव
पावन
सावन मास
मन
में भरा हुलास
हर हिय शिवमय
शंभू
हर धाम हैं।
गौरी
सुभग , अनूप
सति परिष्कृत रूप
शिव साधना से मिले
शुभ, अभिराम हैं।।
सावन
में तप
किया
गिरिजा
ने जप किया
व्रत
जो किया कठोर
कभी
न विश्राम है!
उमा के वो दिन- रात
केवल खाती थी पात
फिर वायु पर जीती
तप अविराम है ।।
प्रभु के
नैनों में नीर
अपर्णा
की सोखी पीर
धीर
शैलजा की देखी!
वरद, ललाम है।
मिलन शिव-शिविका
भावों की खिली कलिका
संपूर्ण
जगत गाता
कण-कण नाम है।।
संग
-संग नृत्य ,
गीत
योग साधना, संगीत
नहीं देखी
प्रीत ऐसी
शुभद
,
निष्काम हैं।
करुणा ,दया के
कोष
नीलकंठ , आशुतोष
शिव ही आरंभ ,मध्य
शिव
ही विराम है।।
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
देहरादून
भक्ति से भरा समयोचित कविता ।
जवाब देंहटाएंहम भी बोलें, भोले भोले
साथ डमरू भी डोले डोले
हर हर महादेव की निनादें
सावन में सारे बोलें बोलें
तोलेटी (हिन्दी) चंद्र शेखर, विशाखापत्तनम
भक्ति भाव से ओत-प्रोत बहुत सुंदर रचना। हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर
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